भूमि का चुनाव एवं तैयारी
गन्ने के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है । ग्रीष्म में मिट्टी पलटने वाले हल सें दो बार आड़ी व खड़ी जुताई करें । अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह में बखर से जुताई कर मिट्टी भुरभुरी कर लें तथा पाटा चलाकर समतल कर लें । रिजर की सहायता से 3 फुट की दूरी पर नालियां बना लें। परंतु वसंतु ऋतु में लगाये जाने वाले ( फरवरी – मार्च) गन्ने के लिए नालियों का अंतर 2 फुट रखें । अंतिम बखरनी के समय भूमि को लिंडेन 2% पूर्ण 10 किलो प्रति एकड़ से उपचारित अवश्य करें।
बोने का समय
गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सर्वोत्तम समय अक्टूबर – नवम्बर है । बसंत कालीन गन्ना फरवरी-मार्च में लगाना चाहिए ।
जातियाँ
गन्ने की उन्नत जांतियां निम्नानुसार है :-
स्म |
उपज क्विं.प्रति एकड़ |
रस में शक्कर की मात्रा प्रतिशत |
विवरण |
अनुमोदित किस्में |
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1 शीघ्र (9 से 10 माह) में पकने वाली वाली |
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को. 7314 |
320-360 |
21.0 |
कीट प्रकोप कम होता है । रेडराट निरोधक / गुड़ व जड़ी के लिए उत्तम/संपूर्ण म0प्र0के लिए अनुमोदित । |
को. 64 |
320-360 |
21.0 |
कीटों का प्रकोप अधिक, गुड़ व जड़ी के लिए उत्तम, उत्तरी क्षेत्रों के लिए अनुमोदित । |
को.सी. 671 |
320-360 |
22.0 |
रेडराट निरोधक /कीट प्रकोप कम/ गुड़ व जड़ी के लिए उत्तम |
मध्य से देर से (12-14 माह) में पकने वाली |
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को. 6304 |
380-400 |
19.0 |
कीट प्रकोप कम, रेडराट व कंडुवा निरोधक, अधिक उपज जड़ी मध्यम सम्पूर्ण म0प्र0के लिए । |
को.7318 |
400-440 |
18.0 |
कीट कम, रेंडराट व कंडुवा निरोधक/ नरम, मधुशाला के लिए उपयोगी / उज्जैन सम्भाग के लिए |
को. 6217 |
360-400 |
19.0 |
कीट प्रक्षेत्र कम/ रेडराट व कंडुवा निरोधक / नरम, मधुशाला के लिए उपयोगी/ उज्जैन संभाग के लिए । |
नई उन्नत किस्में |
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शीघ्र (9 -10 माह ) में पकने वाली |
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को. 8209 |
360-400 |
20.0 |
कीट प्रकोप कम / लाल सड़न व कडुवा निरोधक/शक्कर अधिक/जड़ी उत्तम / उज्जैन संभाग के लिए अनुमोदित । |
को. 7704 |
320-360 |
20.0 |
कीट प्रकोप कम/लाल सड़न व कडुवा निरोधक/शक्कर अधिक/जड़ी उत्तम / उज्जैन संभाग के लिए अनुमोदित । |
को. 87008 |
320-360 |
20.0 |
कीट प्रकोप कम / लाल सड़न व कडुवा निरोधक/शक्कर अधिक/जड़ी उत्तम / उज्जैन संभाग के लिए अनुमोदित । |
को. 87010 |
320-360 |
20.0 |
कीट प्रकोप कम / लाल सड़न व कडुवा निरोधक/शक्कर अधिक/जड़ी उत्तम / उज्जैन संभाग के लिए अनुमोदित । |
को जवाहर 86-141 |
360-400 |
21.0 |
कम कीट प्रकोप/रेडराट व कंडवा निरोधक /गुड़ हेतु उपयुक्त जड़ी उत्तम/ संपूर्ण म.प्र. के लिए । |
का.े जवाहर86-572 |
360-400 |
22.0 |
कम कीट प्रकोप/रेडराट व कंडवा निरोधक /गुड़ हेतु उपयुक्त/ जड़ी उत्तम/ संपूर्ण म.प्र. के लिए । |
मध्यम से देर (12-14 माह ) में पकने वाली |
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को. जवाहर 94-141 |
400-600 |
20.0 |
कीट प्रकोप कम/रेडराट व कंडवा निरोधक/ गुड़ व जड़ी के लिए उत्तम/ संपूर्ण म0प्र0 के लिए । |
का.े जवाहर 86-600 |
400-600 |
22.2 |
कीट प्रकोप कम/रेडराट व कडुवा निरोधक/ गुड़ व जड़ी के लिए उत्तम/ संपूर्ण म0प्र0 के लिए । |
को.जवाहर 86-2087 |
400-600 |
20.0 |
कीट प्रकोप कम होता है । रेडराट व कडुवा निरोधक है । गुड़ व जड़ी के लिए उत्तम /महाकौशल, छत्तीसगढ़ व रीवा संभाग के लिए अनुमोदित । |
बीज की मात्रा एवं बोने की विधि
गन्ने के लिए 100-125 क्वि0 बीज या लगभग 1 लाख 25 हजार आंखें#हेक्टर गन्ने के छोटे छोटे टुकडे इस तरह कर लें कि प्रत्येक टुकड़े में दो या तीन आंखें हों । इन टुकड़ों को कार्बेंन्डाजिम-2 ग्राम प्रति लीटर के घोल में 15 से 20 मिनट तक डुबाकर कर रखें। इसके बाद टुकड़ों को नालियों में रखकर मिट्टी से ढंक दे। एवं सिंचाई कर दें या सिंचाई करके हलके से नालियों में टुकड़ों को दबा दें ।
अन्तवर्तीय फसल
अक्टूबर नवंबर में 90 से.मी. पर निकाली गई गरेड़ों में गन्ने की फसल बोई जाती है । साथ ही मेंढ़ों के दोनो ओर प्याज,लहसुन, आलू राजमा या सीधी बढ़ने वाली मटर अन्तवर्तीय फसल के रूप में लगाना उपयुक्त होता है । इससे गन्ने की फसल को कोई हानि नहीं होती । इससे 6000 से 10000 रूपये का अतिरिक्त लाभ होगा। वसंत ऋतु में गरेडों की मेड़ों के दोनों ओर मूंग, उड़द लगाना लाभप्रद है । इससे 2000 से 2800 रूपये प्रति एकड़ अतिरिक्त लाभ मिल जाता है।
उर्वरक
गन्ने में 300 कि. नत्रजन (650 किलो यूरिया), 80 किलो स्फुर, (500 कि0 सुपरफास्फेट) एवं 90 किलो पोटाश (150 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति हेक्टर देवें। स्फुर व पोटाश की पूरी मात्रा बोनी के पूर्व गरेडों में देना चाहिए। नत्रजन की मात्रा अक्टू. में बोई जाने वाली फसल के लिए संभागों में बांटकर अंकुरण के समय, कल्ले निकलते समय हल्की मिट्टी चढ़ाते समय एवं भारी मिट्टी चढ़ाते समय दें # फरवरी में बोई गई फसल में तीन बराबर भागों में अंकुरण के समय हल्की मिट्टी चढ़ाते समय एवं भारी मिट्टी चढ़ाते समय दें । गन्ने की फसल में नत्रजन की मात्रा की पूर्ति गोबर की खाद या हरी खाद से करना लाभदायक होता है।
निंदाई गुड़ाई
बोनी के लगभग 4 माह तक खरपतवारों की रोकथाम आवश्यक होती है। इसके लिए 3-4 बार निंदाई करना चाहिए। रासायनिक नियंत्रण के लिए अट्राजिन 160 ग्राम प्रति एकड़ 325 लीटर पानी में घोलकर अंकुरण के पूर्व छिड़काव करें । बाद में ऊगे खरपतवारों के लिए 2-4 डी सोडियम साल्ट 400 ग्राम प्रति एकड़ 325 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें । छिड़काव के समय खेत में नमी होना आवश्यक है।
मिट्टी चढ़ाना
गन्ने को गिरने से बचाने के लिए रीजर की सहायता से मिट्टी चढ़ाना चाहिए । अक्टूबर – नवम्बर में बोई गई फसल में प्रथम मिट्टी फरवरी – मार्च में तथा अंतिम मिट्टी मई माह में चढ़ाना चाहिए । कल्ले फूटने के पहले मिट्टी नहीं चढ़ाना चाहिए।
सिंचाई
शीतकाल में 15 दिन के अंतर पर एवं गर्मी में 8-10 दिन के अंतर पर सिंचाई करें । सिंचाई सर्पाकार विधि से करें । सिंचाई की मात्रा कम करने के लिए गरेड़ों में गन्ने की सूखी पत्तियों की 4-6 मोटी बिछावन बिछायें । गर्मी में पानी की मात्रा कम होने पर एक गरेड़ छोड़कर सिंचाई करें ।
बंधाई
गन्ना न गिरे इसके लिए कतारों के गन्ने की झुंडी को गन्ने की सूखी पत्तियों से बांधना चाहिए । यह कार्य अगस्त के अंत में या सितम्बर माह में करना चाहिए।
पौध संरक्षण
गन्ने की फसल को रोग व कीटों से बचाने के लिए निम्नानुसार पौध संरक्षण उपाय करें-
कीट/रोग |
नुकसान का प्रकार | पहचान | नियंत्रण के उपाय |
इल्ली जमीन की सतह के पास से मुलायम तने में छेदकर अंदर खाते हुये ऊपर की ओर सुरंग बनाती है, जिससे पोई सूख जाती है । | विकसित इल्ली 20-25 मि.मि. लंबी रंग मटमैला सिर काला उपर बैंगनी रंग की पांच धारियां। | फोरेट-10क्र या कार्बोफ्यूरान 3क्र दानेदार दवा जड़ों के पास ड़ालें। फोरेट-10क्र 600 ग्राम या 400 ग्राम कार्बोफ्यूरान प्रति एकड़ का उपयोग करें। | |
पत्तियों की मध्य शिराओं में छेदक काटती है, बाद में तन में सुरंग बनाकर नुकसान करती है । | इल्ली 25-30 मि.मि. की सफेद मलाई रंग की होती है। | कार्बोफ्यूरान 3 जी दानेदार दवा 400 ग्राम प्रति एकड़ से जड़ों के पास ड़ाले। | |
कीट की इल्ली 30मि.मि. रंग सफेद सिर पीला भूरा# भूमिगत हिस्सों को खाती है । जमीन के पास तने में छेदकर नीचे की ओर सुरंग बनाती है। पौधा सूख जाता है। | इल्ली 30 एम.एम. सफेद रंग सिर पीला भूरा । | फोरेट-10 जी 400 ग्राम या कार्बोफ्यूरॉन 3 जी-400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से जड़ों के पास ड़ालें। | |
कीट पत्तियों का रस चूसते है । पत्तियां पीली पड़ जाती है। | भूरे पीले रंग के होते है। शिशु उपांग को एवं वयस्क नुकीली चोंच व तिकोनी संरचना वाले होते है । | मेलाथियान 50 ई.सी. का 0.05% या मोनोक्रोटोफास 36 एस.एल. का 0.04% का स्प्रे करें। जैविक नियंत्रण हेतु जब 3-5 अंडे#षिषु प्रौढ़ प्रति पत्ती हो तो एपीरिकेनियां केजी वित ककून 1600-2000 ककून या 1.6-2.0 लाख अंडे प्रति एकड़ की दर से छोड़ें। | |
पौधों की उपरी पत्तियां किनारो से पीली पड़ सूखने लगती है । गन्ना सुकड़ जाता है । वजनत्र् रस व शक्कर की मात्रा कम हो जाती है । | तने को लंबवत चीरने से गूदा लाल रंग का हो जाता है लाल रंक के ऊतकों में कुछ अंतर पर सफेद आड़ी पट्टियों का होना रोग की मुख्य पहचान है । | स्वस्थ बीज बोयें बीजोपचार द्वारा गर्म हवा यंत्र में गन्ने के टुकड़ों को 50 सेंटीग्रेड पर 4 घंटे तक रखें। बाद में ठंडा होने पर फफूंद नाशक दवा से उपचारित करें। |
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गन्ना पतला,हल्का कम रस वाला हो जाता है पौधे घास की तरह दिखते हैं । | आरंभ में पहचान कठिन है । बाद में पत्तियों के मध्य में लंबी घूमी हुई काली डंडी निकलती है । प्रारंभ में डंडी चमकदार झिल्ली से ढंकी रहती है, जिसके फटने पर वीषाणु हवा द्वारा स्वस्थ पौधों पर फैलते हैं । | दवा द्वारा बोने के पूर्व गन्ने के बीज को एगेलाल 0.5 1 कि.ग्रा. 200 ली. पानी में 5 मिनट डुबोकर रखें । निरोधक जांतिया बोयें रोग में पेंढ़ी न ले। रोगग्रस्त खेत का पानी स्वस्थ फसल में न आने दें । फसल चक्र अपनायें । |
गन्ने की पेंड़ी अधिक लाभकारी
कृषक गन्ने की पेड़ी फसल पर विशेष ध्यान नहीं देते, फलस्वरूप इसकी उपज कम प्राप्त होती है । यदि पेड़ी फसल में भी योजनाबध्द तरीके से कृषि कार्य किये जावें तो इसकी उपज भी मुख्य फसल के बराबर प्राप्त की जा सकती है । पेड़ी फसल से अधिक उपज लेने के लिए अनुशंसित कृषि माला अपनाना चाहिए। मुख्य गन्ना फसल के बाद बीज टुकड़ों से ही पुन: पौधे विकसित होते हैं जिससे दूसरे वर्ष फसल प्राप्त होती है । इसी प्रकार तीसरे साल भी फसल ली जा सकती है । इसके बाद पेड़ी फसल लेना लाभप्रद नहीं होता । यहां यह उल्लेखनीय है कि रोग कीट रहित मुख्य फसल से ही भविष्य की पेड़ी फसल से अधिक उपज ली जा सकती है । चूंकि पेड़ी फसल बिना बीज की व्यवस्था तथा बिना विशेष खेत की तैयारी के ही प्राप्त होती है, इसलिए इसमें लागत कम लगती है । साथ ही पेड़ी की फसल मुख्य फसल अपेक्षा जल्द पक कर तैयार हो जाती है । इसके गन्ने के रस में मिठास भी अधिक होती है।
किस्में
यदि कृषक नया बीज लगा रहें हो तथा आगे पेड़ी रखने का कार्यक्रम हो तो को. 1305 को. 7314, को.7318 , को. 775, को. 1148,को. 1307, को. 1287 आदि अच्छी पेड़ी फसल देने वाली किस्मों का स्वस्थ व उपचारित बीज लगावें ।
मुख्य फसल की कटाई
मुख्य फसल को फरवरी-मार्च में काटे फरवरी पूर्व कटाई करने से कम तापमान होने के कारण फुटाव कम होंगे तथा पेड़ी फसल में कल्ले कम प्राप्त होंगें। कटाई करते समय गन्ने को जमीन की सतह के करीब से कटा जाना चाहिए । इससे स्वस्थ तथा अधिक कल्ले प्राप्त होंगे। ऊंचाई से काटने से ठूंठ पर कीट व्याधि की प्रारंभिक अवस्था में प्रकोप की संभावना बढ़ जाती हैं तथा जड़े भी ऊपर से निकलती है, जो कि बाद मे गन्ने के वजन को नहीं संभाल पाती।
खेत की सफाई
जीवांश खाद बनाने के लिए पिछली फसल की पत्तियों व अवशेषों को कम्पोस्ट गड्डे में डालें ।
कटी सतह पर उपचार
कटे हुए ठूंठों पर कार्बेन्डाइजिम 550 ग्राम 250 ली. पानी में घोल कर झारे की सहायता से कटे हुए सतह पर छिड़कें इससे कीटव्याधि संक्रमण से बचाव होगा ।
खाली जगह भरना
खेत में खाली स्थान का रहना ही कम पैदावार का कारण हैं। अत: जो जगह 1 फुट से अधिक खाली हो वहां नये गन्ने के उपचारित टुकड़े लगाकर सिंचाई कर दें ।
गरेड़ो को तोड़े
सिंचाई के बाद बतर आने पर गरेड़ों के बाजू से हल चलाकर तोड़े जिससे पुरानी जड़े टूटेंगी तथा नई जड़े दी गई खाद का पूरा उपयोग करेंगी।
पर्याप्त खाद दें
बीज फसल की तरह ही जड़ फसल में भी नत्रजन 120 कि., स्फुर 32 कि. तथा पोटाश 24 कि. प्रति एकड़ दर से देना चाहिए । स्फुर एवं पोटाश की पूरा मात्रा एवं नत्रजन की अधिक मात्रा गरेड़ तोडते समय हल की सहायता से नाली में देना चाहिए । शेष आधी नत्रजन की मात्रा आखरी मिट्टी चढ़ाते समय दें। नाली में खाद देने के बाद रिजर या देसी हल में पाटा बांधकर हल्की मिट्टी चढ़ायें ।
सूखी पत्तियां बिछायें
प्राय: किसान सूखी पत्तियों को खेत में जला देते है । उक्त सूखी पत्तियों को जलाये नहीं बल्कि उन्हे गरड़ों में बिछा दें । इससे पानी की भाप बनकर उड़ने में कमी होगी । सूखी पत्तियां बिछाने के बाद 10 कि.ग्रा. बी.एर्च.सी 10% चूर्ण प्रति एकड़ का भुरकाव करें ।
अन्य कार्य
जब पौधे 1.5 मी. ऊचाई के हो जाएं तब गन्ना बंधाई कार्य करें । समन्वित नींदा नियंत्रण एवं पौधे संरक्षण उपाय करें। उपरोक्त
कम खर्च वाले उपाय करने से जड़ी फसल की पैदावार भी बीज फसल की पैदावार के बराबर ली जा सकती है ।Source