परिचय
आज दुनिया में वन्यप्राणियों को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। इनका अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है। इसका प्रमुख कारण उनके प्राकृतिक आवास का विनाश एवं अवैध शिकार है। अज्ञानतावश या लोभवश, वनों को विनाश तथा वन्यप्राणियों का शिकार हो रहा है, आवास दिनोंदिन सिमटता जा रहा है। जैसा की हम जानते है, वन्यप्राणी प्राकृति के अभिन्न अंग है तथा पृथ्वी के खाद्य श्रृंखला में इनका काफी महत्वपूर्ण योगदान है। अतएव हम मानव का अस्तित्व, अन्ततोगत्वा, वन्यप्राणियों के अस्तित्व से जुड़ा है। प्राकृतिक एवं पारिस्थितिकी संतुलन बनाये रखने के लिए वन्यप्राणियों का समुचित संवर्ध्दन होना अति आवश्यक है। ताकि हमें प्रदूषणरहित पर्यावरण मिल सकें। परन्तु वन्यप्राणियों का इतना बड़ा महत्व होते हुए भी यह दुर्भाग्य की बात है कि इसकी संख्या दिनों दिन घटती जा रही है। अनेकों लुप्त हो चूके हैं और बहुतेरे लुप्त होने के कगार पर है। स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। इन्हीं दृष्टिकोण से सरकार द्वारा अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, जैविक उद्यान इत्यादि की स्थापना की गई है जिसमें समयानुसार बढ़ोतरी हो रही है।
वन्यप्राणी प्रबन्धन
वन्यप्राणी प्रबन्धन का सरल अर्थ वन्यप्राणियों का इस रूप में प्रबन्धन करना है जिससे वे मानव के लिए वैज्ञानिक, पर्यावरण, आर्थिक, मनोरंजन इत्यादि दृष्टिकोण से लाभदायक हों और प्राकृतिक-संतुलन बना रहे। इस कार्य हेतु वन्यप्राणी की संख्या, उनके आवास तथा स्वभाव का अध्ययन करना नितांत आवश्यक है। वैसी भूमि जो बंजर तथा कृषि योग्य नहीं है, वन्यप्राणी-प्रबन्धन तकनीक द्वारा वन्यप्राणियों के विकास एवं संवर्धन के लिए प्रयोग की जा सकती है, जिससे लोगों का आर्थिक विकास और मनोरंजन हो सके। इससे जनजातिय समाज, जो मुख्यत: ऐसी जगहों में रहते है, का आर्थिक स्तर उठाया जा सकेगा। इससे हमें दो फायदे होगें, एक तो लुप्त हो रहे वन्यप्राणी का संरक्षण तथा विकास की तरफ एक ठोस कदम होगा। साथ ही साथ, वनों का विनाश एवं वन्यप्राणियों का अवैध शिकार को रोकना नितांत आवश्यक है।
आज हमारे देश में किसी वन्यप्राणी का शिकार करना या क्षति पहुंचाना अवैध एवं कानून जुर्म है। लोगों में वन्यप्राणियों के महत्व का सही ढंग से समझ के लिए, उनमें जागरूकता लानी होगी जन-जन के मानस पटल को जागृत करना होगा खासकर, जंगलों के निकट बसे लोगों में जागृति का अभियान पैदा करना होगा, ताकि वे खुद को तो जागृत करें ही, साथ ही अपने बच्चों को भी जागृत करें। अन्यथा, हमे परिणाम सामने देख रहे है। आवास के सिमटने एवं विनाश के चलते आज आये दिन हमारे प्रदेश झारखंड में जंगली हाथियों का प्रकोप होता रहता है। जान और माल की काफी हानि पहुंचाई जा रही है। लोग हमेशा आतंकित रहते है। अगर यही स्थिति रही तो वह दिन भी दूर नहीं, जब मांसाहारी वन्यप्राणी भी अपने भोजन के आभाव में जंगल से गाँवों की ओर दौड़ लगायेंगे। अत: उपयुक्त बातों पर काफी सोच और चिन्तन की जरूरत है। किसान भाईयों को वन्यप्राणियों एवं वनों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए तत्पर एवं प्रयत्नशील रहना चाहिए, ताकि उनकी खेती समुचित ढंग से हो सके तथा जान-माल की क्षति न हो।
जंगली हाथियों से कैसे रहें सुरक्षित
जैसा की पहले इंगित किया गया है, आजकल झारखंड प्रदेश में जंगली हाथियों का प्रकोप आये दिन झेलना पड़ रहा है। इसके बचाव के लिए काफी सोच-समझ की जरूरत है। विवेक से काम लेना होगा। तैश में आकर ऐसा कुछ नहीं करें जो ज्यादा हानिकर हो जाए। कुछ सुझाव को ध्यान में रखना जरूरी है यथा –
- हाथियों से छेड़छाड़ न करें। उसे खाने की वस्तु प्रदान न करें।
- जानकारी होने पर उस जंगल में न जाये। रात में न निकले अथवा झुंड एवं मशाल तथा शोर करने वाले सामान के साथ निकलें।
- वृक्षों पर मचान बनाकर रखवाली करें, पेड़ के नीचे आग लगायें तथा हाथी का आभास होने पर शोर मचाएँ ताकि लोग मशाल लेकर एकत्रित हों और शोर मचाएँ (हल्ला-गुल्ला, टीन इत्यादि पीटना) फिर भी किसी भी हालत में हाथी के बहुत पास न जायें।
- शराब का प्रयोग न करें, क्योंकि इसकी गंध हाथी को आकर्षित करती है।
- यथा संभव, जंगल से सटे खेतों में आलू, शकरकंद इत्यादि की खेती, जो हाथियों को अतिप्रिय है, न करें।
- हाथी का सामना होने पर हमेशा ढलान की ओर भागें।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखंड सरकार