परिचय
- वैज्ञानिक नाम :- साइप्रिनस कार्पियो
- सामान्य नाम :- कामन कार्प, सामान्य सफर, अमेरिकन रोहू
भौगोलिक निवास एवं वितरण
काँमन कार्प मछली मूलतः चीन देष की है केस्पियन सागर के पूर्व में तुर्किस्तान तक इसका प्राकृतिक घर है। भारत वर्ष में काँमन कार्प का प्रथम पदार्पण मिरर कार्प उपजाति के रूप में सन्1930 में हुआ था, इसके नमूने श्रीलंका से प्राप्त किए गए थे। इसे लाकर प्रथमतः ऊटकमंड (उंटी) झील में रखा गया था, देखते देखते मिरर कार्प देष के पर्वतीय क्षेत्रों की एक जानी पहचानी मछली बन गई। इस मछली को भारत में लाने का उद्देष्य ऐसे क्षेत्र जहां तापक्रम बहुत निम्न होता है, वहां भोजन के लिए खाने योग्य मछली की बृद्धि के लिए लाया गया था।
काँमन कार्प की दूसरी उपजाति स्केल कार्प भारत वर्ष में पहली बार सन् 1957 में लाई गई। जब बैंकाक से कुछ नमूने प्राप्त किए गए थे परीक्षणों के आधार पर यह शीघ्र स्पष्ट हो गया कि यह एक प्रखर प्रजनक है, तथा मैदानी इलाकों में पालने के लिए अत्यन्त उपयोगी है। आज स्केल कार्प देष के प्रायः प्रत्येक प्रान्तों म0प्र0 एवं शहडोल के तालाबों में पाली जा रही है।
पहचान के लक्षण
शरीर सामान्य रूप से गठित, मुंह बाहर तक आने वाला सफर के समान, संघों (टेटेकल ) की एक जोड़ी विभिन्न क्षेत्रो में वहां की भौगोलिक परिस्थितियो के आधार पर इसकी शारीरिक बनावट में थोड़ा अंतर आ गया है, अतः विष्व में विभिन्न क्षेत्रो में यह एषियन कार्प, जर्मन कार्प, यूरोपियन कार्प आदि के नाम से विख्यात है। साधारण तौर पर काँमनकार्प की निम्नलिखित तीन उपजातियाँ उपलब्ध है-
- स्केल कार्प (साइप्रिनस काप्रियोबार कम्युनिस) इसके शरीर पर शल्कों की सजावट नियमित होती है।
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मिरर कार्प (साइप्रिनस काप्रियोबार स्पेक्युलेरिस) इसके शरीर पर शल्कों की सजावट थोड़ी अनियमित होती है तथा शल्को का आकार कहीं बड़ा व कहीं छोटा तथा चमकीला होता है। अंगुलिका अवस्था में एक्वेरियम हेतु यह एक उपयुक्त प्रजाति है।
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लेदर कार्प (साइप्रिनस काप्रियोबार न्युडुस) इसके शरीर पर शल्क होते ही नहीं है अर्थात् इसका शरीर एकदम चिकना होता है।
भोजन की आदत
यह एक सर्वभक्षी मछली है। काँमनकार्प मुख्यतः तालाब की तली पर उपलब्ध तलीय जीवाणुओं एवं मलवों का भक्षण करती है । फ्राय अवस्था में यह मुख्य य रूप से प्लेक्टान खाती है। कृत्रिम आहार का भी उपयोग कर लेती है।
अधिकतम साईज
भारत वर्ष में इसकी अधिकतम साईज 10 किलोग्राम तक देखी गई है। इसका सबसे बड़ा गुण यह है, कि यह एक समषीतोष्ण क्षत्रे की मछली होकर भी उन परिस्थितियों में निम्न तापक्रम के वातावरण में संतोषप्रद रूप में बढ़ती है, एक वर्ष की पालन में यह 900 ग्राम से 1400 ग्राम तक वनज की हो जाती है।
परिपक्वता एवं प्रजनन
भारत वर्ष में लाये जाने के बाद तीन वर्ष की आयु में अपने आप ही ऊंटी झील में प्रजनन किया। गर्म प्रदेशों में 3 से 6 माह में ही लैगिंक परिपक्वता प्राप्त कर लेती है। यह मछली बंघे हुए पानी जैसे- तालाबों कुंडो आदि में सुगमता से प्रजनन करती है। यह हांलाकि पूरे वर्ष प्रजनन करती है, परन्तु मुख्य रूप से वर्ष में दो बार क्रमषः जनवरी से मार्च में एवं जुलाइ्र्र से अगस्त में प्रजनन करती है, जबकि भारतीय मजे र कार्प वर्ष में केवल एक बार प्रजनन करती है। काँमन कार्प मछली अपने अण्डे मुख्यतः जलीय पौधों आदि पर जनती है, इसके अण्डे चिपकने वाले होने के कारण जल पौधो की पत्त्तियों, जड़ो आदि से चिपक जाते है, अण्डों का रंग मटमैला पीला होता है।
अंडा जनन क्षमता
काँमन कार्प मछलियों की अण्ड जनन क्षमता प्रति किलो भार अनुसार 1 से 1.5 लाख तक होती है, प्रजनन काल के लगभग एक माह पूर्व नर मादा को अलग-अलग रखने से वे प्रजनन के लिए ज्यादा प्रेरित होती है, सीमित क्षत्रे में हापा में प्रजनन कराने हेतु लंबे समय तक पृथक रखने के बाद एक साथ रखना प्रजनन के लिए प्रेरित करता है, अण्डे संग्रहण के लिए ऐसे हापो तथा तालाबों में हाइड्रीला जलीय पोधों अथवा नारियल की जटाओं का उपयोग किया जाता है।
काँमन कार्प मछलियों में निषेचन, बाहरी होता है, अण्डों के हेचिंग की अवधि पानी के तापक्रम पर निभर्र करती है, लगभग 2-6 दिन हेचिंग में लगते है तापक्रम अधिक हो तो 36 घंटों में ही हेचिंग हो जाती है। 72 घंटे में याँक सेक समाप्त होने के पश्चात सामान्य रूप से धमू ना फिरना शुरू कर पानी से अपना भाजे न लेते हैं। 5 से 10 मिलीमीटर फ्राय प्रायः जंतु प्लवक को अपना भोजन बनाती है तथा 10-20 मिलीमीटर फ्राय साइक्लोप्स, रोटीफर आदि खाती है।
आर्थिक महत्व
काँमन कार्प मछली जल में घुमिल आक्सीजन का निम्न तथा काँर्बन डाई आक्साईड की उच्च सान्द्रता अन्य कार्प मछलियों की अपेक्षा बहे तर झेल सकती है, और इसलिए मत्स्य पालन के लिए यह एक अत्यन्त ही लोकप्रिय प्रजाति है। एक वर्ष में यह औसतन 1 किलोग्राम की हो जाती है। यह आसानी से प्रजनन करती है इसलिए मत्स्य बीज की पूर्ति में विषेष महत्व है।
प्रारभ में जब यह मछली स्थानीय बाज़ारों में आई तब लागे इसे अधिक पसंद नहीं कर रहे थे, लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता अब देष के सभी प्रदेशों में भोज्य य मछली के रूप में अच्छी पहचान बन गई है। काँमन कार्प मछलियों का पालन पिंजरों में भी किया जा सकता है। मौसमी तालाबों हेतु यह उपयुक्त मछली है। परन्तु गहरे बारहमासी तालाबों में आखेट भरे कठिनाई तथा नित प्रजनन के कारण अन्य मछलियों की भी बाढ़ प्रभावित करने के कारण इसका संचय करना उपयुक्त नहीं माना जाता है।
स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार
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