मछली पालन कैसे करें?
1. तालाब की तैयारी
मछली की बीज (जीरा) को डालने के पूर्व तालाब को साफ़ करना आवश्यक है। तालाब से सभी जलीय पौधों एवं खाऊ और छोटी-छोटी मछलियों को निकाल देना चाहिए। जलीय पौधों को मजदूर लगाकर साफ़ करना अच्छा रहता है और आगे ख्याल रखें कि यह पुन: न पनप सके। खाऊ तथा बेकार मछलियों को खत्म करने के लिए तालाब को पूर्ण रूप से सुखा दिया जाये या जहर का प्रयोग किया जायें। इसके लिए एक एकड़ तालाब में एक हजार किलोग्राम महुआ की खली डालने से दो-चार घंटों में मछलियाँ बेहोश होकर सतह पर आ जाती हैं। पानी में 200 किलोग्राम प्रति एकड़ ब्लीचिंग पाउडर के उपयोग से भी खाऊ मछलियों को मारा जा सकता है। पानी में इन जहरों का असर 10-15 दिनों तक रहता है।
2. जीरा संचयन: तालाब में छ: चुनी हुई मछलियों के संचयन से उत्पादन अधिक होता है। इन मछलियों की अंगुलिकायें 4000 प्रति एकड़ संख्या में निम्नांकित अनुपात में डालना चाहिए-
देशी मछलियाँ (प्रति एकड़) |
संख्या |
विदेशी मछलियाँ (प्रति एकड़) |
संख्या |
|
800 |
|
400 |
2. रोहू |
1200 |
2. ग्रांस कार्प |
300 |
3. मृगल |
800 |
3. कॉमन कार्प |
500 |
3. खाद का प्रयोग: गहन मछली उत्पादन हेतु जैविक एवं रासायनिक खाद उचित मात्रा में समय-समय पर देना आवश्यक है। खाद किस प्रकार से डालें, इसे तालिका में दिखाया गया है।
खाद डालने का समय |
गोबर: डी.ए.पी: चूना (मात्रा किलोग्राम/एकड़) |
अभुक्ति |
||
|
800 |
8 |
200 |
पानी की सतह पर हरी कई की परत जमे तो |
2. प्रति माह (जीरा संचय के बाद) |
400 |
8 |
50 |
खाद नहीं डालें |
4. कृत्रिम भोजन: मछली के अधिक उत्पादन के लिए प्राकृतिक भोजन के अलावा कृत्रिम भोजन की आवश्यकता होती है। इसके लिए सरसों की खली एवं चावल का कुंडा बराबर मात्रा में उपयोग किया जा सकता है। मिश्रण डालने की विधि इस प्रकार होनी चाहिए।
भोजन देने की अवधि |
प्रतिदिन (मात्रा किलोग्रा./एकड़) |
|
1 |
जीरा संचय से तीन माह तक |
2-3 |
2 |
चौथे से छठे माह तक |
3-5 |
3 |
सातवें से नवें माह तक |
5-8 |
4 |
दसवें से बारहवें माह तक |
8-10 |
इस प्रकार मछली पालन करने से ग्रामीणों को बिना अधिक परिश्रम से और अन्य व्यवसाय करते हुए प्रति वर्ष प्रति एकड़ 1500 किलोग्राम मछली के उत्पादन द्वारा 25 हजार रूपये का शुद्ध लाभ हो सकता है।
मिश्रित मछली पालन में आय-व्यय का ब्यौरा (एक एकड़ के लिए)
मद |
मात्रा |
अनुमानित खर्च (रु.) |
तालाब का किराया |
3000/हें. |
1,200.00 |
मरम्मत |
3000/हें. |
1,200.00ब्लीचिंग पाउडर |
ब्लीचिंग पाउडर |
80 किलोग्राम/ 15 रु. |
1,200.00 |
गोबर खाद |
5200 किलोग्राम/30 पै. |
1,560.00 |
डी.ए.पी. |
96 किलोग्राम/10 रु. |
960.00 |
चूना |
750 किलोग्राम/ 2 रु. |
1,500.00 |
अंगुलिकायें |
3600/600 हजार रु. |
2,160.00 |
चावल भूसी |
2035 किलोग्राम/1 रु. |
2,035.00 |
सरसों खली |
2035 किलोग्राम/ 8 रु. |
16,280.00 |
मछली चूना |
365 किलोग्राम/10 रु. |
3,650.00 |
अन्य |
– |
500.00 |
ब्याज |
10% |
3,224.00 |
कुल लागत |
रु.35,469.00 |
मछली उत्पादन=1500 किलोग्राम/40 रु. = रु.60,000.00
लाभ = (रु. 60,000 – 35,469) = रु. 245331.00
= रु. 245331.00
इस तरह मिश्रित मछली पालन से एक एकड़ तालाब से प्रतिवर्ष पचीस हजार रूपये का लाभ कमाया जा सकता है।
समन्वित मछली पालन
मछली पालन से अधिक उत्पादन, आय एवं रोजगार के लिए इसे पशुपालन के साथ जोड़ा जा सकता है। यदि मछली पालन से सूकर, मुर्गी या बत्तख पालन को जोड़ दिया जाये तो इसके मल-मूत्र से मछलियों के लिए समुचित प्राकृतिक भोजन उत्पन्न होगा। इस व्यवस्था में मछली पालन से अलग से खाद एवं पूरक आहार की आवश्यकता नहीं होगी। एक एकड़ के तालाब के लिए 16 सूकर या 200 मुर्गी या 120 बत्तख की खाद काफी होगी।
यदि सूकर या बत्तख को तालाब के पास ही घर बनाकर रखा जाये तो इसे खाद को तालाब तक ले जाने के खर्च की बचत होगी तथा बत्तख दिनभर तालाब में ही भ्रमण करती रहेगी तथा शाम होने पर स्वयं ही वापस घर में आ जायेगी। यह व्यवस्था उस तरह के तालाब के लिए उपयोगी है जिसमें मवेशियों के खाद देने और नहाने-धोने की मनाही है। आदिवासी बहुल क्षेत्रों के सामूहिक तालाब में इस व्यवस्था को अच्छी तरह किया जा सकता है तथा रोजगार की संभावनाओं का विकास किया जा सकता है।
मत्स्य-बीज उत्पादन
वैसा तालाब जो काफी छोटा है (10-25 डिसमिल) और जिसमें पानी भी अधिक दिनों तक नहीं रहता है, उसमें बड़ी मछली का उत्पादन संभव नहीं। लेकिन जीरा (मत्स्य बीज) उत्पादन का कार्यक्रम किया जाये तो अच्छी आमदनी प्राप्त होगी। किसान 25 डिसमिल के तालाब से एक बार यानि 15-20 दिनों में पाँच हजार रुपया तथा एक साल में 3-4 फसल कर 15,000-20,000 रु. तक कमा सकता है।
साधारणत: इस क्षेत्रों में मछली बीज की काफी कमी है और बहुत सारे तालाब बीज की कमी के कारण मत्स्य पालन के उपयोग में नहीं आ पाते हैं।
जीरा उत्पादन की विस्तृत वैज्ञानिक विधि एवं आय-व्यय का ब्यौरा निम्नलिखित है –
मत्स्य-बीज उत्पादन की वैज्ञानिक विधि (एक एकड़ के लिए)
समय |
सामान |
दर प्रति एकड़ |
स्पॉन छोड़ने के सात दिन पूर्व |
गोबर (कच्चा या सड़ा हुआ) |
2,000 किलोग्राम |
चूना |
100 किलोग्राम |
|
स्पॉन छोड़ने के एक दिन पूर्व |
डीजल एवं साबुन का घोल |
20 ली./एकड़ |
स्पॉन छोड़ने का समय (सुबह या शाम) |
स्पॉन (किसी एक जाति की मछली या मिश्रित भी ले सकते है) |
10 लाख/एकड़ |
स्पॉन छोड़ने के एक दिन बाद से पूरक आहार दें |
सरसों खली एवं चावल की भूसी पीसकर बराबर अनुपात में |
6 किलोग्राम/एकड़ (आधा सुबह एवं आधा शाम) |
स्पॉन छोड़ने के छह दिन बाद से |
12 किलोग्राम/एकड़ (आधा सुबह एवं आधा शाम) |
|
स्पॉन छोड़ने के ग्यारह से 15 दिन तक |
18 किलोग्राम/एकड़ (आधा सुबह एवं आधा शाम) |
स्पॉन छोड़ने के सोलहवें दिन से जीरा निकालकर बेचना शुरू करें। यह कार्य सुबह या शाम में करना ज्यादा लाभप्रद है।
मत्स्य-बीज (जीरा) उत्पादन में आय-व्यय का ब्यौरा (25 डिसमिल के लिए)
सामान |
मात्रा |
अनुमानित खर्च (रु.) |
ब्लीचिंग पाउडर |
20 किलोग्राम/15 रु. |
300.00 |
गोबर खाद |
500 किलोग्राम/30 पै. |
150.00 |
चूना |
25 किलोग्राम/5 रु. |
125.00 |
डीजल एवं साबुन का घोल |
5 लीटर/25 रु. |
125.00 |
स्पॉन |
2,50,000/6 रु./हजार |
1,500.00 |
आहार |
45 किलोग्राम/6 रु. |
270.00 |
कुल खर्च रु. |
2,470.00 |
जीरा उत्पादन = 75,000/ 100 रु. हजार = रु. 7,500.00
लाभ: (7,500 – 2,470) = रु. 5030.00
नोट: चूँकि यह काम बरसात के दिनों में ही होता है और एक फसल में 20-25 दिन लगते हैं इसलिए किसान एक साल में 3-4 फसल पैदा कर 15,000 से 20,000 रु. का लाभ कमा सकता है और जो मछलियाँ तालाब में रह जायेंगी उसे बड़ा होने पर वह बेच कर और लाभ कमा सकता है।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखंड सरकार
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