कामयाबी की मिठास
बहुतायत में मिले फलों का अगर सही उपयोग करें, तो इसका सुखद परिणाम सामने आता है। वैशाली के दूर – दराज के इलाके की महिलाएं इन फलों के जरिये ही अपनी जिंदगी में कामयाबी की मिठास घोल रही हैं। बड़े पैमाने पर मिल रहे अमरूद, नींबू और पपीते के जैम, शर्बत, जैली और नींबू का आचार बना कर ये खुद को आर्थिक रूप से सबल बना रही हैं।
कुछ महीने, बड़ा सफर
हाजीपुर के राजापाकड़ प्रखंड में ग्रामीण इलाकों में नींबू, पपीते और अमरूद बड़ी मात्र में पाये जाते हैं। पारंपरिक तरीके से इन क्षेत्रों में महिलाएं छोटे स्तर पर आचार वगैरह तो बना लेती थी, लेकिन इन फलों से कुछ और खाने की ललक हमेशा रखती थी। इकुछ स्वयं सहायता ग्रुप ने पहल की, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं मिला। तब आइडीएफ नामक संस्था ने इन्हें राह दिखायी। पहले सर्वे हुआ। महिलाओं ले उत्साह दिखाया। संस्थान ने प्रशिक्षण की व्यवस्था की। महिलाओं को बताया गया कि वह कैसे इन फलों से लाभ ले सकती हैं। इस काम को करने के लिए पहली बार में ही बीस महिलाओं ने अपनी रुचि दिखायी। उनकी सफलता से दूसरी महिलाएं भी उत्साहित हुईं। धीरे-धीरे यह इस इलाके की महिलाओं के रोजगार का स्थायी साधन बन गया। आज इस काम को करने वाली महिलाएं ही दूसरों को भी इस काम को करने के लिए उत्साहित कर रही हैं। आज यहां के उत्पाद को बाजार भी उपलब्ध है और पहचान भी।
मिल के संभालती हैं पूरी जिम्मेवारी
इस इलाके में अमरूद बड़ी मात्र में फलता है। महिलाओं को इसकी जेली बनाने की विधि बतायी गयी। उन्हें यह विस्तार से बताया गया कि कैसे अमरूद को छोटे- छोटे टुकड़ों में काट कर, उबाल कर, चीनी मिला कर जेली बनायी जा सकती है। किस महिला को क्या काम करना है, यह वे आपस में तय करती हैं। कुछ महिलाओं ने बाजार के अध्ययन का दायित्व संभाला। कुछ ने कच्चे फलों और उत्पादों की पैकिंग की व्यवस्था का। शीशेके जार पटना से मंगाये जाते हैं। सुनीता देवी सभी का मार्गदर्शन करती हैं। वह कहती हैं, पहले भी इस काम को किया जाता था, लेकिन इसके लिए महाजन से पैसे लेने पड़ते थे। इसमें मुनाफा नहीं था। अब काम का उचित मेहनताना मिल रहा है।
विभिन्न गांवों की हैं महिलाएं
फलों के इस काम को करने वाली महिलाएं कई गांवों से ताल्लुक रखती है। नारायणपुर, बिलंदपुर, कुतुबपुर, बैकुंठपुर, जाफरपट्टी, रामपुर रत्नाकर, मदनपुर जैसे कई गांवों की आधी आबादी इस काम को कर रही है। ये सभी महिलाएं आरक्षित वर्ग से ताल्लुक रखती हैं। शिक्षा के मामले में भी इनका स्तर निम्न है। संस्था समय समय पर इस क्षेत्र में भी इनकी मदद करती है। इस काम में मुख्य भूमिका निभा रही सुनीता देवी कहती हैं, काम करने से पहले हमारे आर्थिक हालात कोई खास नहीं थे। इससे जुड़ने के बाद बहुत सुधार आया है। महिलाएं अब शिक्षा के प्रति भी जागरूक हो रही हैं। पहले हम केवल अपना हस्ताक्षर ही कर पाते थे, अब शिक्षा में भी सुधार हो रहा है।
कई तरह के बनते हैं उत्पाद
ये महिलाएं अमरूद, सेव, पपीता, नींबू से जैम, जेली, शर्बत आदि बनाती हैं। स्थानीय बाजारों और आस पास के गांवों में इनकी अच्छी खासी खपत है। आधा किलो के जैम का जार सारे खर्च को जोड़ कर 40 रुपये में आधा किलो मिलता है, वहीं एक लीटर नींबू के शर्बत का मूल्य 50 रुपये है। जैम, जेली की खपत हर मौसम में रहती है, लेकिन गर्मी के दिनों में नींबू के शर्बत की मांग ज्यादा रहती है। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर भी जो लोग इसे खरीदना चाहते हैं, वह अपनी पसंद और मात्र के अनुसार जो भी मांग करते हैं, ये महिलाएं उसी के अनुसार सामान बना कर दे देती हैं।
अब आगे की तैयारी
स्थानीय स्तर पर मिलती सफलता से लबरेज महिलाएं और संस्था दोनों कुछ और तैयारी में जुटे हैं। महिलाएं पटना में होने वाली महिला उद्योग मेले में अपने स्टॉल को लगाने के लिए प्रयासरत हैं। इसके लिए प्राथमिक पहल की शुरुआत कर दी गयी है। इसके अलावा सरकारी स्तर पर खुद के एगमार्क और रजिस्ट्रेशन लेने की भी कवायद हो रही है।
ज्यादा जानकारी के लिए निम्न पते पर संपर्क किया जा सकता है-
सुनीता देवी, प्लान इंडिया बजरंग सिंह, दिग्घी कलां दिग्घी जेल से दक्षिण, हाजीपुर।
स्त्रोत : संदीप कुमार,स्वतंत्र पत्रकार,पटना बिहार।