परिचय
बिहार के युवा इन दिनों प्राइवेट नौकरी छोड़कर अब केले की खेती करने में लगे हैं। इतना ही नहीं आर्थिक तंगी से जूझ रहे इन युवा किसानों की किस्मत केले की खेती ने चमका दी है। कम लागत में अधिक मुनाफे की इस खेती से आज किसान संपन्न हो रहे हैं। भाटपाररानी तहसील क्षेत्र के ततायर, नेटुआबीर, बहारेवां, पड़ापुर, गौतमा, सिसविनया, नवादा, कड़सरवा, भटवा तिवारी, बरईपार पाण्डेय, बंगरा आदि दो दर्जन से अधिक गांवों में किसान केले की खेती कर रहे हैं। खास बात यह है कि इन किसानों को उद्यान विभाग से कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता। केले की पौध तैयार कर जून-जुलाई और मार्च में दो से ढाई मीटर की दूरी पर बोआई करते हैं। एक बार फसल बोने के बाद तीन किटंग दो वर्ष में लेते हैं। पहली बार की बोआई में खर्च थोड़ा ज्यादा आता है और समय भी अधिक लगता है। इसके बाद दो-दो पौध जड़ से ही तैयार कर लेते हैं। एक कटता है तो दूसरा तैयार हो जाता है। केले के बीच में हल्दी, अदरक, सरसों, मसूर, बकला, उड़द आदि की फसल बोकर किसान दोहरा लाभ लेते हैं। एक वर्ष में चार बार पानी चलाना पड़ता है।
एक एकड़ में 18 सौ पौधे
तीन तरह के केले की पौध बिहार के हाजीपुर और गोरखपुर के पीपीगंज क्षेत्र से मंगाते हैं। एक एकड़ में 17 सौ से 18 सौ पौधों को लगाया जाता है। खेती के पीछे किसानों का आकर्षण लाजमी है। केला की खेती नगदी व्यवसाय है। व्यापारी खेत से ही केला खरीदकर ले जाते हैं। इस खेती से बड़ी संख्या में किसान जहां आत्मनिर्भर हुए हैं, वहीं उनकी आर्थिक तंगी भी दूर हुई है। इ
इनकी चमकी किस्मत
ततायार के शिव बरन कुशवाहा के दो लड़के संजय कुशवाहा और सत्यप्रकाश कुशवाहा महानगरों में रहकर प्राईवेट नौकरी करते थे। वे चार साल से केले की खेती में जुटे हैं। केले की खेती के मुनाफे ने उन्हें महानगर जाने रोक दिया है। इनके अलावा दर्जनों ऐसे किसान हैं, जो पूरी तरह केले की खेती में रमे हैं। कई किसानों का कहना है कि परंपरागत खेती हो रहा है घाटा।
ऐसे होती है केले की खेती
केले का पौधा जुलाई माह में दो से ढाई मीटर की दूरी पर लगाया जाता है, इस के लिए मई में ही खेत में पौधा लगाने के लिए एक फीट गड्डा तैयार कर उसमें गोबर की खाद डाल दी जाती है। जिसे जुलाई तक खुला रखा जाता है, ताकि उसे खूब लू लग जाये।
एक बार फसल लग जाने के बाद इसकी तीन साल तक पेडी की जाती है। एक एकड जमीन में 1250 पौधे लागए जाते हैं। ज्यादा बारिश भी फसल को नुकसान नहीं पहुचाती है, बल्कि उसे फायदा ही पहुंचाती है। इस फसल में दवाओं के स्प्रे थोड़े से ही करने पडते है। केले की फसल 13 से 15 माह में तैयार हो जाती है। एक एकड जमीन में तीन क्विंटल से साढे तीन क्विंटल तक केला निकल आता है। बरहाल किसान केले की खेती से खुश है।
परंपरागत खेती में हो रहा है घाटा
बता दें कि रामपुर जिले के किसान मुख्य रूप से धान, गेंहू, गन्ना और मेंथा की खेती करते रहें हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से मौसम की मार कहे या सरकार की उदासीनता जिसकी वजह से किसान घाटे में जी रहें हैं। गेंहू और धान की फसलों में लागत ज्यादा और कीमत कम मिल रही है। इसकी वजह से किसान कर्ज के बोझ में दब रहें हैं। ऐसे हालात में किसान दूसरे विकल्प तलाश रहे थे। जिसे केले की खेती ने पूरा किया है। किसानों को केले की खेती से काफी फायदा हो रहा है।
लेखन : संदीप कुमार, स्वतंत्र पत्रकार