समेकित कीट प्रबन्धन
अधिक उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्नत किस्मों एवं आधुनिक तौर-तरीकों को अपनाया जा रहा है।खासकर झारखण्ड के किसान सब्जियों के उप्तादन में नई-आणि किस्मों (हाईब्रिड) का उपयोग कर रहे हैं। वहीँ दूसरी ओर रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का भी भरपूर व्यवहार किया जा रहा है। जिसके कारण अनेक प्रकार के समस्याएँ उत्पन्न हो रही है। प्रमुख कीड़ों से विभिन्न फसलों में होने वाली हानि 10 से 12% तक आँका गया है। कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से गंभीर वातावरणीय एवं अन्य जटिल समस्याएँ बढ़ रही है। अंधाधुंध कीटनाशी के प्रयोग से निम्नलिखित समस्याएँ पैदा हो रही हैं:
- पर्यावरण दूषित होना,
- कीड़ों में रसायनिक कीटनाशी के प्रति प्रतिरोधी का शक्ति पैदा होना।
- लाभकारी कीड़ों एवं अन्य दूसरे जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना,
- खाद्य पदार्थों में रसायनिक कीटनाशी का अवशेष पाया जाना,
- गौण कीटों का प्रमुख कीड़ों का रूप लेना
जिन राज्यों में रसायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से कीड़ों की उभरती हुई नै समस्याएँ
राज्य | खपत(%) |
कीट |
आंध्रप्रदेश |
33.6 |
सफेद मक्खी, धान का भूरा फदका, गांलमिंज |
गुजरात |
15.२ |
स्पाइडर माईट, मुगफली का सपिर्ल पत्ती सुरंगक |
कर्नाटक |
16.२ |
स्पाइडर माईट |
पंजाब |
11.4 |
स्पाइडर माईट |
अन्य राज्य (झारखण्ड सहित) |
18.5 |
स्पाइडर माईट, श्वेत मक्खी |
इन तथ्यों से स्पष्ट होता है कि रसायनिक कीटनाशी के अधाधुंध प्रयोग से अनेक प्रकार की समस्याएँ पैदा हो रही है। फलतः पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता जा रहा है एवं किसानों को हानि उठाना पड़ रहा है। अतः टिकाऊ खेती के लिए ऐसी तकनीक की आवश्कता है जिनसे पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक लाभ भी बना रहे। अतः इसके लिए समेकित कीट प्रबन्धन ही ऐसे प्रणाली है जिसके तार्किक व्यवहार से पर्यावरण को क्षति पहुँचाए बिना कीड़ों का प्रंबधन कर आर्थिक लाभ को बनाएं रखा जा सकता है।
अंगीकृत की जाने वाली उन्नत तकनीक
कृषि कार्यगत नियंत्रण
इस पद्धति में किसानों द्वारा किये जाने वाले कृषि कार्यों जैसे खेतों की गहरी जुताई, खरपतवार को नष्ट करना, खेतों में सड़ा हुआ गोबर, कम्पोस्ट एवं करंज की खल्ली का व्यवहार करना, अम्लीय मिट्टी में चूना का प्रयोग करना, समेकित उर्वरक का प्रयोग करना, स्वस्थ एवं उपचारित बीजों का व्यवहार करना, उचित सिचाई का प्रंबध करना, फसलों की उचित समय पर बुआई एवं कटाई, अन्तः फसलों एवं फंदा फसलों से कीड़ों की संख्या को कम करने में मदद मिलती है। कीड़ों को जीवन वृतांत, व्यवहार, आवास एवं पारिस्थितिकी की पूरी तरह से जानकारी होने कीड़ों की संख्या को घटाने में मदद मिलती है। इन तरीकों को अपनाने से लागत में किसी तरह से वृद्धि भी नहीं होती है। अंतः किसानों को समेकित कीट प्रबन्धन से होने वाले लाभ के बारे में जानकारी देना बहुत जरुरी है।
जैविक नियन्त्रण
प्राकृतिक पारिस्थितिक प्रणाली में कीड़ों का नियत्रण, उनके प्राक्रतिक शत्रुओं के द्वारा स्वतः ही होते रहता है। किन्तु विकट परिस्थिति में कीड़ों की संख्या अधिक होने पर परजीवी एवं परभक्षी कीड़ों की संख्या को भी बढ़ाना पड़ता है। ताकि दुश्मन कोड़ों की संख्या को कम किया जा सके। इसलिए जैविक नियन्त्र्ण कार्यक्रम में परजीवी एवं परभक्षी कीड़ों के संरक्षण एवं संवर्द्धन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। आजकल ट्राईकोग्रामा, क्राईसोपरला, लेडी बर्ड भृंग इत्यादि मित्र कीड़ों को प्रयोगशाला में पालकर इनकी संख्या को बढ़ाया जाता है एवं इनका प्रयोग दुशमन कीड़ों के नियंत्रण में किया जाता है। इनके उपयोग के फलस्वरूप रसायनिक कीटनाशी के छिड़काव में कमी होती है फलतः लागत में भी कमी होती है एवं पर्यावरण को दूषित होने बचाया जा सकता है। अतः कीट विशेषज्ञयों को ऐसे कोशिश होनी चाहिए कि परजीवी एवं परभक्षी कीड़ों की क्षमता विपरीत परिस्थितयों में भी बना रहे। परजीवी एवं परभक्षी कीड़ों में रसायनिक कीटनाशी के प्रतिरोधी शक्ति का विकास करने की आवश्कता है।
जैविक कीटनाशी का प्रयोग
आजकल अनेक कम्पनियां जीवाणुओं कवकों एवं विषाणुओं को मिश्रित कर कीटनाशी बना रहें। इनके प्रयोग से कीड़ों में प्रतिरोधक क्षमता का विकास की सम्भावना नहीं रहती है। जैविक कीटनाशी कीटों की वृद्धि एवं विकास को प्रभावित कर मार रहें हैं। आजकल बावेरिया बासियाना, मेटरहिजयम, एनिसोपलिया ((कवक कीटनाशी), हाल्ट देलफिन, बायोलेप (बी.टी). एन. पि. वी. हेलियोथिस तथा स्पोडोपटेता जैसे कोड़ों के नियन्त्र्ण के लिए व्यवसायिक रूप से उपलब्ध है।
घरेलू कीटनाशक का प्रयोग
घर में उपलब्ध संसाधनों का प्रयोगकर कीड़ों की संख्या को कम किया जा सकता है। इनके प्रयोग से लागत में कमी होती है एवं पर्यावरण में संतुलन बना रहता है।
क) नीम की पत्तियों से कीटनाशक बनाना: एक बाल्टी को नीम की पत्तियों से भर देते हैं तथा उसको पानी में डुबोकर चार दिन के लिए छोड़ देते हैं। पांचवा दिन नीम की पत्तियों को छांट कर मिश्रण तैयार कर लेते हैं एवं घोल को छानकर थोडा सा साबुन का घोल मिलातें हैं उसके बाद छिडकाव किया जाता है। इसके कारण बहुत से कीड़ों की संख्या कम हो जाती है।
ख) नीम के बीज से कीटनाशी बनाना: एक किलोग्राम नीम के बीज को धुल में परिवर्तित करते हैं। धुल को 20 लीटर पानी में मिलाकर रातभर फूलने के लिए छोड़ देते हैं। सुबह अच्छी तरह मिश्रित कर छान लेते हैं। छानने के बाद घोल में 30 ग्राम साबुन का घोल मिलाकर फसलों पर छिड़काव करते हैं। नीम के बीज से निर्मित कीटनाशी अधिक प्रभावशाली होता है एवं अनेक प्रकार के कीड़ों के नियंत्रण में सक्षम होता है।
ग) खैनी का डंठल से कीटनाशक बनाना: एक किलोग्राम खैनी का डंठल को चूर्ण बनाकर 10 लीटर पानी में मिलाकर गर्म करते हैं। आधा घंटा खौलने के बाद घोल को ठंडा होने के लिए नीचे उतार देते हैं। जब घोल का रंग लाल भूरा हो जाता है तब घोल को छानकर 20 ग्राम साबुन का घोल मिला देते हैं। इस घोल में 85 से 90 लीटर पानी मिलाकर फसलों पर छिड़काव करते हैं। इनके प्रभाव से लाही, मधुआ, श्वेतमक्खी, दहिया कीट इत्यादी को नियंत्रित किया जाता है।
घ) हरा तीता मिर्चा एवं लहुसन के कीटनाशक बनाना: तीन किलोग्राम हरा तीता मिर्चा लेते हैं। ,मिर्चा के डंठल को हटकर पीसकर 10 लीटर पानी में डुबोकर रातभर छोड़ देते हैं। दूसरा बर्तन में आधा किलोग्राम लहसुन को कुंचकर 250 मिली. किरासन तेल में डुबोकर रातभर छोड़ देते हैं। सुबह में दोनों घोल को अच्छी तरह मिलकर छान लेते हैं। एक लीटर पानी में 75 ग्राम साबुन का घोल बनाकर तीनों घोल को एक साथ मिला दिया जाता है है। दो ढाई घंटा स्थिर होने के बाद घोल को पुनः छान लेते हैं। इस घोल में 70 लीटर पानी मिलाने के बाद फसलों पर छिडकाव करना चाहिए। यह कीटनाशी गोभी की कीड़ों के अलावे अन्य फसलों में लगने वाले पिल्लू को भी नियंत्रित करता है।
ङ) गोमूत्र से कीटनाशक बनाना: पांच किलोग्राम गोबर, पांच लीटर पानी एवं पांच लीटर गोमूत्र को मिश्रित कर चार इद्नों तक सड़ने के लिए छोड़ देते हैं। पांचवा दिन घोल को अच्छी तरह से मिलाकर छान लेते हैं। छानने के बाद घोल में 100 ग्राम चुना मिलाते हैं। इस घोल में 67-68 लीटर पानी मिलाकर फसलों पर छिड़काव करना चाहिए। इसके प्रभाव से कीड़ें, फसलों पर अंडा नहीं दे पाती है। इस कीटनाशी के उपयोग से फसलों का रोग से बचाव होता है एवं फसलों का रंग हरा-भरा हो जाता हैं।
पौधों से बना कीटनाशी
नीम से निर्मित कीटनाशी जैसे-अचूक, निम्बेसिडीन, निमेरिन, निमोल, बेनगार्ड का व्यवहार कीड़ों के नियंत्रण के लिए अच्छा पाया गया है।
कीटनाशक रसायनों का प्रयोग
आवश्कता होने पर ही सुरक्षित कीटनाशी का व्यवहार उचित समय एवं उचित मात्रा में करना चाहिए।
उन्न्त तकनीक के अंगीकरण से लाभ
प्रचलित कीटनाशक रसायनों नियत्रण के मुकाबले समेकित कीट प्रंबधन से निम्नलिखित लाभ देखे गये हैं:
- यह एक टिकाऊ एंव प्रकृति में पाए जाएँ वाले संसाधनों पर आश्रित होने के कारण लाभदायक हैं।
- यह पर्यावरण को शुद्ध करने में मददगार होता है।
- मनुष्य एवं जानवरों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।
- कीड़ों में रसायन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को करने में सहायक होता है।
- मित्र कीट एवं लाभदायक जीवों की संख्या में बढोत्तरी होती है।
- खाद्यानों एवं साग-सब्जियों में कीटनाशी के अवशेष की मात्रा नगण्य होता है।
- रसायनिक कीटनाशी के छिड़काव में भारी कटौती होती है।
- पर्यावरण में जीवों का संतुलन बना रहता है।
- मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखता है।
- अंगीकरण समस्याएँ एवं सभावनाएं
क) लाभकारी कीड़ों का पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होना।
ख) सुझाए गये आर्थिक हानि स्तर को देखने के लिए सरल तकनीकों का आभाव
ग) किसानों को पूरी जानकारी का आभाव
घ) प्रचार-प्रसार की समस्याएँ
ङ) कीटनाशी रसायन से मुक्त फल, सब्जी एवं खाद्यान्न का अधिक कीमत न मिलना
च) सामाजिक आर्थिक समस्याएँ
समेकित कीट प्रंबधन के अंगीकरण की सम्भावना अच्छी है। इसके लिए किसानों को शिक्षा की आवश्यकता है। सरकार को परजीवी एवं परभक्षी कीड़ों के पालने के लिए जैव प्रयोगशाला के गठन की आवश्कता है। इसको आगे बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि पदाधिकारी एवं कर्मचारीगण के सहयोग की आवश्कता है। उन्नत बीज, जैविक कीटनाशी, नीम से निर्मित बाजारू दवा की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता जरूरी है।
लाभ-मूल्य विशलेषण
समेकित कीट प्रबन्धन के अंगीकरण से कपास की खेती में लाभ देखा गया है
(तमिलनाडु)
अवयव |
औसत |
|
आई.पी.एम्. क्षेत्र |
साधारण क्षेत्र |
|
रसायनिक कीटनाशी का छिड़काव |
6.3 |
10.7 |
रसायनिक कीटनाशी की मात्रा (किलो ए, आई/हे.) |
3.8 |
9.२ |
छिड़काव में अंतर (दिन) |
17.1 |
9.२ |
लाभकारी जीव (प्रति सैम्पल) |
25.7 |
9.5 |
इस तालिका को देखने से पता चलता है कि उन क्षेत्रों में जहाँ समेकित कीट प्रबन्धन का काम चल रहा है, वहाँ साधारण की तुलना में यह अधिक लाभकारी है।
प्रमुख अनुशंसाए
समेकित कीट प्रबन्धन को सफल बनाने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देने की आवश्कता है:
- गहरी जुताई करके खेतों को धुप दिखाना
- खरपतवार को नष्ट करना।
- संतुलित मात्रा में खाद का प्रयोग
- स्वस्थ बीज की उपलब्धता सुनिश्चित करना
- बीजोपचार करना
- फसल चक्र अपनाना
- कीड़ों से सुरक्षा के लिए घर में बनाएं गए कीटनाशी का व्यवहार करना।
- परजीवी एवं परभक्षी का प्रयोग करना
- जैविक कीटनाशी का प्रयोग करना
- नीम से निर्मित बाजारू कीटनाशी का व्यवहार करना
- आवश्कतानुसार उचित कीटनाशी का प्रयोग उचित समय एवं उचित मात्रा में करना
- फसलों को बराबर देखरेख करते रहना।
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता : समेति, कृषि विभाग , झारखण्ड सरकार
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