परिचय
प्याज एक महत्वपूर्ण सब्जी एवं मसाला फसल है। इसमें प्रोटीन एवं कुछ विटामिन भी अल्प मात्रा में रहते हैं। प्याज में बहुत से औषधीय गुण पाये जाते हैं। प्याज का सूप, अचार एवं सलाद के रूप में उपयोग किया जाता है। भारत के प्याज उत्पादक राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, उ.प्र., उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडू, म.प्र.,आन्ध्रप्रदेश एवं बिहार प्रमुख हैं। मध्यप्रदेश भारत का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक प्रदेश है। म.प्र. में प्याज की खेती खंण्डवा, शाजापुर, रतलाम छिंन्दवाड़ा, सागर एवं इन्दौर में मुख्य रूप से की जाती है। सामान्य रूप में सभी जिलों में प्याज की खेती की जाती है। भारत से प्याज का निर्यात मलेशिया, यू.ए.ई. कनाडा,जापान,लेबनान एवं कुवैत में निर्यात किया जाता है।
जलवायु
यद्यपि प्याज ठण्डे मौसम की फसल है,लेकिन इसे खरीफ में भी उगाया जा सकता है। कंद निर्माण के पूर्व प्याज की फसल के लिए लगभग 210 से.ग्रे.तापक्रम उपयुक्त माना जाता है। जबकि शल्क कंदों में विकास के लिए 150 से.ग्रे. से 250 से.ग्रे.का तापक्रम उत्तम रहता है।
मृदा
प्याज की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। प्याज की खेती के लिए उचित जलनिकास एवं जीवांशयुक्त उपजाऊ दोमट तथा बालुई दोमट भूमि जिसका पी.एच.मान 6.5-7.5 के मध्य हो सर्वोत्तम होती है, प्याज को अधिक क्षारीय या दलदली मृदाओं में नही उगाना चाहिए।
उन्नत किस्में
म.प्र में खरीफ प्याज की प्रमुख उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं-
एग्री फाउंड डार्क रेड
यह किस्म भारत में सभी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसके शल्क कन्द गोलाकार, 4-6 सेमी. आकार वाले, परिपक्वता अवधि 95-110, औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर। यह किस्म खरीफ प्याज(वर्षात की प्याज)उगाने के लिए अनुशंसित है।
एन-53
भारत के सभी क्षेत्रों में उगाया जा सकता है, इसकी परिपक्वता अवधि 140 दिन, औसत उपज 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, इसे खरीफ प्याज (वर्षातकी प्याज) उगाने हेतु अनुशंसित किस्म हैं।
भीमा सुपर
यह किस्म भी खरीफ एवं पिछेती खरीफ के लिये उपयुक्त है। यह किस्म 110-115 दिन में तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर 250-300 क्विंटल तक उपज देती है।
एग्री फाउंड डार्क रेड एन-53 भीमा सुपर
भूमि की तैयारी
प्याज के सफल उत्पादन में भूमि की तैयारी का विशेष महत्व है। खेत की प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए। इसके उपरान्त 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या हैरा से करें, प्रत्येक जुताई के पश्चात् पाटा अवश्य लगाएं जिससे नमी सुरक्षित रहे तथा साथ ही मिट्टी भुर-भुरी हो जाए। भूमि को सतह से 15 से.मी.उंचाई पर1.2 मीटर चौड़ी पट्टी पर रोपाई की जाती है अतः खेत को रेज्ड-बेड सिस्टम से तैयार किया जाना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
प्याज की फसल को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। प्याज की फसल में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए। गोबर की सड़ी खाद 20-25 टन/हेक्टेयर रोपाई से एक-दो माह पूर्व खेत में डालना चाहिए। इसके अतिरिक्त नत्रजन 100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर, स्फुर 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा पोटाश 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर देने की अनुसंशा की जाती हैं। इसके अतिरिक्त सल्फर 25 कि.ग्रा. एवं जिंक 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर प्याज की गुणवत्ता सुधारने के लिए आवश्यक होते हैं।
पौध तैयार करना
पौधशाला के लिए चुनी हुई जगह की पहले जुताई करें इसके पश्चात् उसमें पर्याप्त मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट डालना चाहिए। पौधशाला का आकार 3 मीटर*0.75 मीटर रखा जाता हैं और दो क्यारियों के बीच 60-70 सेमी. की दूरी रखी जाती हैं जिससे कृषि कार्य आसानी से किये जा सके। पौधशाला के लिए रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है, पौध शैय्या लगभग 15 सेमी. जमीन से ऊँचाई पर बनाना चाहिए बुवाई के बाद शैय्या में बीजों को 2-3 सेमी. मोटी सतह जिसमें छनी हुई महीन मृदा एवं सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद से ढंक देना चाहिए। बुवाई से पूर्व शैय्या को 250 गेज पालीथीन द्वारा सौर्यकरण उपचारित कर लें।
बीजों को हमेशा पंक्तियों में बोना चाहिए। खरीफ मौसम की फसल के लिए 5-7 सेमी. लाइन से लाइन की दूरी रखते हैं। इसके पश्चात् क्यारियों पर कम्पोस्ट, सूखी घास की पलवार(मल्चिंग) बिछा देते हैं जिससे भूमि में नमी संरक्षण हो सके। पौधशाला में अंकुरण हो जाने के बाद पलवार हटा देना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाये कि पौधशाला की सिंचाई पहले फब्बारे से करना चाहिए। पौधों को अधिक वर्षा से बचाने के लिए पौधशाला या रोपणी को पॉलीटेनल में उगाना उपयुक्त होगा।
बीज की मात्रा
खरीफ मौसम के लिए 15-20 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती हैं।
पौधशाला शैय्या पर बीज की बुआई एवं रोपाई का समय
खरीफ मौसम हेतु पौधशाला शैय्या पर बीजों की पंक्तियों में बुवाई 1-15 जून तक कर देना चाहिए, जब पौध 45 दिन की हो जाएं तो उसकी रोपाई कर देना उत्तम माना जाता है।
पौध की रोपाई कूड़ शैय्या पद्धति से तैयार खेतों पर करना चाहिए, इसमें 1.2 मीटर चौड़ी शैय्या एवं लगभग 30 से.मी. चौड़ी नाली तैयार की जाती हैं।
खरपतवार नियंत्रण
फसल को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए कुल 3 से 4 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। प्याज के पौधे एक-दूसरे के नजदीक लगाये जाते है तथा इनकी जड़ें भी उथली रहती है अतः खरपतवार नष्ट करने के लिए रासायनिक पदार्थों का उपयोग किया जाना उचित होता है। इसके लिए पैन्डीमैथेलिन 2.5 से 3.5 लीटर/हेक्टेयर अथवा ऑक्सीफ्लोरोफेन 600-1000 मिली/हेक्टेयर खरपतवार नाशक पौध की रोपाई के 3 दिन पश्चात 750 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना बहुत प्रभावी और उपयुक्त पाया गया है।
सिंचाई एवं जल निकास
खरीफ मौसम की फसल में रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई करना चाहिए अन्यथा सिंचाई में देरी से पौधे मरने की संभावना बढ़ जाती हैं। खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली प्याज की फसल को जब मानसून चला जाता है उस समय सिंचाईयाँ आवश्यकतानुसार करना चाहिएं। इस बात का ध्यान रखा जाए कि शल्ककंद निर्माण के समय पानी की कमी नहीं होना चाहिए क्योंकि यह प्याज फसल की क्रान्तिक अवस्था होती है क्योंकि इस अवस्था में पानी की कमी के कारण उपज में भारी कमी हो जाती है, जबकि अधिक मात्रा में पानी बैंगनी धब्बा(पर्पिल ब्लाच) रोग को आमंत्रित करता है। काफी लम्बे समय तक खेत को सूखा नहीं रखना चाहिए अन्यथा शल्ककंद फट जाएंगे एवं फसल जल्दी आ जाएगी, परिणामस्वरूप उत्पादन कम प्राप्त होगा। अतः आवश्यकतानुसार 8-10 दिन के अंतराल से हल्की सिंचाई करना चाहिए।
यदि अधिक वर्षा या अन्य कारण से खेत में पानी रूक जाए तो उसे शीघ्र निकालने की व्यवस्था करना चाहिए अन्यथा फसल में फफूंदी जनित रोग लगने की संभावना बढ़ जाती हैं।
कंदों की खुदाई
खरीफ प्याज की फसल लगभग 5 माह में नवम्बर-दिसम्बर माह में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। जैसे ही प्याज की गाँठ अपना पूरा आकर ले लेती है और पत्तियां सूखने लगें तो लगभग 10-15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए और प्याज के पौधों के शीर्ष को पैर की मदद से कुचल देना चाहिए। इससे कंद ठोस हो जाते हैं और उनकी वृद्धि रूक जाती है। इसके बाद कंदों को खोदकर खेत में ही कतारों में ही रखकर सुखाते है।
फसल सुरक्षा
1. थ्रिप्स
ये कीट पत्तियों का रस चूसते हैं जिसके कारण पत्तियों पर चमकीली चांदी जैसी धारियां या भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। ये बहुत छोटे पीले या सफेद रंग के कीट होते हैं जो मुख्य रूप से पत्तियों के आधार या पत्तियों के मध्य में घूमते हैं।
इसके नियंत्रण हेतु नीम तेल आधारित कीटनाशियों का छिड़काव करें या इमीडाक्लोप्रि कीटनाशी 17.8 एस.एल. दवा की मात्रा 125 मिली./हे. 500-600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
2. माइट
इस कीट के प्रकोप के कारण पत्तियों पर धब्बों का निर्माण हो जाता हैं और पौधे बौने रह जाते हैं। इसके नियंत्रण हेतु 0.05: डाइमेथोएट दवा का छिड़काव करें।
यह एक फफूंदी जनित रोग है, इस रोग का प्रकोप दो परिस्थितियों में अधिक होता है पहला अधिक वर्षा के कारण दूसरा पौधों को अधिक समीप रोपने से पत्तियों पर बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं। परिणामस्वरूप पौधों की बढ़वार एवं विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
3. बैंगनी धब्बा(परपल ब्लॉच)
इसके लक्षण दिखाई देने पर मेनकोजेब (2.5 ग्रा./ली. पानी) का 10 दिन के अन्तराल से छिड़काव करें। इन फफूंदनाशी दवाओं में चिपकने वाले पदार्थ जैसे सैन्उो विट, ट्राइटोन या साधारण गोंद अवश्य मिला दें जिससे घोल पत्तियों पर प्रभावी नियंत्रण हेतु चिपक सके।
उपज
खरीफ प्याज की प्रति हेक्टेयर उपज 250-300 क्विंटल तक मिल जाती है।
विवरण | खेती पर व्यय(रु.) |
खेत की तैयारी |
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4800.00 2400.00 2000.00 |
खाद एवं उर्वरक |
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50000.00 5200.00 9750.00 6000.00 4000.00 12000.00 5000.00 4000.00 5000.00 4000.00 5000.0 |
कुल लागत |
1,19,150.00 |
उत्पादन 225 क्विं/हेक्टेयर,विक्रय मूल्य 1600/-प्रति क्विंटल |
3,60,000.00 |
लाभ लागत अनुपात |
1:3.02 |
प्याज की फसल में खाद एवं उर्वरक प्रबंधनों पर देखें यह जानकारी, देखिए इस विडियो में
स्त्रोत: मध्यप्रदेश कृषि,किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग,मध्यप्रदेश
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