राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना
लक्ष्य
राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना के उद्देश्य निम्नलिखित है-
- प्राकृतिक आपदा, कीट या बीमारी के कारण किसी भी अधिसूचित फसल के बर्बाद होने की स्थिति में किसानों को बीमा का लाभ और वित्तीय समर्थन देना।
- किसानों को खेती के प्रगतिशील तरीके, उच्च मूल्य (आगत) इनपुट और कृषि में उच्चतर तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
- खेती से होनेवाली आय को विशेष रूप से आपदा के वर्षों में स्थायित्व देने में मदद करना।
योजना की मुख्य विशेषताएँ
1. इसके अधीन फसलें
निम्नलिखित वृहत समूहों की फसल, जिनके बारे में (1) फसल कटाई प्रयोग के बारे में समुचित वर्षों के आंकड़े उपलब्ध हैं और (2) प्रस्तावित मौसम में उत्पादन की मात्रा के आकलन के लिए आवश्यक फसल कटाई प्रयोग किये गये हों-
- खाद्य फसलें (अनाज, घास और दाल)
- तिलहन
- गन्ना, कपास और आलू (वार्षिक वाणिज्यिक या वार्षिक बागवानी फसलें)
- अन्य वार्षिक वाणिज्यिक या वार्षिक बागवानी फसलें, बशर्ते उनके बारे में पिछले तीन साल का आँकड़ा उपलब्ध हो। जिन फसलों को अगले साल शामिल किया जाना है, उनकी सूचना चालू मौसम में ही दी जायेगी।
2. इसके अधीन लाये जानेवाले राज्य व क्षेत्र
- यह योजना सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में लागू है। जो राज्य या संघ शासित प्रदेश योजना में शामिल होने का विकल्प चुनते हैं, उन्हें योजना में शामिल की जानेवाली फसलों की सूची तैयार करनी होगी।
- निकास नियम- जो राज्य इस योजना में शामिल होंगे, उन्हें कम से कम तीन साल तक इसमें बने रहना होगा।
3. इसके अधीन लाये जानेवाले किसान
- अधिसूचित क्षेत्रों में अधिसूचित फसल उगानेवाले सभी किसान, जिनमें बटाईदार, किरायेदार शामिल हैं, इस योजना में शामिल होने के योग्य हैं।
- यह किसानों के निम्नलिखित समूहों को शामिल कर सकती है-
- अनिवार्य आधार पर- वैसे सभी किसान, जो वित्तीय संस्थाओं से मौसमी कृषि कार्य के लिए कर्ज लेकर अधिसूचित फसलों की खेती करते हैं, यानी कर्जदार किसान।
- ऐच्छिक आधार पर- अन्य सभी किसान, जो अधिसूचित फसलों की खेती करते हैं, यानी गैर-कर्जदार किसान।
4. शामिल खतरे और बाहर किये गये मामले
- निम्नलिखित गैर-निषेधित खतरों के कारण फसलों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए एकीकृत आपदा बीमा किया जायेगा-
- प्राकृतिक आग और वज्रपात
- आंधी, तूफान, अंधड़, समुद्री तूफान, भूकंप, चक्रवात, ज्वार भाटा आदि।
- बाढ़, डूबना और भूस्खलन।
- सुखाड़, अनावृष्टि।
- कीट या बीमारी आदि।
- युद्ध और परमाणु युद्ध, गलत नीयत तथा अन्य नियंत्रण योग्य खतरों से हुए नुकसान को इससे बाहर रखा गया है।
5. बीमित राशि-कवरेज की सीमा
- बीमित किसान के विकल्प से बीमित फसल के सकल उत्पाद तक बीमित राशि को बढ़ाया जा सकता है। किसान अपनी फसल की कीमत को 150 प्रतिशत तक बढ़ा सकते हैं, बशर्ते फसल अधिसूचित हो और इसके लिए वे वाणिज्यिक दर पर प्रीमियम का भुगतान करने को तैयार हों।
- कर्जदार किसानों के मामले में बीमित राशि फसल के लिए ली गयी अग्रिम राशि के बराबर हो।
- कर्जदार किसानों के मामले में बीमा शुल्कों को उनके द्वारा लिये गये अग्रिम में जोड़ा जायेगा।
- फसल कर्ज वितरण के मामले में भारतीय रिजर्ब बैंक और राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के दिशा-निर्देश मान्य होंगे।
6. प्रीमियम की दरें
क्रम संख्या |
सत्र |
फसल |
प्रीमियम की दरें |
1 | खरीफ |
बाजरा व तिलहन |
बीमित राशि का 3.5 प्रतिशत या वास्तविक, जो कम हो |
अन्य फसल (अनाज व दाल) |
बीमित राशि का 2.5 प्रतिशत या वास्तविक, जो कम हो |
||
2 |
रबी |
गेहूँ |
बीमित राशि का 1.5 प्रतिशत या वास्तविक, जो कम हो |
अन्य फसल (अनाज व दाल) |
बीमित राशि का 2.0 प्रतिशत या वास्तविक, जो कम हो |
||
3 |
खरीफ व रबी |
वार्षिक वाणिज्यिक या वार्षिक बागवानी फसलें |
वास्तविक |
अनाज, घास, दलहन और तिलहन के मामलों में वास्तविक का आकलन पिछले पाँच साल की अवधि के औसत के आधार पर किया जायेगा। वास्तविक दर राज्य सरकार या संघ शासित प्रदेश के विकल्पों के आधार पर जिला, क्षेत्र या राज्य स्तर पर लागू की जायेगी।
7. प्रीमियम अनुदान
- लघु व सीमांत किसानों को प्रीमियम में 50 प्रतिशत तक राज्यानुदान दिया जायेगा, जिसे केंद्र और राज्य या संघ शासित प्रदेश की सरकार बराबर-बराबर वहन करेगी। प्रीमियम राज्यानुदान तीन से पाँच साल की अवधि के बाद वित्तीय परिणाम तथा योजना लागू किये जाने के पहले साल से किसानों की प्रतिक्रिया की समीक्षा के बाद सूर्यास्त के आधार पर वापस ली जायेगी।
- लघु और सीमांत किसानों की परिभाषा इस प्रकार होगी-
लघु किसान
- दो हेक्टेयर (पांच एकड़) या कम जमीन रखनेवाला कृषक, जैसा कि संबंधित राज्य या संघ शासित प्रदेश के कानून में कहा गया है।
सीमांत किसान
- एक हेक्टेयर (2.5 एकड़) या कम जमीन रखनेवाला किसान।
8. कवरेज की प्रकृति और बंध्य
- यदि परिभाषित क्षेत्र में बीमित फसल की वास्तविक पैदावार प्रति हेक्टेयर कम होती है, तो उस क्षेत्र के सभी किसानों द्वारा नुकसान उठाना माना जायेगा। योजना वैसी स्थिति में मदद के लिए बनायी गयी है।
- भुगतान की दर निम्नलिखित फार्मूले के अनुसार मानी जायेगी-
(उत्पादन में कमी या वास्तविक उत्पादन) X किसान के लिए बीमित राशि (उत्पादन में कमी = वास्तविक उत्पादन – परिभाषित क्षेत्र में वास्तविक उत्पादन)
9. स्वीकृति और दावों के निबटारे की प्रक्रिया
- वर्णित तारीख के अनुसार राज्य या संघ शासित प्रदेश सरकार से एक बार पैदावार का आंकड़ा मिल जाने के बाद, दावों का निबटारा बीमा अभिकरण (आइए) द्वारा किया जायेगा।
- दावों का चेक, विवरण के साथ विशिष्ट नोडल बैंकों के नाम से जारी किया जायेगा। निचले स्तर के बैंक किसानों के खातों में राशि स्थानांतरित कर उसे अपने सूचना पट्ट पर प्रदर्शित करेंगे।
- स्थानीय आपदाओं, यथा तूफान, चक्रवात, भूस्खलन, बाढ़ आदि में बीमा अभिकरण (आइए) किसानों को हुए नुकसान के आकलन के लिए एक प्रक्रिया अपनायेगा। इस क्रम में जिला कृषि केंद्र, राज्य या संघ शासित प्रदेश से परामर्श लिया जायेगा। ऐसे दावों का निबटारा बीमा अभिकरण (आइए) और बीमित के बीच होगा।
10. पुनर्बीमा कवर
- बीमा अभिकरण (आइए) द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना के लिए अंतरराष्ट्रीय पुनर्बीमा बाजार में समुचित पुनर्बीमा कवर हासिल करने का प्रयास किया जायेगा।
बीमित राशि और प्रीमियम का कार्यशील उदाहरण
धान–चावल के लिए बीमित राशि की सीमा और प्रीमियम दर
राज्य में वास्तविक पैदावार 1930 किग्रा प्रति हेक्टेयर |
राज्य में औसत पैदावार |
चावल का न्यूनतम समर्थन मूल्य |
|
वास्तविक पैदावार का मूल्य- 14200 प्रति हेक्टेयर |
वास्तिवक पैदावार का मूल्य- 26600 प्रति हेक्टेयर |
||
सामान्य प्रीमियम दर-2.5 प्रतिशत |
वास्तविक प्रीमियम दर-3.55 प्रतिशत |
बीमित राशि व प्रीमियम तालिका |
कर्जदार किसान – अ |
गैर–कर्जदार किसान – ब |
|
(क) अनिवार्य कवरेज |
कर्ज की राशि |
12000 रुपये |
शून्य |
2.5 फीसदी की दर से पूरा प्रीमियम |
300 रुपये |
शून्य |
|
पूरा प्रीमियम पर 50 फीसदी की दर से सब्सिडी |
150 रुपये |
शून्य |
|
शुद्ध प्रीमियम |
150 रुपये |
शून्य |
|
(ख) वैकल्पिक कवरेज-वास्तविक उत्पादन की कीमत तक |
12000 से 14200 रुपये तक पूरा प्रीमियम = 2.5 फीसदी की दर से 2200 (कर्जदार किसानों के लिए) |
55 रुपये |
|
गैर-कर्जदार किसानों के लिए सामान्य कवरेज |
|||
गैर-कर्जदार किसानों के लिए सामान्य कवरेज |
355 रुपये |
||
पूरा प्रीमियम पर 50 फीसदी की दर से सब्सिडी |
27.50 रुपये |
177.50 रुपये |
|
शुद्ध प्रीमियम |
27.50 रुपये |
177.50 रुपये |
|
(ग) वैकल्पिक कवरेज-औसत उत्पादन के 150 फीसदी की कीमत तक |
14200 से 26600 रुपये तक पूरा प्रीमियम = 3.55 फीसदी की दर से 12400 रु पये |
440.20 रुपये |
440.20 रुपये |
पूरा प्रीमियम पर 50 फीसदी की दर से सब्सिडी |
220.10 रुपये |
220.10 रुपये |
|
शुद्ध प्रीमियम |
220.10 रुपये |
220.10 रुपये |
|
कुल शुद्ध प्रीमियम (अ + ब + स का योग) |
397.60 रुपये |
397.60 रुपये |
उदाहरण –
एक कर्जदार किसान अ और एक गैर-कर्जदार किसान ब के पास धान-चावल की खेती के लिए एक-एक हेक्टेयर जमीन है। (लघु किसान होने के नाते वे प्रीमियम पर 50 फीसदी सब्सिडी के हकदार हैं)
किसान अ (कर्जदार) |
किसान ब (गैर–कर्जदार) |
|
कर्ज की राशि |
15000.00 रुपये |
शून्य |
कवरेज की राशि |
20000.00 रुपये |
16000.00 रुपये |
प्रीमियम का लागू दर |
2.5 फीसदी (सामान्य दर) 15000.00 रुपये तक |
2.5 फीसदी (सामान्य दर) 14200 रुपये तक |
शेष 5 हजार रु पये के लिए 3.55 प्रतिशत (वास्तविक दर) |
शेष 1800 रु पये के लिए 3.55 प्रतिशत (वास्तविक दर) |
|
प्रीमियम की पूरी राशि |
सामान्य दर पर 375 रुपये + वास्तविक दर पर 177.50 रुपये |
सामान्य दर पर 355 + वास्तविक दर पर 64 रुपये कुल 419 रु पये |
सब्सिडी |
पूरा प्रीमियम का 50 फीसदी यानी 276.25 रुपये |
पूरा प्रीमियम का 50 फीसदी यानी 209.50 रुपये |
कुल देय प्रीमियम |
276.25 रुपये |
209.50 रुपये |
वर्षा बीमा योजना
वर्षा बीमा २००५
पृष्ठभूमि
भारतीय कृषि का 65 प्रतिशत हिस्सा वर्षा पर निर्भर है। अध्ययनों ने साबित किया है कि फसलों की पैदावार में 50 प्रतिशत विविधता वर्षा में अंतर के कारण ही है। पैदावार तो अलग-अलग होती ही है, अब तो मौसम और खास कर बारिश का पूर्वानुमान भी मुश्किल हो गया है। मौसम पर नियंत्रण असंभव है, इस कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था, खास कर किसानों को होनेवाले आर्थिक नुकसान की भरपाई करना जरूरी है।
संभाव्यता
वर्षा बीमा कम बारिश के कारण फसलों की कम पैदावार की संभावना को कवर करता है। वर्षा बीमा सभी वर्ग के किसानों के लिए वैकल्पिक उपाय है, जिन्हें कम या अधिक बारिश के कारण फसलों के नुकसान की आशंका है। आरंभिक तौर पर वर्षा बीमा उन किसानों के लिए ऐच्छिक है, जिन्हें राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना का लाभ मिला हुआ है।
बीमा की अवधि
यह बीमा कम अवधि वाली फसलों के लिए जून से सितंबर तक लागू रहता है, जबकि मध्यम अवधि के फसलों के लिए जून से अक्तूबर तक और लंबी अवधि की फसलों के लिए जून से नवंबर तक लागू रहता है। यह अवधि अलग-अलग राज्यों के लिए भिन्न है। बुआई की विफलता के लिए यह 15 जून से 15 अगस्त तक लागू रहता है।
वर्षा बीमा कैसे खरीदें
प्रस्ताव फॉर्म, सभी ऋण वितरण केंद्रों, मसलन सभी सहकारी बैंकों, वाणिज्यिक तथा ग्रामीण बैंकों की पीएसी शाखाओं में उपलब्ध होता है। वर्षा बीमा योजना के तहत जमीन स्तर पर कवरेज ग्रामीण वित्त संस्थान के नेटवर्क जो एनएआईएस की तरह है, विशेषकर सहकारी संस्थाओं द्वारा ही किया जाना है। एआईसी, नेटवर्क उपलब्ध रहने पर इसका प्रत्यक्ष विपणन भी कर सकता है। इसके साथ ही गैर सरकारी संस्थाएँ, स्वयं सहायता समूह, किसान समूह से भी वर्षा बीमा कराया जा सकता है। वर्षा बीमा लेनेवाले किसानों का किसी बैंक में खाता होना जरूरी है, जहाँ से उसके लेन-देन को संचालित किया जा सके।
बीमा खरीदने की अवधि
बुआई विकल्प के लिए किसान 15 जून तक वर्षा बीमा खरीद सकते हैं, जबकि अन्य विकल्पों के लिए यह 30 जून तक उपलब्ध है।
विकल्प–1 : मौसमी वर्षा बीमा
इसका कवरेज पूरे मौसम में सामान्य वर्षा से 20 प्रतिशत कम वास्तविक वर्षा के लिए होता है। वास्तविक वर्षा जून से नवंबर के बीच होता है (लघु व मध्यम अवधि की फसलों के लिए जून से अक्तूबर तक)। भुगतान की संरचना इस तरह तैयार की गयी है कि उत्पादकता को वर्षा के भटकाव से जोड़ा जा सके। बीमित राशि प्रति हेक्टेयर की दर से संभावित नुकसान पर आधारित होती है। दावों का भुगतान वर्गीकृत पैमाने (स्लैब में) पर वर्षा में कमी के आधार पर किया जाता है।
विकल्प–2 : वर्षा वितरण सूचकांक
इसका कवरेज सामान्य वर्षा सूचकांक से 20 प्रतिशत के भटकाव के लिए होता है। वर्षा सूचकांक पूरे मौसम के लिए साप्ताहिक आधार पर तैयार होता है । यह भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के केंद्रों के बीच अलग-अलग होता है। प्रति हेक्टेयर बीमित राशि भुगतान की अधिकतम सीमा है। दावों का भुगतान वर्गीकृत पैमाने (स्लैब में) पर वर्षा में कमी के आधार पर किया जाता है।
विकल्प–3 : बुआई की विफलता
15 जून से 15 अगस्त के बीच वर्षा में 40 प्रतिशत तक की कमी का कवरेज किया जाता है। किसान के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से बीमित राशि का भुगतान किया जाता है। इस स्थिति में किसान को खतरे की शत-प्रतिशत भरपाई की जाती है। 80 प्रतिशत तक के नुकसान के लिए भी बीमा उपलब्ध है।
विकल्प– 4 : फलने–फूलने का दौर
वास्तविक वर्षा और सामान्य वर्षा में 01 अगस्त से 16 अगस्त और 30 सितंबर से 31 अक्तूबर के बीच की अवधि में 40 प्रतिशत के भटकाव के लिए कवरेज उपलब्ध है। अधिकतम नुकसान के लिए भुगतान होगा और यह वर्गीकरण के आधार पर किया जायेगा। 80 प्रतिशत तक के नुकसान के लिए भी बीमा उपलब्ध है।
बीमित राशि
बीमित राशि पहले ही तय हो जाती है और इसकी गणना उत्पादन की लागत तथा कीमत के अंतर से की जाती है। बुआई की विफलता की स्थिति के लिए, लागत और नुकसान की गणना के बाद, मौसम के अंत में पूर्व निर्धारित राशि का बीमा होता है।
प्रीमियम
प्रीमियम फसलों और विकल्पों के अनुरूप अलग-अलग हो सकता है। प्रीमियम की दरें लाभ की गणना पर भी तय होती है।
दावो के भुगतान की समय सीमा और प्रक्रिया
दावो के निबटारे की प्रक्रिया स्वचालित होती है। किसी नुकसान के लिए दावा करने की जरूरत नहीं पड़ती है। सामान्यतौर पर एक माह के बाद दावो का भुगतान कर दिया जाता है।
अक्सर पूछे जानेवाले सवाल (FAQ)
सवाल–1 बीमा क्या है।
बीमा एक ऐसी तकनीक है, जिसमें एक व्यक्ति के नुकसान की भरपाई बहुत से लोगों द्वारा इस मद में जमा की गयी छोटी राशियों के योग से की जाती है।
सवाल–2 फसल बीमा क्या है ?
फसल बीमा किसानों को उनके नियंत्रण से बाहर के कारणों से पैदावार में होनेवाले नुकसान की भरपाई करता है।
सवाल–3 वर्षा बीमा क्या है ?
वर्षा बीमा किसानों को अनावृष्टि में संभावित कमी से होनेवाले नुकसान की भरपाई करता है।
सवाल– 4 वर्षा बीमा क्या है ?
वर्षा बीमा किसानों को वर्षा के कारण होनेवाले नुकसान की भरपाई करता है। एआइसी ने खरीफ 2004 के दौरान वर्षा बीमा 2004 लागू किया था। शुरुआत में इसे पायलट परियोजना का रूप दिया गया और चार राज्यों के 20 इलाकों में लागू किया गया। इसके बाद खरीफ 2005 के दौरान वर्षा बीमा 2005 को देश के 10 राज्यों के 130 जिलों और वर्षा आधारित क्षेत्रों में लागू किया गया। इसके तहत सभी मुख्य फसलों को रखा गया। एआइसी ने खरीफ 2006 के दौरान इस योजना को 16 राज्यों के 140 वर्षा आधारित क्षेत्रों में लागू किया जा रहा है, ताकि कुछ और फसलों को इसके अधीन लाया जा सके।
सवाल–5 वर्षा बीमा एऩएआइएस से अलग कैसे है ?
एनएआइएस फसल आधारित योजना है। इसमें किसानों को किसी खास इलाके में किसी निश्चित फसल की निश्चित पैदावार से कम पैदावार होने पर मुआवजा दिया जाता है। वर्षा बीमा, वर्षा आधारित फसल बीमा योजना है, जिसमें किसी खास इलाके में अनावृष्टि के कारण फसल बरबाद होने पर मुआवजा दिया जाता है।
सवाल–6 वर्षा बीमा से क्या लाभ हैं ?
वर्षा बीमा के कई लाभ है। मुख्य लाभ है –
(क) अचानक पैदा हुई स्थिति, मसलन कम बारिश को स्वतंत्र रूप से मापा जा सकता है।
(ख) इसमें दावो का भुगतान त्वरित होता है, यहां तक कि बीमा अवधि के एक पखवाड़े के भीतर दावो का निबटारा कर दिया जाता है।
(ग) कर्जदार या गैर-कर्जदार, लघु या सीमांत, मालिक या किरायेदार, बटाईदार या ठेकेदार, सभी किस्म के किसान इस योजना का लाभ उठा सकते हैं।
(घ) इसमें पारदर्शी, उद्देश्यपूर्ण और लचीला प्रीमियम और मुआवजा संरचना है, जिसे कृषि समुदाय की जरूरतों को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है।
(ङ) इसमें कवरेज के कई विकल्प मौजूद है, जैसे बुआई विफलता, मौसमी वर्षा, वर्षा सूचकांक, फलने-फूलने का चरण आदि।
(च) वर्षा बीमा का भुगतान पारदर्शी, सक्षम और प्रत्यक्ष होता है। इसलिए यह अधिक वैज्ञानिक, सही और प्रभावी है।
(छ) वर्षा बीमा को फसल या क्षेत्र के लिए भी तैयार किया जा सकता है, जहां का पिछला आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
सवाल–7 वर्षा बीमा के तहत क्या विकल्प उपलब्ध है ?
वर्षा बीमा के तहत निम्नलिखित विकल्प उपलब्ध है –
विकल्प–1 : मौसमी वर्षा बीमा
इसका कवरेज पूरे मौसम में सामान्य वर्षा से 20 प्रतिशत कम वास्तविक वर्षा के लिए होता है। वास्तविक वर्षा जून से नवंबर के बीच होता है (लघु व मध्यम अवधि की फसलों के लिए जून से अक्तूबर तक)। भुगतान की संरचना इस तरह तैयार की गयी है कि उत्पादकता को वर्षापात के भटकाव से जोड़ा गया है। बीमित राशि प्रति हेक्टेयर की दर से संभावित नुकसान पर आधारित होती है। दावो का भुगतान वर्गीकृत पैमाने (स्लैब में) पर वर्षा में कमी के आधार पर किया जाता है।
विकल्प–2 : वर्षापात वितरण सूचकांक
इसका कवरेज सामान्य वर्षा सूचकांक से 20 प्रतिशत के भटकाव के लिए होता है। वर्षापात सूचकांक पूरे मौसम के लिए साप्ताहिक आधार पर तैयार होता है । यह भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के केंद्रों के बीच अलग-अलग होता है। प्रति हेक्टेयर बीमित राशि भुगतान की अधिकतम सीमा है। दावो का भुगतान वर्गीकृत पैमाने (स्लैब में) पर वर्षा में कमी के आधार पर किया जाता है।
विकल्प–3 बुआई की विफलता
15 जून से 15 अगस्त के बीच वर्षा में 40 प्रतिशत तक की कमी का कवरेज किया जाता है। किसान के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से बीमित राशि का भुगतान किया जाता है। इस स्थिति में किसान को खतरे की शत-प्रतिशत भरपाई की जाती है। 80 प्रतिशत तक के नुकसान के लिए भी बीमा उपलब्ध है।
विकल्प–4 : फलने–फूलने का दौर
वास्तविक वर्षा और सामान्य वर्षा में 01 अगस्त-16 अगस्त और 30 सितंबर से 31 अक्तूबर के बीच की अवधि में 40 प्रतिशत के भटकाव के लिए कवरेज उपलब्ध है। अधिकतम नुकसान के लिए भुगतान होगा और यह वर्गीकरण के आधार पर किया जायेगा। 80 प्रतिशत तक के नुकसान के लिए भी बीमा उपलब्ध है।
सवाल – 8 : क्या मैं अपनी फसल के लिए एक से अधिक कवरेज ले सकता हूं ?
प्राथमिकता के आधार पर आप एक से अधिक विकल्प नहीं चुन सकते। यदि आप पूरे मौसम का विकल्प चुनते हैं, तो आप मौसमी वर्षा बीमा या वर्षा वितरण सूचकांक लीजिये। यदि आप सीमित अवधि का विकल्प चाहते हैं, तो आपको बुआई विफलता या फलने-फूलने के चरण वाला विकल्प लेना चाहिए। दूसरे शब्दों में बुआई विफलता या फलने-फूलने के चरण वाला विकल्प पूरे मौसम के विकल्प में समाहित है।
सवाल – 9 : वर्षा बीमा कौन ले सकता है ?
वर्षा बीमा कोई भी किसान, जो फसल की बुआई करता है और अनावृष्टि की स्थिति में जिसे आर्थिक नुकसान होने की आशंका है तथा उसके पास प्रीमियम देने की क्षमता है, ले सकता है।
सवाल–10 क्या मैं अपनी फसल को एनएआईएस और वर्षा बीमा, दोनों से कवर कर सकता हूं ?
एनएआईएस अधिसूचित फसल के लिए कर्ज लेकर खेती करनेवाले किसानों के लिए अनिवार्य है और वर्षा बीमा किसान द्वारा फसल की पूरी अवधि के लिए नहीं लिया जा सकता है।
एक किसान, जो बहुत सी फसल उगाता है और किसी खास फसल के लिए कर्ज लेता है, अपनी किसी ऐसी फसल के लिए, जिसके लिए कर्ज नहीं लिया गया हो, वर्षा बीमा ले सकता है। इसी तरह कोई किसान, जो एक ही फसल उगाता है और अपनी खेत के किसी खास हिस्से के लिए कर्ज ले रखा हो, उस फसल का वर्षा बीमा करा सकता है। इसे निम्नलिखित उदाहरण से समझा जा सकता है-
उदाहरण 1- एक किसान एक मौसम में दो फसल धान और जवार की खेती करता है। उसने धान के लिए कर्ज लिया है, लेकिन जवार के लिए कर्ज नहीं लिया है। वह जवार के लिए वर्षा बीमा ले सकता है।
उदाहरण 2- एक किसान पांच एकड़ में धान की खेती करता है। उसने तीन एकड़ की खेती के लिए कर्ज ले रखा है। उसके शेष बचे दो एकड़ के लिए वर्षा बीमा लिया जा सकता है।
सवाल–11 : हम वर्षा बीमा कहां खरीद सकते हैं ?
प्रस्ताव फॉर्म सभी ऋण वितरण केंद्रों, मसलन सभी सहकारी बैंकों, वाणिज्यिक तथा ग्रामीण बैंकों की पीएसी शाखाओं में उपलब्ध है। वर्षा बीमा का कवरेज अधिकांशतः एनएआईएस की तरह ग्रामीण वित्त संस्थानों, विशेषकर सहकारी संस्थाओं द्वारा ही किया जाना है। एआइसी नेटवर्क उपलब्ध रहने पर इसका प्रत्यक्ष विपणन भी कर सकता है। इसके साथ ही गैर सरकारी संस्था, स्वयं सहायता समूह, किसान समूह से भी वर्षा बीमा कराया जा सकता है। किसान इनमें से किसी की भी नजदीकी शाखा से संपर्क कर सकते हैं।
सवाल–12 : मैं वर्षा बीमा कब खरीद सकता हूं ?
आप सामान्य तौर पर खरीफ मौसम के दौरान 30 जून तक वर्षा बीमा खरीद सकते हैं। हालांकि यदि आप लघु अवधि की फसल उगा रहे हैं या बुआई विफलता विकल्प लेते हैं, तो इसकी अंतिम तारीख 15 जून है, जबकि फलने-फूलने के चरण के लिए अंतिम तारीख 15 अगस्त है।
सवाल–13 : मेरे बीमे की सीमा क्या होगी ?
हरेक विकल्प के लिए बीमित राशि की गणना पहले ही की जा चुकी है। आम तौर पर यह उत्पादन की औसत लागत और उत्पादन की कीमत है। हालांकि बुआई विफलता विकल्प में बुआई की अवधि खत्म होने तक लागत खर्च का ध्यान रखा जाता है और पूर्व निर्धारित होता है।
सवाल–14 : दावो के निष्पादन में कितना समय लगता है ?
आमतौर पर दावो का निष्पादन मौसम विज्ञान केंद्र से वर्षा का आंकड़ा मिलने के एक पखवाड़े के भीतर हो जाता है।
सवाल–15 : बीमा की अवधि क्या है ?
बीमा की अवधि किसी खास फसल के लिए चुने गये विकल्प का समय है, जिससे वर्षा बीमा के तहत लिये गये वर्षापात की अवधि का सूचक माना जाता है।
सवाल–16 : क्या हम समूह में वर्षा बीमा खरीद सकते हैं ?
हां, यदि किसान समूह में इसे खरीदना चाहे, तो वे किसी खास फसल के लिए ऐसा कर सकते हैं। इसके लिए एक ही प्रस्ताव फॉर्म बनाकर और समूह के किसानों का व्यक्तिगत विवरण देना होगा।
सवाल–17 : दावो की प्रक्रिया क्या है ?
दावे स्वचालित ढंग से निबटाये जाते हैं। बीमित किसान को किसी किस्म का दावा दायर करने की जरूरत नहीं होती। बीमा की अवधि समाप्त होते ही मौसम विज्ञान केंद्र से वर्षा के आंकड़े मंगाये जाते हैं और उनका तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। इसके बाद परिणाम की जानकारी सार्वजनिक की जाती है और फिर किसी खास फसल के लिए वर्षापात का आंकड़ा तैयार किया जाता है। इसके बाद यदि वर्षा कम पाया जाता है, तो बीमित किसान को दावे के योग्य माना जाता है।
कॉफी उत्पादकों के लिए वर्षा बीमा योजना
मौसम आधारित फसल बीमा योजना
मौसम आधारित फसल बीमा के बारे में
मौसम आधारित बीमे का लक्ष्य, बीमित किसानों को मौसम की विपरीत परिस्थितियों जैसे बारिश, गर्मी, ओलावृष्टि, नमी आदि के प्रकोप के फलस्वरूप फसल के अनुमानित नुकसान से होने वाले सम्भावित आर्थिक नुकसान से उत्पन्न कठिनाइयों को दूर करना है।
मौसम आधारित बीमा व फसल बीमा के बीच अंतर
फसल बीमा विशिष्ट रूप से खेतिहर को फसल की उपज में कमी के लिए सुरक्षित करता है, मौसम पर आधारित फसल बीमा इस तथ्य पर आधारित है कि मौसम की परिस्थितियां फसल उत्पादन को तब भी प्रभावित करती है जबकि उत्पादक ने अच्छी पैदावार लेने के लिए पूरी सावधानी बरती हो। फसल की उपज के साथ मौसम के मानदण्डों का परस्पर ऐतिहासिक सम्बन्ध हमें मौसम की उस दहलीज़ (सतर्कता बिन्दुओं) के विकास में सहायता करता है, जिनसे परे फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगता है। खेतिहरों को सतर्कता बिन्दुओं के तहत होने वाले नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए बीमा निवेश से निश्चित समय में लाभ के तरीके विकसित किए गए हैं। दूसरे शब्दों में, “खेतिहरों को फसल के नुकसान पर मुआवज़े के लिए मौसम पर आधारित फसल बीमा, फसल उपज से जुड़े मौसम के मापदण्डों को ‘छद्म’ के रूप में इस्तेमाल करता है”।
मौसम बीमा क्रियान्वयन के क्षेत्र
मौसम बीमा, देश में खरीफ 2003 के मौसम से प्रयोग के तौर पर आजमाया गया है। कुछ राज्य, जिनमें इसे प्रयोग के तौर पर आजमाया गया है, वे हैं- आन्ध्र प्रदेश, छत्तीसगढ, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान आदि।
राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना व मौसम आधारित फसल बीमा के बीच अंतर
मौसम पर आधारित फसल बीमा योजना (WBCIS) एक विशिष्ट मौसम पर आधारित बीमा उत्पाद है जिसे मौसम की विपरीत परिस्थितियों के फलस्वरूप होने वाले फसल के नुकसान के विरुद्ध बीमा सुरक्षा प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह खरीफ के दौरान होने वाली विषम बारिश (कम या अधिक दोनों) तथा रबी के दौरान मौसम के विषम मानदण्ड यथा ओलावृष्टि, गर्मी, सापेक्षिक आर्द्रता, बे-मौसम बरसात आदि के मामले में भुगतान प्रदान करता है। यह उपज की गारंटी का बीमा नहीं है।
राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना व मौसम आधारित फसल बीमा योजना की तुलना
क्रमांक |
राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना(NAIS) |
मौसम आधारित फसल बीमा योजना (WBCIS) |
1 |
सभी सम्भव जोखिम शामिल (अकाल, अतिवृष्टि, बाढ, आँधी, कीट प्रकोप आदि) |
मौसम से सम्बन्धित मानदण्डों की जोखिम यथा बारिश, पाला, गर्मी (तापमान), नमी आदि आवृत्त होती है। लेकिन ये पैरामीट्रिक मौसम के मानदण्ड फसल के नुकसान के लिए ज़्यादातर ज़िम्मेदार प्रतीत होते हैं |
2 |
डिज़ाइन करने में आसान, यदि उपज का 10 वर्षों तक के ऐतिहासिक डाटा उपलब्ध हो |
मौसम सूचकांक के डिज़ाइन तथा मौसम सूचकांक के साथ उपज के नुकसान का परस्पर सम्बन्ध स्थापित करने में तकनीकी चुनौतियां। मौसम के 25 वर्षों तक के ऐतिहासिक आंकडों की आवश्यकता होती है |
3 |
उच्च आधार जोखिम [क्षेत्र (ब्लॉक/तहसील) तथा किसानों की व्यक्तिगत उपज के बीच का अंतर] |
मौसम से जुड़ा आधार जोखिम, बारिश के लिए ज़्यादा हो सकता है तथा पाला, गर्मी, नमी आदि जैसों के लिए मध्यम |
4 |
वस्तुनिष्ठता तथा पारदर्शिता तुलनात्मक रूप से कम है |
वस्तुनिष्ठता तथा पारदर्शिता तुलनात्मक रूप से अधिक है |
5 |
गुणवत्ता में नुकसान क्षतिपूर्ति से परे है |
गुणवत्ता में नुकसान कुछ हद तक मौसम सूचकांक द्वार परिलक्षित हो जाता है |
6 |
नुकसान के आकलन में अत्यधिक खर्च |
नुकसान के आकलन में कोई खर्च नही |
7 |
दावों के निबटारे में देरी |
दावों का त्वरित निबटारा |
8 |
सरकार की वित्तीय देयता निरंतर स्वरूप की है, क्योंकि वह दावों की सब्सिडी का पोषण करती है |
सरकार की वित्तीय देयता पहले से बजट में ली जा सकती है एवं सीमित अवधि की हो सकती है, क्योंकि वह प्रीमियम सब्सिडी का पोषण करती है |
मौसम आधारित फसल बीमा योजना की कार्यप्रणाली
मौसम आधारित फसल बीमा योजना (WBCIS) “एरिया अप्रोच” की परिकल्पना पर काम करती है यानि क्षतिपूर्ति के उद्देश्यों पर, एक ‘संदर्भ ईकाई क्षेत्र या रेफरंस यूनिट एरिया (RUA)’ बीमे की सजातीय इकाई मानी जायेगी। मौसम शुरू होने के पहले यह ‘संदर्भ ईकाई क्षेत्र (RUA)’ राज्य सरकार द्वारा सूचित की जायेगी एवं उस क्षेत्र में एक विशेष फसल के लिए सभी बीमित कृषक दावों के आकलन के लिए सममूल्य पर माने जाएंगे। प्रत्येक ‘संदर्भ ईकाई क्षेत्र (RUA)’ एक रेफरंस वेदर स्टेशन (RWS) से जुड़ी है, जिसके आधार पर वर्तमान मौसम के आंकड़े एवं दावों का व्यवहार किया जायेगा। चालू मौसम में यदि मौसम की कोई भी विपरीत परिस्थिति हो तो बीमित व्यक्तियों को भुगतान की पात्रता होगी, ‘पे आउट स्ट्रक्चर’ में परिभाषित मौसम की सतर्कता बिन्दु एवं योजना की शर्ते लागू होने पर। “क्षेत्र पद्धति” , “व्यक्तिगत पद्धति” के विरुद्ध है, जिसमें नुकसान उठाने वाले प्रत्येक कृषक के लिए दावे का आकलन किया जाता है।
रेफरेंस वेदर स्टेशन की अवस्थिति व लाभान्वित होने की स्थिति
एक छोटे से भौगोलिक क्षेत्र में भी, एक दिन में, मौसम अलग हो सकता है, लेकिन एक पखवाड़े या महीने या मौसम में यह समान रूप से वितरित हो जाता है। विकासखण्ड/तहसील के स्तर पर, आम तौर पर RWS, RUA के भीतर व्यक्तिगत कृषकों द्वारा अनुभव किए गए मौसम को प्रतिबिम्बित करता है।
मौसम आधारित फसल बीमा योजना प्राप्त करने की योग्यता
किसी भी ‘संदर्भ ईकाई क्षेत्र (RUA)’ के प्रायोगिक क्षेत्रों में फसल (योजना के अंतर्गत बीमा योग्य) उगाने वाले सभी खेतिहरों (साझेदारी में खेती करने वाले एवं काश्तकारी खेतिहरो समेत) बीमा लेने के पात्र होंगे। लेकिन यह योजना, उन सभी ऋण प्रदाता बैंको/वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेने वाले कृषकों के लिए अनिवार्य है, जिनके पास विशेष फसल के लिए अनुमोदित ऋण सीमा है एवं ‘अन्यों’ के लिए वैकल्पिक।
बीमा सुरक्षा धन (बीमित राशि) की गणना विधि
मोटे तौर पर बीमा सुरक्षा धन (बीमित राशि), फसल उगाने के लिए बीमित व्यक्ति द्वारा खर्च की जाने वाली अनुमानित राशि होती है। कृषि बीमा कंपनी द्वारा राज्य सरकार के विशेषज्ञों के परामर्श से हर फसल के मौसम की शुरुआत में प्रति इकाई क्षेत्र (हेक्टेयर) बीमित राशि की पूर्व-घोषणा की जाती है; तथा यह विभिन्न ‘संदर्भ ईकाई क्षेत्र (RUA)’ में विभिन्न फसलों के लिए अलग-अलग हो सकती है। बीमे के लिए इस्तेमाल किए गए मुख्य मौसम मानदण्डों के अनुसार बीमित राशि का मौसम के मानदण्डों के सापेक्षिक महत्व के अंतर्गत और विभाजन होता है।
प्रीमियम दर
प्रीमियम दरें ‘अनुमानित नुकसान’ पर निर्भर करती हैं, जो कि एक फसल की आदर्श मौसम आवश्यकताओं के सन्दर्भ में लगभग 25-100 वर्षों के ऐतिहासिक काल के मौसम मानदण्ड़ के स्वरूपों पर निर्भर करती हैं। दूसरे शब्दों में, प्रीमियम दर, हर ‘संदर्भ ईकाई क्षेत्र (RUA)’ एवं हर फसल के हिसाब से अलग हो सकती है। लेकिन प्रीमियम दरें किसानों के लिए आवरण की तरह होती है; तथा आवरण से परे प्रीमियम (दरें) केन्द्रीय तथा सम्बन्धित राज्य सरकार द्वारा 50:50 आधार पर वहन की जाती है। किसानों द्वारा विभिन्न उपजों के लिए चुकायी जाने वाली प्रीमियम दरें निम्नलिखित है:
भोज्य फसलें एवं तिलहन
क्रमांक |
फसलें |
बीमित किसान द्वारा देय प्रीमियम |
1 |
गेहूं |
1.5% या बीमांकिक दर, जो भी कम हो |
2 |
अन्य फसलें (अन्य अनाज, ज्वार, बाजरा, दालें, तिलहन) |
2.0% या बीमांकिक दर, जो भी कम हो |
वार्षिक व्यावसायिक/ बागबानी की फसलें
क्रमांक |
प्रीमियम स्तर |
सब्सिडी/ प्रीमियम |
1 |
2% तक |
कोई सब्सिडी नहीं |
2 |
>2 – 5% |
25%, बशर्ते 2% न्यूनतम निवल प्रीमियम कृषक द्वारा देय हो |
3 |
>5 – 8% |
40%, बशर्ते 3.75% न्यूनतम निवल प्रीमियम कृषक द्वारा देय हो |
4 |
> 8% |
50%, बशर्ते 4.8% न्यूनतम निवल प्रीमियम एवं 6% अधिकतम निवल प्रीमियम कृषक द्वारा देय हो |
ऋण लेने वाले बीमित कृषक के मामले में देय निवल प्रीमियम, ऋणदाता बैंक द्वारा वित्तपोषित की जाती है।
मौसम आधारित खरीफ फसल बीमा योजनाः 2009(केवल बिहार के किसानों के लिए)
बिहार राज्य के किसानों को मौसम की विषमताओं द्वारा उपज की संभावित क्षति से भरपाई करने हेतु बीमा योजना
बीमित क्षोत्र एवं बीमित फसल के लिए अधिसूचित जिला
बीमित फसल |
चिन्हित जिला |
अधिसूचित अंचल |
धान |
पटना, नालन्दा, रोहतास, भभुआ, गया, नवादा, औरंगाबाद, अररिया एवं दरभंगा |
अधिसूचित जिलों के सभी अंचल |
मक्का |
भागलपुर एवं खगड़िया |
अधिसूचित जिलों के सभी अंचल |
यह बीमा सुविधा कौन प्राप्त कर सकता हैः
- अनिवार्यः यह उन किसानों के लिए है जिनके पास अधिसूचित अंचल में अधिसूचित फसलों को उगाने हेतु अनुमोदित ऋण सीमा 21 जुलाई, 2009 तक है।
- ऐच्छिकः अऋणी किसान जो अधिसूचित फसल उगा रहे हैं। ऐसे किसान नजदीकी बैंकों द्वारा यह फसल बीमा प्राप्त कर सकते हैं।
बीमा राशिः
इसके अंतर्गत धान एवं मक्का के लिए बीमा राशि 20 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से निर्धारित है।
किसान द्वारा देय प्रीमियमः
इस बीमा योजना को प्राप्त करने हेतु किसानों को धान एवं मकई की खेती के लिए बीमा राशि का 2.5 प्रतिशत (551.50 रुपये प्रति हेक्टेयर) का भुगतान करना होगा।
(कुल देय प्रीमियम पर 10.30 प्रतिशत सेवा कर सहित)।
दावा अवधिः
भुगतान/दावा निपटारा एक स्वचालित प्रक्रिया है जो कि संदर्भ मौसम (रेफरेन्स वेदर स्टेशन) पर रिकार्ड की गई रीडिंग पर आधारित है।
बीमा आवेदन की अंतिम तिथिः
इस बीमा सुविधा को प्राप्त करने के लिए ऐसे किसान जो पहले कभी ऋण नहीं लिया है, वे 30 जून, 2009 तक एवं वैसे किसान जो बैंकों से पहले ऋण ले चुके हैं वे 31 जुलाई, 2009 तक अपना आवेदन जमा कर सकते हैं। ( बीमा कराने हेतु निकटतम बैंक शाखा/प्राथमिक कृषि सहकारी समिति से फॉर्म तथा मार्गदर्शन लें)
अन्य मुख्य विशेषताएँ
किसानों के क्षतिपूर्त्ति का भुगतान बीमा/जोखिम अवधि के समाप्त होने के 45 दिनों के भीतर हो जाता है। दावा स्वयं ही किसाने के बैंक खाते में जमा हो जाता है।
कॉफी उत्पादकों के लिए वर्षा बीमा योजना
फसल बीमा के संबंध में किसानों को किसी प्रकार की कठिनाई हो, तो निम्न पता पर सम्पर्क कर सकते हैं–
क्षेत्रीय कार्यालय,
एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी ऑफ इंडिया लिमिटेड,
पटना, दूरभाष संख्या- 0612 2216426
सुविधा हेतु उपरोक्त पते पर अपना नाम, पता एवं संबंधित बैंक शाखा का नाम शिकायत के रूप में दर्ज करा सकते हैं।
मौसम आधारित रबी फसल बीमा
पॉलिसी की विशेषताएं
- दिसम्बर तथा अप्रैल के बीच मौसम के विभिन्न मापदण्डों, जैसे ओले, गर्मी, सापेक्षिक आर्द्रता, बारिश के विषम विचलन के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है।
- वर्गीय बीमा उत्पाद जो गेहूं, आलू, जौ, सरसों, चना जैसे फसलों का बीमा प्रदान करता है।
- अधिकतम जवाबदेही उपजाने के खर्च से जुड़ी होती है तथा फसल के अनुसार अलग-अलग होता है।
- दावों के त्वरित भुगतान में मदद करता है, जैसे कि बीमा अवधि के 4-6 हफ्तों के अन्दर
गेहूं, सरसों, चना, आलू, मसूर, जौ एवं धनिया मुख्यतः उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान राज्यो में रबी मौसम के दौरान उपजायी जाने वाली मुख्य फसलें है। ये फसलें मौसम के कारकों, यथा अतिवृष्टि, ओले एवं तापमान के बदलाव आदि के प्रति अति-संवेदनशील होते हैं।
मौसम बीमा (रबी) उन व्यक्तियों एवं संस्थाओं को असरदार जोखिम प्रबन्धन प्रदान करने का तंत्र है जिनके विषम मौसम परिस्थितियों से सर्वाधिक प्रभावित होने की सम्भावना हो। मौसम सूचक बीमे के सर्वाधिक महत्वपूर्ण लाभ हैं:
- विषम मौसम परिस्थितियों जैसी सतर्कता बिन्दु की घटनाएं स्वतंत्र रूप से सत्यापित एवं मापी जा सकती है।
- यह क्षतिपूर्ति के त्वरित निबटारे में सहायक है, क्षतिपूर्ति काल समाप्ति के बस एक पखवाड़े बाद भी।
- सभी पैदावार लेने वाले, छोटे/ बहुत छोटे; स्वामी या बटाई वाले/ साझेदारी में खेती करने वाले इस मौसम बीमा का लाभ ले सकते हैं।
कवरेज
एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी ऑफ इंडिया लिमिटेड (AIC), इन कारणों से सम्भावित घटती फसल की पैदावार के एवज में बीमित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति करती है। सतर्कता बिन्दु से ऊपर अधिकतम तापमान (° C) तथा/या सतर्कता बिन्दु से सामान्य के ऊपर तापमान सीमा में विचलन तथा/या सतर्कता बिन्दु के नीचे न्यूनतम तापमान (° C) तथा/ या 4°C से नीचे न्यूनतम तापमान की वजह से पाला तथा/या सतर्कता बिन्दुओं (दैनिक/साप्ताहिक/मासिक आधार पर गणना किए गए) से अधिक वर्षा तथा/या सतर्कता बिन्दु से नीचे खिली धूप के घण्टे।
बीमा काल
बीमा दिसम्बर से अप्रैल के महीनों के बीच संचालित होता है। लेकिन काल अलग-अलग मानदंडों एवं फसलों के लिए अलग-अलग होता है।
दावा प्रक्रिया नोट
दावे स्वचालित होते हैं; एवं उनका निबटारा प्रत्येक फसल के लिए अलग-अलग सम्बद्ध एजेंसियों/ संस्थाओं से प्राप्त वास्तविक अधिकतम तापमान, न्यूनतम तापमान, वर्षा एवं बी.एस.एच के आंकडों के आधार पर होगा। भुगतान योग्य स्थिति में होने पर क्षेत्र के सभी बीमित उपजाने वालों को (सन्दर्भित मौसम केन्द्र के अधिकार क्षेत्र में), बीमित फसल उगाने के लिए दावों का भुगतान समान दर पर किया जाएगा।
नोट: उपर्युक्त उत्पाद सारांश केवल सूचना के उद्देश्य से है तथा आवश्यक नहीं है कि यह वास्तविक पॉलिसी/ योजना से शब्दश: मेल खाये।
आलू की फसल बीमा
पॉलिसी की विशेषताएं
- वृक्षों की संख्या से जुड़े खतरों पर आधारित विरला पैरामीट्रिक बीमा
- आलू उगाए जाने वाले क्षेत्रों में आलू उत्पादकों की ठेके पर की जाने वाली खेती के लिए उपलब्ध
- अधिकतम जवाबदेही 25,000 रुपये प्रति एकड़
- “उगाने वाले – उत्पादक – वित्तपोषक – बीमा करने वाले” की साझेदारी के मॉडल पर आधारित
यह पॉलिसी देश के विभिन्न भागों में आलू उगाए जाने वाले क्षेत्रों में किसानों द्वारा उगाई जाने वाली आलू की फसल पर लागू है।
कवर का विषय क्षेत्र
यह रोपण के एक हफ्ते बाद से शुरू होकर फसल कटाई के 7 दिनों पहले तक निवेश मूल्य कवर है। बीमा, बीमित जोखिमों के कारण बीमित व्यक्ति द्वारा क्षति या नुकसान के कारण (पौधों के सूखने/ संपूर्ण क्षति के फलस्वरूप वृक्षों की संख्या में निर्धारित सीमा से कमी) सहे गए आर्थिक नुकसान के लिए निवेश मूल्य के सन्दर्भ में क्षतिपूर्ति प्रदान करने के लिए है। यह बीमित जोखिमों के परिणामस्वरूप आलू की फसल की उपज/ उत्पादन के लिए लागू नहीं होगा। पॉलिसी, बीमित व्यक्ति को बीमाकाल के दौरान प्राकृतिक आपदाओं, जैसे बाढ़, चक्रवात, तूफान, पाला, कीट एवं बीमारियों (लेट ब्लाइट को छोड़कर) आदि की वज़ह से आलू की फसल को नुकसान के कारण वृक्षों की संख्या में निर्धारित सीमा से कमी के लिए अकेले या एक साथ कवर तथा क्षतिपूर्ति (दावा आकलन प्रक्रिया के अनुसार) प्रदान करेगी।
दावा प्रक्रिया
कोई भी नुकसान या हानि होने पर, बीमित व्यक्ति कम्पनी को 48 घण्टों के अन्दर सूचित करेगा (सीधे या वित्त पोषक बैंक या भागीदार संगठन के ज़रिये) एवं तत्पश्चात नुकसान या हानि के 15 दिनों के भीतर लिखित रूप से दावा प्रस्तुत करेगा। ऐसे किसी भी दावे के सन्दर्भ में बीमित व्यक्ति एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी ऑफ इंडिया लिमिटेड (AIC) को सभी जायज़ जानकारी, सहयोग एवं प्रमाण करेगा। इस पॉलिसी के अंतर्गत प्रदत्त बीमे का प्रति इकाई क्षेत्र कुल निवेशित मूल्य, पॉलिसी में निर्दिष्ट अनुसार राशि मानी जाएगी, जो कि खेती की दशा के अनुसार प्रतिशत पर खर्च की गई मानी जाएगी। इस पॉलिसी के अंतर्गत आकलन योग्य नुकसान की मात्रा शर्तों, रक्षा करने, बहुतायत एवं अन्य कटौती के अनुसार ऐसी राशि होगी जैसी कि सूखे/ क्षतिग्रस्त पौधे प्रति एकड़ का प्रतिशत प्रति एकड़ निवेश राशि में लगाकर, जिस अवस्था में बीमित जोखिम नुकसान कर रहा है।
दावे के निबटारे के लिए बीमित व्यक्ति को एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी ऑफ इंडिया लिमिटेड (AIC) द्वारा विशिष्ट रूप से आग्रह किए गए बीमा प्रमाण एवं कोई भी अन्य दस्तावेज़/ प्रमाण देना होगा।
बायो ईन्धन वृक्ष/ पेड़ का बीमा
विश्व की ऊर्जा आवश्यकताओं की लगभग 80 प्रतिशत पूर्ति जीवाश्म ईन्धन द्वारा हो रही है जो कि दिनों-दिन बढ़ती मांग की वज़ह से खत्म होते जा रहे हैं। इससे ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत ढूंढे जा रहे हैं, जिनमें सबसे आशाजनक बायो-ईन्धन है। इस पर्यावरण-मित्र ईन्धन को बढ़ावा देने के लिए सरकार बायो-ईन्धन वृक्ष/पेड़ उगाने वालों को विभिन्न प्रोत्साहन एवं सब्सिडी प्रदान कर रही है ताकि ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त की जा सके।
पॉलिसी की विशेषताएं
- जट्रोफा सहित छः विभिन्न वृक्ष/पेड़ों की प्रजातियों का विरला बीमा
- अकाल के जोखिम के लिए वैकल्पिक कवर की सुविधा
- अधिकतम दावेदारी खेती के मूल्य तथा वृक्षों/ पेड़ों से जुडी है एवं प्रजातियों के अनुसार अलग-अलग होती है।
उपयुक्तता
यह बीमा योजना उन बायो-ईन्धन वृक्ष/ पेड़ उगाने वालों एवं उत्पादकों के लिए लागू होती है, जिनके उत्पाद/ उपज निर्दिष्ट खतरों से प्रभावित होने की संभावना है। इस पॉलिसी में शामिल वृक्ष/ पेड़ है: जट्रोफा कर्कस (जट्रोफा), पोंगमिआ पिन्नाटा (करंजा), अज़ाडिरच्ता इन्दिका (नीम), बस्सिआ लेटिफोलिआ (महुआ), कैलोफाइलम इनोफाइलम (पोलंगा) एवं सिमारौबा ग्लौका (पैरेडाइज़ वृक्ष)।
कवर का विषय क्षेत्र
पॉलिसी, बीमित व्यक्ति को निर्दिष्ट खतरों/ जोखिम जैसे आग, बाढ़, चक्रवात, तूफान, पाला, कीट एवं बीमारियों आदि की वज़ह से पेड़ों को पूर्ण नुकसान या क्षति के लिए कवर करेगी तथा निवेश राशि (मान्य मूल्य) से जुड़े, विलगन या संगामी रूप से आर्थिक नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति करेगी। सम्पूर्ण नुकसान का अर्थ होगा अकेले बायो-ईन्धन वृक्ष या सम्पूर्ण बागान या उसके हिस्से में क्षति या नुकसान की वजह से वृक्ष की मृत्यु या वृक्ष का आर्थिक रूप से अनुत्पादक होना।
बीमित राशि
बीमित राशि, कवर्ड बीमे की प्रति इकाई निवेश राशि (मान्य मूल्य) पर आधारित है, जो वृक्ष की प्रकृति एवं आयु पर निर्भर करेगी। मोटे तौर पर बीमित राशि निवेश राशि के समतुल्य होती है तथा निवेश राशि के 125 से 150 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है।
प्रीमियम
प्रीमियम दर इन कारकों के आधार पर निर्धारित की गई है-
(क) पेड़/ फसल के जोखिम की रूपरेखा;
(ख) बीमा के अंतर्गत शामिल जोखिम की प्रकृति;
(ग) भौगोलिक स्थान;
(घ) समान जोखिम के लिए अन्य बीमाकर्ताओं द्वारा लागू की गई दर;
(ङ) कटौती राशि, तथा
(च) बीमाकर्ता द्वारा विभिन्न मूल्यों एवं खर्चों के लिए वहन किए गए भार।
बीमा काल
पॉलिसी वार्षिक है, तथा इसे 3 से 5 वर्षों की अवधि तक बढ़ाने का प्रावधान है।
हानि के आकलन की प्रक्रिया
किसी भी बीमित जोखिम की वज़ह से वृक्ष/ वृक्षों को होने वाले नुकसान की स्थिति में बीमित व्यक्ति को एग्रिकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी ऑफ इंडिया (AIC) को दावा प्रपत्र प्रस्तुत करना होगा। दावे के प्रसंस्करण के लिए नुकसान के आकलन हेतु एग्रिकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी ऑफ इंडिया कृषि विशेषज्ञ के साथ एक लाइसेंसधारी सर्वेक्षक को क्षेत्र में भेजेगी। दावों के उद्देश्य से, मृत/ पूर्णतः क्षतिग्रस्त होने की वजह से आर्थिक रूप से अनुत्पादक वृक्ष इस पॉलिसी के अंतर्गत क्षतिग्रस्त माने जाएंगे। क्षय तथा/या बढ़त में कमी को क्षति नहीं माना जाएगा।
गूदेदार वृक्ष का बीमा
पॉलिसी की विशेषताएँ
यह बीमा योजना उन गूदेदार वृक्ष उगाने वाले तथा उत्पादकों के लिए उपयुक्त है, जिनके उत्पाद/ पैदावार निर्दिष्ट खतरों से प्रभावित होना सम्भावित है। यह उत्पाद उचित आधारभूत ढांचे एवं फसल उगाने की सुविधा के विशेष भौगोलिक स्थानों पर गूदेदार वृक्षों के लिए प्रस्तावित की जाएगी। इस पॉलिसी के अंतर्गत आने वाले वृक्ष हैं:
- यूकेलिप्टस
- पॉप्लर
- सुबबूल
- केसुआरिना
कवर का विषय क्षेत्र
पॉलिसी, बीमित व्यक्ति को निर्दिष्ट खतरों/ जोखिम जैसे आग, बाढ़, चक्रवात, तूफान, पाला, कीट एवं बीमारियों आदि की वज़ह से पेड़ों को पूर्ण नुकसान या क्षति के लिए कवर करेगी तथा निवेश राशि (मान्य मूल्य) से जुड़े, विलगन या संगामी रूप से आर्थिक नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति करेगी। सम्पूर्ण नुकसान का अर्थ होगा अकेले गूदेदार वृक्ष या सम्पूर्ण बागान या उसके हिस्से में क्षति या नुकसान की वजह से वृक्ष की मृत्यु या वृक्ष का आर्थिक रूप से अनुत्पादक होना।
बीमित राशि
बीमित राशि, प्रदत्त बीमे की प्रति इकाई निवेश राशि (मान्य मूल्य) पर आधारित है, जो वृक्ष की प्रकृति एवं आयु पर निर्भर करेगी। मोटे तौर पर बीमित राशि निवेश राशि के समतुल्य होती है तथा बीमाकर्ता की मर्ज़ी के अनुसार निवेश राशि के 125 से 150 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है।
प्रीमियम
प्रीमियम दर इन कारकों के आधार पर निर्धारित की गई है
(क) पेड़/ फसल के जोखिम की रूपरेखा;
(ख) शामिल की गई जोखिम की प्रकृति;
(ग) भौगोलिक स्थान;
(घ) समान जोखिम के लिए अन्य बीमाकर्ताओं द्वारा लागू की गई दर;
(ङ) कटौती राशि, तथा
(च) बीमाकर्ता द्वारा विभिन्न मूल्यों एवं खर्चों के लिए वहन किए गए भार।
बीमा काल:
पॉलिसी वार्षिक है, तथा इसे 5 वर्षों की अवधि तक बढ़ाने का प्रावधान है।
बीमे का लाभ कैसे लें
बीमा उत्पाद एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी ऑफ इंडिया (AIC) के वर्तमान संजाल द्वारा उपलब्ध है। खेतिहर, वित्तीय बैंको, भागीदार एजेंसियों/ संगठनों, निवेश प्रदाताओं, कृषक संघों, बीमा दलालों आदि से बीमा की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। व्यक्तिगत उत्पादक एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी ऑफ इंडिया (AIC) से पॉलिसी सीधे खरीद सकते हैं या अधिकृत व्यक्तिगत/ कॉर्पोरेट एजेंट्स से।
रबर वृक्ष बीमा
भारत में रबर प्रमुख नकदी फसलों में से एक है, मुख्य रूप से जिसकी खेती केरल और उत्तर -पूर्वी राज्यों में की जाती है। रबर वृक्ष आग, बिजली, जंगल की आग, झाड़ी की आग, बाढ़, तूफान, आंधी, सैलाब, भूस्खलन, चट्टान खिसकने, भूकंप, आदि खतरों के संपर्क में रहते हैं। रबर वृक्ष की ख़ासियत यह है कि अगर होल्डिंग में कुछ पेड़ क्षतिग्रस्त या खराब होते हैं, तो भूमि के उस विशेष भाग का उपयोग तब तक नहीं किया जा सकता है, जबतक की सारे पेड़ों को काटकर क्षेत्र में पुन: वृक्षारोपणन किया जाए।
रबर वृक्षों के लिए बीमा योजना
यह योजना परिपक्व और अपरिपक्व, दोनों वृक्षों के लिए लागू होती है। पॉलिसी अपरिपक्व पौधों के रोपण महीने के अंतिम दिन से 7 वर्ष की अवधि तक के लिए जारी की जाएगी। मुआवजा दूसरे वर्ष के बाद से उपलब्ध होगा, जिसकी गणना ‘पौधों की प्रतिस्थापन लागत के साथ साथ पौधों की हानि / मौत से उत्पन्न संभावित लाभ के वर्तमान मूल्य’ के आधार पर की जाएगी। परिपक्व वृक्षों के लिए कवर, रोपण के 8 वें वर्ष में 3/ 2 / 1 वर्षों के ब्लाकों प्रदान की जाएगी। क्षतिपूर्ति की गणना अपरिपक्व पौधों के समान ही की जाएगी, यानि लागत मूल्य को ध्यान में रखकर, आवर्ती अनुरक्षण व्यय से अनुमानित उपज घटा कर। अधिकतम मुआवजा 8 से 13 वर्ष की आयु सीमा के दौरान (5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर) के बाद 14 -19 साल (4 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर); 20-22 वर्ष (3 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर) और 23 -25 साल (2 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर) पर उपलब्ध है। विभिन्न आयु में मुआवजे का विवरण चार्ट में प्रदान किया जाता है।
योजना के अंतर्गत शामिल की गई जोखिम
आग, बिजली, दंगा, हड़ताल और शरारतपूर्ण क्षति, झाड़ी की आग, वन आग, बाढ़, तूफान, आंधी, सैलाब, भूस्खलन, चट्टान खिसकना, भूकंप और सूखा , यदि सम्बद्ध ब्लॉक / तालुका संबंध राज्य सरकार के सक्षम प्राधिकारी के द्वारा सूखा प्रभावित घोषित किया गया हो। पॉलिसी सड़क/ रेल वाहनों और जंगली जानवरों के कारण हानि या नुकसान भी कवर करती है।
बीमा अवधि
अपरिपक्व पौधों के रोपण महीने के अंतिम दिन से सात साल और 8 वें वर्ष के बाद 3 / 2 / 1 वर्ष के प्रत्येक ब्लॉकों में परिपक्व वृक्षारोपण के 25 वर्षों तक दिया जाता है।
कुल हानि:
प्रति हेक्टेयर 75 प्रतिशत या अधिक पेड़ों के क्षतिग्रस्त होने के मामले में, पूर्ण रूप में नुकसान माना जाएगा, और बीमित को क्षतिग्रस्त पेड़ों के लिए संलग्न चार्ट के अनुसार भुगतान किया जाएगा। प्रभावित होल्डिंग क्षेत्र में शेष अप्रभावित पेड़ों का मुआवजा रबर बोर्ड/सर्वेयर से प्राप्त प्रमाणपत्र देने से होगा जिसमें यह प्रमाणित किया जाए कि शेष 25 प्रतिशत पेड़ काटे जा चुके हैं तथा सम्पूर्ण ज़मीन पुनःरोपण के लिए तैयार है।
आंशिक हानियां
सम्पूर्ण हानि के अलावा अन्य हानियां आंशिक हानि की श्रेणी में मानी जाएगी। पॉलिसी में शामिल किये गये खतरों की वज़ह से आंशिक हानियों को मानसून के महीनों के दौरान (जून से अगस्त तक तीन महीनों की अवधि) एक साथ जोड़कर एक हानि के रूप में माना जाएगा।