बीजोपचारः आपके फसल के लिए सुरक्षा
बिहार के किसानों के लिए योजनाएँ (रबी मौसम हेतु)
रबी फसलों की सिंचाई लिए डीजल खरीदारी पर अनुदान योजना कृषि विभाग, बिहार सरकार
राज्य सरकार द्वारा डीजल चालित नलकूप से रबी फसलों की सिंचाई के लिए 318.96 करोड़ रुपये अनुदान की स्वीकृति प्रदान की गयी है। डीजल अनुदान के लिये सभी जिलों को निधि आवंटित की जा चुकी है।
यह योजना किसके लिए है
- यह योजना पूरे बिहार में लागू है एवं इसका लाभ सभी प्रकार के किसान प्राप्त कर सकते हैं।
- अनुदान का लाभ गन्ना किसानों को भी दिया जायेगा।
डीजल आधारित नाबार्ड फेज-8 में निर्मित नलकूप, जिनका प्रबंधन स्थानीय किसानों के द्वारा किया जाता है उन्हें भी यह अनुदान (सब्सिडी) डीजल खरीदने के लिए दिया जायेगा।
कितनी सहायता मिलेगी
- डीजल खरीदने करने पर कृषकों को 150 रुपये/एकड़/सिंचाई की दर से 3 सिंचाई के लिए अधिकतम 450 रुपये प्रति एकड़ की सहायता/अनुदान दिया जायेगा।
डीजल की खरीदारी अधिकृत डीजल विक्रेता से करने पर ही मान्य होगा एवं अधिकृत विक्रेता के रसीद पर ही अनुदान का भुगतान किया जायेगा।
आवेदन कहाँ जमा करें
- सब्सिडी की यह सुविधा पंचायत क्षेत्र के किसानों के साथ-साथ नगर निकाय क्षेत्र के किसानों के लिए भी है।
- पंचायत क्षेत्र के किसान अपना आवेदन संबंधित पंचायत को दें।
- नगर निकाय क्षेत्र के किसान आवेदन संबंधित प्रखंड के- प्रखंड विकास पदाधिकारी को दें।
किसान को सिंचाई पर डीजल अनुदान का लाभ 31 मार्च, 2010 तक खरीदे गये डीजल के लिए दिया जायेगा।
आवेदन कैसे करें
- इच्छुक किसान सब्सिडी प्राप्त करने के लिए अपना आवेदन दिये प्रपत्र के अनुरूप, हाथ से लिखकर या टंकित कराकर दे सकते हैं।
पंचायत क्षेत्र से प्राप्त सभी आवेदनों को पंचायत की ग्राम सभा की बैठक में विचार किया जाएगा।
राशि भुगतान की प्रक्रिया
- ग्राम सभा की बैठक के लिए तिथि का निर्धारण जिला पदाधिकारी द्वारा तुरंत किया जायेगा।
- पंचायत की ग्राम सभा द्वारा विभिन्न कृषकों द्वारा फसल क्षेत्र का सत्यापन किया जायेगा।
- नगर निकाय क्षेत्र के किसानों से प्राप्त आवेदन का सत्यापन प्रखंड विकास पदाधिकारी/ प्रखंड कृषि पदाधिकारी के द्वारा किया जायेगा।
पंचायत क्षेत्र के किसानों के लिये सब्सिडी (अनुदान) राशि का भुगतान पंचायत सचिव के द्वारा ग्राम सभा से अनुमोदित सूची के आधार पर किया जायेगा तथा नगर निकाय क्षेत्र के किसानों को अनुदान का भुगतान प्रखंड विकास पदाधिकारी/प्रखंड कृषि पदाधिकारी के द्वारा किया जायेगा।
आवेदन प्रपत्र हेतु यहाँ क्लिक करें।
आलू व प्याज की खेती हेतु डीजल खरीदारी पर अनुदान योजना कृषि विभाग, बिहार सरकार
योजना के बारे में
राज्य सरकार द्वारा पंचायत क्षेत्र के किसानों और नगर निकाय क्षेत्र के किसानों के लिए आलू एवं प्याज की खेती पर अनुदान का लाभ दिया जायेगा।
आवेदन कहाँ करें
- नगर निकाय क्षेत्र के किसान निम्न विहित प्रपत्र में आवेदन संबंधित प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी/प्रखंड कृषि पदाधिकारी को दिया जायेगा।
- नगर निकाय क्षेत्र के किसानों को सत्यापन के उपरान्त अनुदान प्रखंड विकास पदाधिकारी/प्रखंड कृषि पदाधिकारी के द्वारा किया जायेगा।
आवेदन कैसे करें
- आवेदन-पत्र हस्तलिखित रूप में या टंकित कराकर तथा छपे हुए प्रपत्र पर आवेदन दिया जा सकता है।
- पंचायत क्षेत्र के किसानों के लिये आवेदन का प्रपत्र, अनुदान भुगतान की प्रकिया पूर्व की भाँति ही रहेगी।
आवेदन प्रपत्र हेतु यहाँ क्लिक करें।
बिहार के किसानों के लिए सुझावः पशुपालन
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशनः चावल
अच्छी उपज हेतु सहायक सुझाव
- अधिकृत एजेंसियों /डीलरों से संबंधित क्षेत्र के लिए सिफारिश की गई उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज प्राप्त करें।
- बीजों के रोग की दर कम करने के लिए उसे कवकनाशियों से उपचारित करें।
- नर्सरी बेड पर राज्य कृषि विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुसार पहले से अंकुरित धान के बीज बोएँ। गोबर की खाद , वृहद् और सूक्ष्म पोषक तत्वों की सिफारिश की गई मात्रा बुआई के समय नर्सरी बेड पर डालें।
- पौधरोपण कार्य जैसे एसआरआई (श्री) यांत्रिक और सामान्य पद्धतियों के लिए वैज्ञानिक तरीके से की जानी चाहिए।
- मिट्टी की पोषणिक स्थिति और सिफारिश के लिए जांच कराएं। वैकल्पिक रूप से राज्य कृषि विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित बड़े और सूक्ष्म पोषक तत्वों के लिए सामान्य सिफारिशों को अपनाया जा सकता है।
- अम्लीय मिट्टी पर चूना/ लाइमिंग सामग्री डालें जो2-4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर या खेत तैयार करने के समय राज्य कृषि विश्वविद्यालय की सिफारिशों के अनुसार होनी चाहिए।
- चावल की किस्मों /संकर बीजों के मिनी किट, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत वितरित किये जा रहे हैं। इच्छुक किसान राज्य कृषि विभाग के अधिकारियों से संपर्क कर उसे प्राप्त कर सकते हैं।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन की ओर से किसानों को प्राप्त सुविधाएँ–
- प्रमाणित उन्नत किस्म के बीज वितरण हेतु सहायता 500 रुपये प्रति क्विंटल या मूल्य के 50 प्रतिशत तक सहायता, इनमें से जो भी कम हों।
- चावल के संकर बीज वितरण हेतु सहायता 200 रुपये प्रति क्विंटल या 50 प्रतिशत तक सहायता, इनमें से जो भी कम हों।
- चावल के संकर बीजों के उत्पादन हेतु सहायता 1 हजार रुपये प्रति क्विंटल।
- सूक्ष्म पोषक तत्वों के लिए सहायता 500 रुपये प्रति हेक्टेयर या मूल्य के 50 प्रतिशत तक सहायता, इनमें से जो भी कम हों।
- अम्लीय मिट्टी में चूना डालने के लिए सहायता 500 रुपये प्रति हेक्टेयर या मूल्य के 50 प्रतिशत तक सहायता, इनमें से जो भी कम हों।
- कोनोवीडर और अन्य उपकरणों के लिए सहायता 3 हजार रुपये या इन उपकरणों की लागत का 50 प्रतिशत तक सहायता, इनमें से जो भी कम हों।
- जीरो टिल सीड ड्रिल/ विभिन्न फसल रोपने की मशीन /सीड ड्रिल/पावर वीडर की खरीद के लिए उपकरण 15 हजार रुपये या मूल्य के 50 प्रतिशत तक सहायता, इनमें से जो भी कम हो।
- रोटावेटर की खरीद के लिए 30 हजार रुपये या मूल्य के 50 प्रतिशत तक सहायता, इनमें से जो भी कम हों।
- नैपसैक स्प्रेयर की खरीद के लिए 3 हजार रुपये या मूल्य के 50 प्रतिशत प्रतिशत तक सहायता, इनमें से जो भी कम हों।
- पौधों की सुरक्षा हेतु रासायनिक खाद के लिए 500 रुपये प्रति हेक्टेयर या मूल्य के 50 प्रतिशत तक सहायता, इनमें से जो भी कम हों।
- अभ्यास या कार्य-प्रणाली, संकर चावल और श्री (एसआरआई) के उन्नत पैकेज पर क्षेत्रों का दौरा आयोजित करने का प्रावधान।
- किसान, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत आयोजित किये जाने वाले फार्मर्स फील्ड स्कूल में भी भाग ले सकते हैं।
इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए अपने नज़दीकी कृषि अधिकारी से संपर्क करें, या किसान कॉल सेंटर के टॉल फ्री नंबरः 1551 180 1800 पर सम्पर्क करें।
जैविक उर्वरकों के संवर्धन के लिए सहायता
निम्नलिखित योजनाओं के तहत वित्तीय सहायता उपलब्ध करा कर सरकार जैविक खाद को बढ़ावा दे रही है:
- जैविक खेती पर राष्ट्रीय परियोजना (NPOF) के अंतर्गत फल/ व्यर्थ सब्जी की कम्पोस्ट इकाइयों के लिए 40 लाख रुपए प्रति यूनिट लागत तक का 25% जैविक उत्पादन इनपुट इकाइयों की स्थापना के लिए और 1.50 लाख रुपए प्रति इकाई वर्मीकल्चर हैचरी की स्थापना के लिए, वित्तीय सहायता नाबार्ड के माध्यम से साख से जुड़ी पश्व सिरे की सब्सिडी प्रदान की जाती है।
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) के तहत वर्मिकम्पोस्ट इकाईयों की स्थापना के लिए लागत की 50% वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है जो प्रति लाभार्थी अधिकतम 30,000/- रुपए होती है।
- मृदा स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता के प्रबंधन पर राष्ट्रीय परियोजना (NPMSHF) के तहत जैविक उर्वरक के संवर्धन के लिए 500/- रुपए प्रति हेक्टेयर तक का प्रावधान है।
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के अंतर्गत जैव उर्वरकों के लिए भी सहायता उपलब्ध है।
स्रोत: http://pib.nic.in/
शीत भंडारणों के निर्माण के लिए सहायता
निम्नलिखित योजनाओं के तहत सरकार द्वारा शीत भंडारण के निर्माण के लिए निम्नलिखित सहायता प्रदान की जाती है:
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन योजना के तहत सहायता के फसल के उपरांत शीत भंडारण के निर्माण सहित बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सहायता दी जाती है।
- सिक्किम, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड उत्तर-पूर्वी राज्यों में बागवानी के एकीकृत विकास के लिए प्रौद्योगिकी मिशन योजना (TMNE) के अंतर्गत फसल के उपरांत प्रबन्धन निर्माण के लिए शीत भंडारणों के निर्माण/ आधुनिकीकरण/ विस्तार के लिए सहायता दी जाती है।
- राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड बागवानी की उपज के लिए शीत भंडारण और भंडारण के निर्माण/ विस्तार/ आधुनिकीकरण के लिए पूंजी निवेश सब्सिडी की योजना लागू कर रहा है, जिसके तहत शीत भंडारण के निर्माण/ आधुनिकीकरण/ विस्तार के लिए सहायता प्रदान की जाती है।
- कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) बुनियादी सुविधा विकास योजना के तहत शीत भंडारण की सुविधा के साथ एकीकृत पैक हाउस की स्थापना के लिए सहायता प्रदान करता है।
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय कोल्ड चेन, मूल्य संवर्धन और संरक्षण के बुनियादी ढाँचे के लिए योजना के तहत शीत भंडारण सहित कोल्ड चेन के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए सहायता प्रदान करता है।चूंकि ये योजनाएं सतत जारी तथा मांग पर संचालित होती हैं, शीत भंडारण परियोजनाएं आवश्यकता के आधार तथा संबंधित दिशा निर्देशों के अनुसार अनुमोदित की जाती हैं।
स्रोत: http://pib.nic.in/
भरपूर उत्पादकता प्राप्ति हेतु एकीकृत कृषि प्रणाली
किसानों के लिए मौसम आधारित कृषि सलाह
संभावित सूखों का निदान (डायगनॉसिस)
प्राप्त अनुभवों के आधार पर हमारे कृषि चक्रों के विभिन्न अवस्थाओं के लिए आने वाले सूखों की चेतावनी भरे संकेतों की पहचान की गई है। ये निम्नलिखित हैं:
खरीफ़ के लिए ( जून से अगस्त तक बुआई)
- दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून आने में विलंब
- दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून के क्रियाकलापों में लंबी “अंतराल”
- जुलाई माह के दौरान कम वर्षा
- चारा के मूल्य में वृद्धि
- जलाशय स्तर में बढ़ने की प्रवृत्ति खत्म होना
- ग्रामीण पीने के पानी की आपूर्ति के स्रोतों का सूखना
“सामान्य वर्षों” के संगत आंकड़ों की तुलना में सप्ताह दर सप्ताह की जाने वाली बुआई की प्रगति में कमी की प्रवृत्ति
रबी के लिए ( नवंबर से जनवरी तक बुआई)
- दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून (30 सितंबर) के लिए समाप्त आँकड़ों में कमी,
- “सामान्य वर्षों” के आँकड़ों की तुलना में जमीन के अंदर के पानी के स्तर में गंभीर कमी,
- “सामान्य वर्षों” के संगत आँकड़ों की तुलना में जलागार के स्तर में कमी- दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून के बाद ठीक से नहीं भरा होने के लक्षण,
- चिह्नित मिट्टी की नमी के तनाव का लक्षण,
- चारा के मूल्य में वृद्धि,
- टैंकरों की मदद से पानी के फैलाव में वृद्धि,
(तमिलनाडु और पांडिचेरी के लिए महत्वपूर्ण अवधि उत्तर पूर्वी मॉनसून – अक्टूबर से दिसंबर होती है)
अन्य मौसम
गुजरात, मध्य प्रदेश, मराठवाड़ा और उत्तरी आंतरिक कर्नाटक क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण अवधि मार्च/अप्रैल होती है जिस समय पानी संबंधी सूखा के कारण कई क्षेत्रों में पीने का पानी गंभीर रुप से कम हो जाता है।
कुछ विशेष राज्यों और खास फसलों के लिए वर्षा की कुछ खास अवधि होती है जिस समय वर्षा का होना बहुत महत्वपूर्ण होता है। जैसे बागानी फसलों के लिए केरल में फरवरी में वर्षा होना।
स्रोत: http://agricoop.nic.in
भारत में सूखा संबंधी तथ्य
भारत में सूखा मुख्यतः दक्षिणी-पश्चिमी मानसून (जून-सितंबर) के नहीं आने के कारण होता है। सूखे से प्रभावित क्षेत्रों को अगले मानसून तक प्रतीक्षा करना पड़ता है। पूरे देश में 73% से अधिक वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के दौरान ही प्राप्त होती है।
वर्षा से संबंधित उपलब्ध आंकड़े से सूखा के संबंध में यह पता चलता है कि-
- देश के कुल क्षेत्र में से 16 % सूखा संभावित क्षेत्र है। वार्षिक रूप से देश में करीब 5 करोड़ लोग सूखे के संकट से प्रभावित होते हैं।
- बुआई किये गये क्षेत्र में से कुल 68% क्षेत्र अलग-अलग मात्रा में सूखा प्रभावित हैं,
- 35% क्षेत्र में 750 मिली मीटर से 1125 मिली मीटर तक वर्षा होती है और ये सूखा संभावित क्षेत्र हैं।
- देश के शुष्क (19.6%), अर्द्ध-शुष्क (37%) और उप-नमी (21%) क्षेत्रों में अधिकतर सूखा संभावित क्षेत्र पाये जाते हैं जो कि इसके कुल जमीन वाले भाग 32.90 करोड़ हेक्टेयर का 77.6% में फैला हुआ है।
- भारत में वार्षिक औसत वर्षा 1160 मिली मीटर होती है। हालांकि 85% वर्षा 100-120 दिनों तक (दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के दिनों में) हीं होती है।
- 33% क्षेत्र में 750 मिली मीटर से भी कम वर्षा होती है और ये गंभीर सूखा संभावित क्षेत्र हैं।
- 21% क्षेत्र में 750 मिली मीटर से भी कम वर्षा होती है (द्विपीय क्षेत्र और राजस्थान)।
- 10 वर्षों में से 4 वर्ष अनियमित वर्षा होती है।
- सिंचाई क्षमता 140 मिलियन एचए हैं (76 एमएचए सतह + 64 एमएचए धरती के अंदर का पानी)।
- धरती के अंदर के पानी की कमी और सतही पानी की सीमितता से यह इंगित होता है कि बुआई वाले सभी क्षेत्र की सिंचाई नहीं की जा सकती है।
- आबादी में वृद्धि, तेजी से होती औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, फसल तीव्रता और धरती के अंदर कम होते पानी स्तर आदि के कारण प्रति व्यक्ति पानी उपलब्धता कम हो रही है। यह समस्या और अधिक होने वाली है।
- शुद्ध परिणाम- कुछ भागों या अन्य भागों में सूखा होना अवश्यंभावी है।
स्रोत: संकट प्रबंधन योजना- सूखा (राष्ट्रीय), कृषि एवं सहयोग विभाग, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार
मौसम और मौसम आधारित कृषि प्रबंधन योजना
अंगूर किसानों के लिए मौसम की भविष्यवाणी पर आधारित सलाह
मौसम आधारित कृषि परामर्श सेवाएं (दिल्ली और इसके आस-पास के गाँवों के लिए)
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