एक लाभदायक घरेलू उद्योग
झारखंड राज्य में कृषि के साथ बागवानी की अच्छी गुंजाइश है। यहाँ के जंगल, करंज, जामुन, नीम, सखुआ, सागवान, शीशम, सेमल, युक्लिप्टस, इमली, बकाईन आदि पेड़ों से भरे है। जिससे शहद का उत्पादन आधिक होता है। यहाँ की जमीन लीची, अमरुद, केला, पपीता, सहजन, सरगुजा एवं अन्य साग-सब्जियों के लिए भी बहुत उपयुक्त है। इन पौधों से भी शहद उत्पादन में मदद मिलती है। इस तरह हम देखते है कि झारखंड राज्य मधुमक्खी पालन के लिए अत्यंत ही उपयुक्त है। किसानों को इसमें कोई विशेष लागत की जरूरत नहीं पड़ती है। हाँ, एक बॉक्स में करीब 1000-1500 की लागत से काम शुरू किया जा सकता है, जिससे प्रतिवर्ष लगभग 1000-1200 रूपये तक फायदा मिल सकता है। और यह फायदा कई वर्षों तक लिया जा सकता है। इस उद्योग को कोई भी व्यक्ति अपना सकता है। झारखंड सरकार खादी ग्रामद्योग संस्थान के माध्यम से मौन पालकों को कई प्रकार की मदद करती है। मौन-पालन संबंधी थोड़ी-सी प्रारम्भिक जानकारी से इस उद्योग को भली-भांति किया जा सकता है।
मधुमक्खी, शहद उत्पादन के साथ-साथ मौन उत्पादन एवं कृषि की पैदावार बढ़ाने में भरपूर मदद करती है। इसलिए तो कहा गया है कि इस दुनिया में मौन मानव का सर्वोतम नन्हा मित्र है। मधु को धरती का अमृत माना गया है और यह बात सही है कि सुबह में गुनगुने पानी में भरे एक गिलास में एक-दो चम्मच शहद और आधा कागजी नींबू मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से पेट की अधिकतर बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है। इसे सर्वोतम पेय माना गया है। शुद्ध शहद में पोषक तत्व निम्न मात्रा में मिलता है – पानी- 20, ग्लूकोज- 33, फुक्टोज- 38, व् अन्य -9 प्रतिशत।
शहद की तुलना अन्य भोज्य पदार्थो से इस प्रकार की गई है।
200 ग्राम शुद्ध शहद यानि :
- 340 ग्राम मांस
- 1.35 किलोग्राम दूध
- 425 ग्राम मछली
- 10 अंडे
कैसे करें
मधुमक्खी पालन कम से कम दो बक्सों में प्रारम्भ करना चाहिए। मधुमक्खी की प्राप्ति मधुमक्खी पालकों या प्राकृतिक हलतों में पाये जाने वाले टिल्हों, मेडो, पेड़ों, दीवारों या झाड़ियों से किया जा सकता है। छोटी मक्खी (अपिस फ्लोरिया) और भंवर (अपिस डोरसाटा) को नहीं पाला जाता है, केवल मंझोली जाति, जिसे भारतीय मौन (अपिस इन्डिका) एवं विदेशी (अपिस मेलीफरा) कहते है, को बक्सों में पाला या बसाया जा सकता है। इसे पालने का सबसे उपयुक्त मौसम बसंत यानि फरवरी-मार्च है। इस समय फलों की अधिकता रहती है और इन्हें आसानी से बसाया जा सकता है। बक्सों में मधुमक्खियों की जांच 10 दिन के अंतराल पर आवश्यक है ताकि मधुमक्खी के दुश्मनों एवं रानी और कामेरी मक्खियों के कार्यकलाप की पूरी जानकारी रहें।
मधुमक्खी पालन के लिए निम्नलिखित उपकरणों की आवश्यकता होती है:
- कम से कम दो बक्सा।
- मौनी परदा (बी व्हेल) । इससे हाथों का डंक से बचाव किया जाता है।
- एक जोड़ा दास्ताना (गलब्स) । इससे हाथों का डंक से बचाव किया जाता है।
- चाक़ू एवं मधु निष्कासन यंत्र। मधु निष्कासन के समय इन उपकरणों के प्रयोग से छत्ते बर्बाद नही होते और साफ़ शहद निकलते है। पाँच-सात मौन पालक मिलकर एक मधु निष्कासन यंत्र रख सकते है।
अन्य जानकारी के लिए मौन-पालक निम्न बातों पर ध्यान दें, ताकि इस उद्योग को सफलतापूर्वक अपना सकें
- मौन-बक्सा में हमेशा मजबूत, जवान एवं अधिक उत्पादन-क्षमता वाली रानी (माँ-मौन) रखें। रानी को एक दो साल के अंतराल में बदल दें।
- मौनों की जाँच हमेशा खुली धूप में करें। बदली, चिचिलाती धूप या अँधेरे में न करें। ये आपको डंक मार सकती है।
- बक्से में शिशु-खण्ड में शहद एवं ताजे अंडे न होने पर, खासकर बरसात में, मौनों को 50 प्रतिशत चीनी या शहद का घोल दें। घोल देते समय यह ध्यान दें कि घोल बाहर न गिरे। ऐसा होने पर मौनों में परस्पर होड़ एवं लूटपाट शुरू हो जाती है।
- बक्सों की जांच के समय प्रवेश-द्वार के सामने खड़े होने पर मौनों के काम में बाधा पड़ती है।
- बक्सों की बैठकी को पानी से घिरा रखें। जिससे दीमक, चींटी, कीड़े-मकोड़े आदि न चढ़ जाए।
- मौनालय के पास धुंआ, धुम्रपान, मद्यपान या तेल गंध वाली चीजें न रखें। इससे मौने उत्तेजित हो जाती है।
- बक्सों को जाड़ा, गर्मी और बरसात से बचाने के लिए छज्जा का व्यवहार करें। इससे मौनों को आराम एवं बक्सों का बचाव होता है।
- मौन-बक्सा को स्वच्छ, ऊँची जगह पर रखें जहाँ बाग़-बगीचा, फुलवारी एवं पुष्प-रस और पराग उत्पन्न करने वाले फूलों का अधिकता हो, ताकि मौनों को पूरा भोजन मिल सके।
- शहद का निष्कासन वैसे छतों से करें जिससे करीब 80 फीसदी हिस्से में शहद मोम ढक्कन से बंद हो, अन्यथा उपरिपक्व शहद के खट्टा या खराब होने का भय रहता है।
- जहाँ तक बन सके कीटनाशी औषधियों का व्यवहार पूर्ण रूप से फूल खिलने पर न करें। बल्कि जरूरत पड़ने पर घोल बनाकर शाम के समय छिड़काव करें।
- आधुनिक मौन-पालन का मूल-मंत्र है कि बक्सों में जवान मौनों की संख्या मुख्य शहद उत्पादन समय से पहले अधिक से अधिक हो ताकि ज्यादा से ज्यादा शहद का उत्पादन किया जा सके।
मधु प्रशोधन
मधु एक मीठा, चिपचिपा तरल पदार्थ है, जिसे मधुमक्खियाँ फूलों के रसग्रंथियों से स्रवित रस को अपने शरीर में एकत्रित करके छत्ते में वापस लाती है तथा छत्ते के कोष्ठों में जमा करती है।
मधु निष्कासन मुख्यत: दो प्रकार से किया जाता है:
- निष्कासन यंत्र के द्वारा तथा 2. निचोड़ के या हाथ से छत्ते को दबाकर
छत्ता को हाथ से दबाकर या निचोड़कर मधु निकालने के क्रम में छत्ते में पल रहें अंडों, बच्चे भी दब जाते हैं तथा उनके शरीर के रस भी मधु के साथ मिल जाता है, इस तरह के मधु को अधिक दिनों तक सही रूप से नहीं रखा जा सकता है एवं किण्वन (फरमेंट) होने का खतरा बना रहता है।
आधुनिक मधुमक्खी पालन लकड़ी से निर्मित विशेष प्रकार के बक्सों में किया जाता है तथा इन बक्सों के अंदर फ्रेम रहते हैं जिसमें मधुमक्खियाँ छत्ता बनाती है। मधु निकालने के लिए इन फ्रेमों को मधु निष्कासन यंत्र में घुमाया जाता है ताकि छत्तों के कोष्ठों से मधु बाहर निकल आये। इस प्रकार निकाले गये मधु किसी प्रकार से दूषित नहीं होते है इसमें पानी की मात्रा भी अधिक नहीं होती है जिस कारण इसे काफी समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
मधु निकालने के बाद उसे प्रशोधन (प्रोसेसिंग) करने की आवश्यकता होती है अन्यथा उसमें खमीर (इस्ट) उत्पन्न हो सकता है जिससे मधु का गुणवत्ता प्रभावित होता है। प्रशोधित मधु में किण्वन होने की संभवनाएं नहीं के बराबर होती है तथा इसे शीशी में बंद करके लम्बे समय तक भण्डारण किया जा सकता है।
मधु का प्रशोधन घरेलू विधि से या मधु प्रशोधन संयत्र किया जाता है। घरेलू विधि में मधु को धूप में रखकर या वाटरबाथ सिस्टम से प्रशोधित किया जाता है। इस विधि में किसी बड़े बर्त्तन या पतीला में पानी रखकर गर्म करते है, छोटे बर्तन में मधु को मलमल के कपड़े से छानकर रखा जाता है। अब बड़े बर्त्तन के पेंदी से लकड़ी का गुटका रखकर छोटे बर्त्तन को रख देते है। तत्पश्चात इसे (बड़े बर्त्तन को) चूल्हे पर रखकर ६०डि्ग्री सें. पर आधे घंटे तक गर्म करते है। इस विधि से प्रशोधन में यदि मधु अधिक देर तक एवं अधिक तापक्रम पर गर्म हो जाती है तो उसमें एच.एम.एफ. (हाइड्राक्सवी मिथाइल फरफराल) की मात्रा अधिक हो जाएगी जिससे मधु के रंग, सुगंध (एरोमा) एवं स्वाद प्रभावित होते हैं।
मधु का सही प्रशोधन आधुनिक संयंत्र के द्वारा ही किया जाना चाहिए। यह पूर्णत: स्वचालित प्लांट है। इसमें प्रिहिटिंग टैंक लगा रहता है जिसका तापक्रम ४०डिग्री सें. रहता है। इस टैंक में अप्रशोधित मधु (रॉहनी) को डाल दिया जाता है। मधु गर्म होने पर पतला हो जाता है जिससे उसमें उपस्थित मोम आसानी से अलग हो जाते है। इस टेंक से मधु मोटर द्वारा माइक्रो फिल्टर चेम्बर में पहुँचता है जहाँ मोम, परागकण तथा अन्य अशुद्धियाँ अलग हो जाती है। यहाँ से मधु-प्रोसेसिंग टैंक से गुजरती है जिसमें पानी का तापमान 55 सें. से ६०डिग्री सें. रहता है, इस तापमान पर मधु 10 से 15 मिनट तक गुजरती है। इस तापमान पर मधु में उपस्थिति खमीर (इस्ट) मर जाता है। यह प्रशोधित मधु अब कुलींग टैंक से गुजरते हुए सेटलिंग टैंक में जमा होने लगता है। मधु में स्थित पानी की अधिक मात्रा वाष्पित होकर वैक्यूम पम्प के द्वारा निकाल दिया जाता है।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखंड सरकार
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