जलवायु एवं भूमि:-
पालक की खेती के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है, पानी का निकास अच्छा होना अति आवश्यक हैI जिस भूमि का पी.एच 6 से 7 होता है, वह भूमि अच्छी मानी जाती हैI
पालक की उन्नतशील प्रजातियां :-
पत्ती और बीज के आधार पर दो-दो प्रकार की पालक की प्रजातियां पाई जाती है, बीज के आधार पर इसमे रिंकिल सीड वाली तथा गोल सीड वाली होती हैI पत्ती के आधार पर इसमे चिकनी पत्ती तथा खबोई रिंकिल पत्ती वाली होती है, इनके आधार पर विर्जीनिया सबोई एवं अगेती चिकनी पत्ती वाली प्रजातियां पाई जाती है जैसे की पालक आल ग्रीन, पूसा ज्योति, हरित, आरती तथा जाबनेर ग्रीन आदि हैI
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खेत की तैयारी में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दो-तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करने के बाद, खेत में पाटा लगाकर समतल एवं भुरभुरा बना लेना चाहिएI खेत की आखरी जुताई 250 से 300 कुंतल सड़ी गोबर की खाद मिला देना चाहिएI
बुवाई में बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर और बीज शोधन:-
पालक की खेती में बीज 37 से 45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लगता है, छिटकवा बुवाई के कुछ अधिक मात्रा लगती हैI बीज शोधन थीरम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम या 2.5 ग्राम बेविस्टीन या सेरेसॉन या केप्टान प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को शोधित करके बुवाई करनी चाहिएI
बुवाई का समय तथा विधि:-
इसकी बुवाई मैदानी भागो में सितम्बर से अक्टूबर तक तथा शरद ऋतु में की जाती है तथा पहाड़ी क्षेत्रो में अगस्त से अक्टूबर तक बुवाई की जाती हैI पालक की बुवाई छिटकवा विधि तथा लाइनो में की जाती है, इसकी पत्तियो की कटाई में सुविधा रहती हैI लाइन से लाइन की दूरी 30 से 35 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 12 सेंटीमीटर रखते है तथा बुवाई 3 से 4 सेंटीमीटर गहराई पर करना चाहिएI
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खाद एवं उर्वरको की मात्रा प्रति हेक्टेयर तथा इनका प्रयोग:-
खेत की तैयारी के साथ 250 से 300 कुंतल सड़ी गोबर की खाद देना चाहिए, इसके साथ ही 80 से 100 किलोग्राम, नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 60 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में देना आवश्यक हैI नत्रजन की आधी मात्रा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयारी के समय बेसल ड्रेसिंग में देनी चाहिए, शेष नत्रजन की मात्रा दो बार में पत्ती की पहली कटाई में आधी तथा दूसरी कटाई में शेष पूरी मात्रा टापड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए, अर्थात प्रत्येक पत्ती की कटाई पर 20 से 35 किलोग्राम नत्रजन देनी चाहिएI
सिंचाई:-
अच्छी नमी में बुवाई करने पर तुरंत सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है, फिर भी बुवाई के 8 से 10 दिन बाद सिंचाई करना आवश्यक रहता हैI इसके पश्चात 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिएI, पत्तियो की प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई करना अति आवश्यक हैI
निराई-गुड़ाई तथा खरपतवार नियंत्रण:-
पहली निराई-गुड़ाई दूसरी सिंचाई या 15 से 20 दिन बुवाई के बाद करनी चाहिए, कुल दो-तीन निराई-गुड़ाई करनी चाहिएI यदि खेत में अधिक खरपतवार उगते है, तो बुवाई के तुरंत बाद एक-दो दिन के अंदर 30 प्रतिशत पेंडामेथलीन की 3.3 लीटर मात्रा को 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में छिड़काव करने पर खरपतवारो का जमाव ही नहीं होता हैI
रोग लगते है तथा उनका नियंत्रण :-
पालक में मुख्य रूप से डम्पिंग आफ एवं सरकोस्पोरा लीफ स्पॉट रोग लगते है, इनकी रोकथाम के लिए बीज को शोधन के बाद ही बोना चाहिएI इसके साथ ही खड़ी फसल पर 0.2 प्रतिशत ब्लाइटाक्स 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से हर 15 दिन के अंतराल पर दो-तीन छिड़काव करना चाहिएI
कीट तथा उनका नियंत्रण:-
पालक में एफिड या माहू, बीटल एवं कैटरपिलर पत्तियो को नुक्सान पहुचते है, इनकी रोकथाम के लिए एल्ड्रीन या मैलाथियान का छिड़काव करना चाहिए तथा मिथायलपैराथियान 50 ई. सी. को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिएI
पालक की कटाई:-
पालक की पत्तियो की कटाई बुवाई के 4 सप्ताह बाद शुरू की जाती है, कुल कटाई पूरे सीजन में 4 से 5 बार करनी चाहिएI कीटनाशक का छिड़काव पत्तियो की कटाई के बाद करना चाहिएI
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