परिचय
फूलों के रोग एवं उनकी रोकथाम: झारखण्ड प्रदेश में फूलों की व्यवसायिक खेती की पार संभावनाएं हैं। गुलाब, गेंदा ग्लैडियोलस, गुलदाउदी, जरबेरा, रजनीगन्धा, चंपा, चमकी इत्यादि फूलों के उत्पादन के प्रति प्रगतिशील किसानों के पढ़ी रूचि दिखाई है। इन फूलों का व्यवासायिक उत्पादन कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। खाद्य फसलों की तरह फूलों की फसल में न्ब्जी कई प्रकार के रोगों का प्रकोप होता है। फूलों में लगने वाले रोगों तथा उनकी रोकथाम के उपायों की जानकारी फूलों की सफल खेती के लिए आवश्यक है।
गुलाब में किन रोगों का प्रकोप होता है?
गुलाब में उल्टा सुखा, काला धब्बा एवं चूर्णिल फुफंद रोगों का व्यापक प्रकोप होता है। उल्टा सुखा रोग में शाखाएँ ऊपर से सूखने लगती है। शाखाओं का सुखना ऊपर से नीचे की ओर बढ़ता है। छटाई से बने घावों पर रोगजनकों का आक्रमण होता है। काला धब्बा रोग पत्तियों पर काले-काले गोल बिंदी के आकार के धब्बों के रूप में प्रकट होते हैं। ये धब्बे आधिकांश पत्तियों पर छा जाते हैं। चूर्णिल फुफुन्द रोग में रोगग्रस्त की पत्तियों एवं अन्य कोमल भागों पर सफेद पाउडर फैल जाता है।
गुलाब में लगने वाले इन रोगों की रोकथाम कैसे की जा सकती है?
गुलाब की शाखाओं की कटाई-छंटाई क्रिया के पश्चात कॉपर ऑक्सीक्लोराइड फुफुन्दनाशी के 0.3% घोल के छिड़काव से घावों द्वारा रोगजनकों के संक्रमण की रोकथाम की जा सकती है। काला धब्बा रोग के प्रारंभिक लक्षण प्रकट होने पर कवच/अथवा साफ (0.२%0 फुफुन्दनाशक दवाओं के छिड़काव की अनुशंसा की जाती है। इन फुफुन्दनाशियों के छिड़काव स्वर गुलाब में लगने वाले किट्ट रोग की भी रोकथाम की जा सकती है। किट्ट रोग में पत्तियों पर जंगनुमा धब्बे बन जाते हैं जिनके फटने पर पत्तियों पर नारंगी रंग के चूर्ण बिखर जाते हैं। चूर्णिल फुफुन्द रोग के प्रकोप होने पर सल्फेक्स (0.२%) केरोथेन (0.1%) अथवा कार्वेन्डाजिम (0.1%) का छिड़काव करना चाहिए।
गेंदा के पौधों एवं फूलों पर किन रोगों का प्रकोप होता है?
गेंदा में म्लानि (मुरझा) तथा तना सड़न रोगों का प्रकोप होता है। म्लानि एवं तना सड़न मृदाजनिक रोग हैं। अल्टनेर्निया पत्र लांक्षण एवं झुलसा रोगों का व्यापक प्रभाव फूलों पर अभी होता है। गेंदा में चूर्णिल फुफुन्द रोग का भी प्रकोप देखा गया है।
गेंदा में लगने वाले इन रोगों की रोकथाम के क्या उपाय है?
गंदा में म्लानि एवं तना सड़न रोगों की रोकथाम के लिए रोपाई के पूर्व बाग़ की मिट्टी को मेटालैक्जिल (0.15%)/मैंकोजेव (0.२%)/कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3%) के घोल का छिड़काव करना चाहिए। अल्टरनेंर्निया पत्र लांक्षण, झुलसा एवं चूर्णिल फुफुन्द रोगों की रोकथाम के लिए कार्बेंन्डाजिम (0.05-0.1%) का २-3 छिड़काव करना चाहिए।
ग्लोडियोलस के पौधों एवं पुष्प गुच्छों में कौन से रोग लगते हैं तथा उनकी रोकथाम कैसे की जा सकती है?
ग्लोडियोलस में म्लानि या मुरझा, ग्रीवा एवं प्रकन्द विगलन रोगों का व्यापक प्रकोप होता है। रोगजनक मृदा एवं बीज प्रकंदों में उत्तरजीवी होते हैं। इन रोगों की रोकथाम के लिए आवश्यक है कि बोआई के लिए स्वाथ्य बीज प्रकन्दों का उपयोग किया जाए। बीज प्रकन्द स्वास्थ्य पौधों से ही प्राप्त करना चाहिए एवं उनको बोआई से पूर्व तप्त जल में 40 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 30 मिनट तक उपचारित कर लेना चाहिए। विगलन रोक की रोकथाम के लिए जल निकास की समुचित व्यवस्था आवश्यक है। खेत की मिट्टी में प्रचुर मात्रा में गोबर की सड़ी काढ एवं खल्ली का प्रयोग करना चाहिए। छिड़काव इस प्रकार करना चाहिए ताकि पत्तियों के साथ पौधों की जड़ के पास की मिट्टी भी सिंचित हो जाए।
जरबेरा के पौधों पर किन रोगों का प्रकोप होता है?
जरबेरा में पाद बिगलन, जड-सड़न म्लानि (मुरझा) एवं चूर्णिल फुफुन्द रोगों का प्रकोप होता है। गुलादाउदी में भी इन सभी रोगों का प्रकोप होता ही। म्लानि रोग में पत्तियाँ पीली जड़ जाती हैं एवं पौधे सुख जाते हैं। बिगलन रोगों से प्रभावित भाग सड़ जाते अहिं एवं चूर्णिल रोग्ल में आक्रान्त पौधों की पत्तियों एवं अन्य कोमल भागों पर सफेद पाउडर छा जाते है। म्लानि एंव बिगलन रोगों की रोकथाम के लिए सौर ऊर्जीकरण की अनुशंसा की गुई है। इसके अलावा कारवेंन्डाजिम (0.05-0.1%) के घोल के छिड़काव की भी अनुशंसा की जाती है।
अब आप चम्पा, चमेली एवं रजनीगन्धा के पुष्प पौधों में लगने वाले रोगों की जानकारी दें?
चम्पा में चूर्णिल फुफुन्द रोग एवं चमेली में पत्र लांक्षण एवं किट्ट रोगों का प्रकोप होता है। इन रोगों की रोकथाम के लिए पत्तियों पर ओटल के दाग एवं जंगनुमा धब्बे उभरने पर मैंकोजेव (0.२%) का छिड़काव करना चाहिए। चूर्णी फुफुन्द रोग की रोकथाम के लिए केराथेन (0.1%) कार्बेन्डाजिम (0.1%) अथवा सल्फेक्स (0.२%) छिड़काव करना चाहिए।
रजनीगन्धा में झुलसा एवं चूर्णिल फुफुन्द रोगों का प्रकोप होता है। इन रोगों की रोकथाम भी क्रमशः कार्बेन्डाजिम (0.1%) तथा केराथेन (0.1%) के घोल के छिड़काव द्वारा की जा सकती है।
फूलों में लगने वाले सामान्य कीट एवं रोकथाम
कुछ कीट वैसे होते हैं जो मिट्टी में रहकर पौधों को नुकसान करते हैं, जैसे-दीमक, चेफर, भृंग आदि।
दीमक
दीमक एक ऐसा कीड़ा है जिसका आक्रमण असिंचित या कम सिंचाई वाले क्षेत्रों में अधिक होता है। यह कीट पौधों की जड़ों एवं कभी-कभी तना को भी क्षति करता है। अधिक प्रकोप होने पर छोटे पौधे मुरझाकर सुख जाते हैं।
प्रबन्धन
1. पौधों के चारों निकाई-गुड़ाई करना चाहिए।
2. समुचित सिंचाई से भी दीमक को नियंत्रित किया जाता है।
3. पौधों की रोपाई के पहले करंज की खल्ली एवं लिन्डेन धुल (10 किलोग्राम/एकड़) का व्यवहार करना चाहिए।
4. आवश्यकतानुसार क्लोरपारीफॉस ट्राल (२.5 मी.ली./लीटर पानी) द्वारा आक्रान्त जगहों पर सिंचाई करनी चाहिए।
चेफर भृंग
इस कीट का आक्रमण प्रायः गुलाब के पौधों पर होता है। वर्षा प्रारंभ होते ही काला या भूरा वयस्क भृंग संध्या होते ही पत्तियों, कलियों, फूलों एवं कोमल भागों को खा जाते हैं फलतः पौधे पत्रविहीन हो जाते हैं।
- प्रंबधन
नीम सीड करनल एक्सट्रैक्ट (5%) का छिड़काव प्रभावकारी होता है। 15 दिनों के अंतर पर क्वीनालफॉस तरल (1.5 मी.ली.पानी) या क्लोरपारीफॉस ट्राल (1.0 मी.ली./लीटर पानी) का छिड़काव संध्या समय करने से वयस्क कीट को नियंत्रित किया जा सकता है।
छेदक कीड़े (हेलिकोभरपा आर्मीजेरा)
इस कीट का आक्रमण गुलाब, कारनेशन, गुलाउद्दी, ट्यूबरोस, चिनास्टर, कोसान्ड्राएवं गेंदा के फूलों पर होता है। कीट के पिल्लू कलियों में छेदकर खाती हैं जबकि फूलों के पटेल को क्षत्ति करती हैं एवं मलमूत्र का भी विसर्जन करता/करती है। चिनास्टर के फूलों के माथा में गढा बनाकर हानि पहुंचाते हैं।
तना छेदक
इस कीट के पिल्लू तना एवं शाखाओं में छेद करते हैं। पिल्लू चिनास्टर के शीर्ष में छेदकर खाती है फलतः शीर्ष खोखला हो जाते हैं एवं मुरझाकर सुख जाते हैं।
प्रंबंधन
क्लोरपारीफॉस तरल या लैम्बड़ा सिहालोथ्रिन (0.05%) का छिड़काव करने से कीटों को नियंत्रित किया जाता है। बायोलेप या हाल्ट (1.0 ग्राम/ली.पानी) या वायरस युक्त कीटनाशी (हेलियोकिल 0.5 मी.ली./लीटर पानी) का छिड़काव प्रभावकारी होता है।
पत्तियाँ खानेवाले कीड़े
- वेभिल: वयस्क कीट गुलाब एवं ट्यूबरोस की पत्तियों को किनारे से “vV” आकार के रूप में काटकर खाते हैं।
- पत्र लपेटक: पत्र कीट का पिल्लू पीठ उठाकर चलते है। इसका पिल्लू गुलाब, चिनास्टर की पत्तियों में गोल छिद्र कर नुकसान करते हैं।
- स्पोडोप्टेरा : इस कीट के पिल्लू गुलाब, जरबेरा, ग्लैडिओलस इत्यादि के पौधों पर आक्रमण करते हैं। कीट के पिल्लू फूलों को खाकर क्षति पहुंचाते हैं फलतः भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
- कटुई कीट : दिन के समय इस कीट के पिल्लू मिट्टी के ढेलों, दरारों आदि में छिपे होते हैं एवं रात्रि में कोमल पौधों को जमीन की सतह से काट देते हैं। इस कीट का आक्रमण पौधों में तीन पत्तियों की अवस्था तक होती है।
- लालभृंग: चिनास्टर पौधों की रोपाई के तुरंत बाद लालभृंग का आक्रमण होता है। वयस्क भृंग पत्तियों में छेद बनाकर खाते हैं जबकि शिशु (ग्रब) जमीन के अन्दर जड़ एवं तना को नुकसान करते हैं।
प्रबन्धन
- पिल्लू को चुनकर नष्ट का देना चाहिए।
- मुड़ी हुई पत्तियाँ जिसमें कीट के पिल्लू एवं प्यूपा होते हैं, जमकर नष्ट कर देना चाहिए।
- नीम सीड करनल एक्सट्रैक्स (4%) का छिडकाव प्रभावकारी होता है।
- इंडोसल्फान तरल (0.07%) यह प्रोफेनोफाँस (0.0.5%) या लैम्बडा सिहालोथ्रिन (0.5%) का छिडकाव कारगार होता है।
- मिट्टी में मिथाइल पाराथि योन २% धुल का व्यवहार 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से करें। वेभिल के ग्रब द्वारा क्षति को नियंत्रित किया जाता है।
- क्वीनालफॉस 1.5% धुल या मिथाइल पाराथीयोन २% धुल का भुरकाव 10 किलोग्राम प्रतिएकड़ की दर से करने पर लालभृंग एवं वेभिल द्वारा क्षति को नियंत्रित किया जाता ही।
रस चूसने वाले कीट
कीट का शिशु (निम्फ) एवं वयस्क दोनों ही पत्तियों, फूलों एवं कोमल भागों का रस चूस लेते हैं जिसके कारण पौधों का विकास रुक जाता है एवं फूल भी विकृत एवं बेढंगा हो जाते हैं।
स्केलकीट
इसका आक्रमण गुलाब, कोसान्ड्रा आर्किड्स पर होता है। इसका निम्फ एवं वयस्क होनों ही पत्तियों की निचली सतहों, डंठलों एवं तनों पर रहकर रस चूसते रहते हैं फलतः पौधों का विकास अवरुद्ध हो जाता है। आक्रांत पत्तियाँ पीली होकर सुख जाती है।
थिप्स
इसका आक्रमण गुलाब, कारनेशन, जरबेरा, गुलाउदरी, ग्लैडिओलस, ट्यूबरोस, आर्किड्स, अन्थुरियम के फूलों पर होता है। थ्रिप्स पत्तियों, कलियों को क्षति पहुंचाते हैं फलतः आक्रांत पौधे भूरे एवं टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं।
- प्रंबधन
अधिक आक्रान्तिंत पौधों पर ड़ायमेथोयट या मिथाइल डिमेटोन या कार टाप हाइड्रोक्लोराइड (1.0 ग्राम/लीटर) महुआ के घोल को नियंत्रित करते हैं। दो-तीन बार छिड़काव करना लाभदायक होता है।
लाही, श्वेतमक्खी, पर्णसुरंगक, मिली वग, वग इत्यादि पत्तियों, कोमल भागों, फूलों का रस चूसते हैं जिसके फलस्वरूप फूलों का रंग बदरंग होकर मुरझा जाते हैं तथा फूल भी विकृत हो जाते हैं।
श्वेतमक्खी
इसका आक्रमण जरबेरा, अन्थुरियम एवं फायरबोल पर होता है। शिशु एवं वयस्क दोनों ही पत्तियों का रस चूसते है, पत्तियाँ पीली होकर मुरझा जाती है एवं पूर्ण विकसित पत्तियाँ सुख जाती हैं।
पर्ण सुरंगक
इस कीट का ग्रब जरबेरा एवं गुलादाऊदी के पत्तियों के बीचोबीच सुरंग बनाती है फलतः पत्तियों में टेढ़ी-,मेढ़ी उजली धारियां बन जाती हैं।
मिलिवग
निम्फ एंव वयस्क दोनों ही पत्तियों एवं कोमल भागों का रस चूसते हैं, जिसके करण पत्तियाँ विकृत हो जाती हैं एवं पौधों का विकास अवरुद्ध हो जाता है।
प्रबन्धन
- आक्रांत भागों को एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिए।
- मिथाइल डिमेटोन या ड़ायमेंथोयट (0.05%) के छिड़काव के पश्चात नीम तेल (1%) द्वारा करने से कीटों को नियंत्रित किया जाता है।
- एमिडाक्लोप्रीड (3-4 मी.लि. पानी) का छिडकाव अधिक कारगर पाया गया है।
लालमकड़ी माईट
मकड़ी माईट का समूह परिपक्व पत्तियों की निचली सतहों पर पाए जाने जाते हैं जो जाला बनाकर पत्तियों का रस चूसते हैं फलतः पत्तियाँ बदरंग हो जाती हैं। पत्तियाँ पीली होकर सुख जाती इसका आक्रमण कलियों एवं फूलों पर भी होता है।
- प्रबन्धन
ड़ायको फोल (0.05%) यह भरटीभेक (0.0025%) यह प्रोफेनोफॉस (0.05%) या अमिट्राज (0.05%) का छिड़काव करने से मकड़ी माईट के प्रकोप को नियंत्रित किया जाता है।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
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