परिचय(Introduction)
शीत-कालीन सब्जियों में गोभी वर्गीय सब्जियां विशेषकर फूलगोभी एवं पत्तागोभी का विषिष्ट स्थान हैं। मनुष्य के शरीर को स्वस्थ बनाये रखने के लिये आवश्यक तत्व जैसे विटामिन (‘‘ए‘‘ एवं ‘‘सी‘‘), प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट एवं अन्य खनिज पदार्थो की पूर्ति फलगोभी एवं पत्तागोभी से हो जाती है जो सुंतुलित आहार की दृष्टि से माहत्वपूर्ण हैं। अतः किसान भाईयों को इसकी फसल उत्पादन तकनीक का ज्ञान होना बहुत आवश्यक हैं। जिससे वे अधिक आर्थिक लाभ कमा सकें। पत्तगोभी को सलाद की तरह उपयोग करने पर यह लाभकारी हैं इसमें कुछ औषधीय गुण पाये जाते हैं जो केंसर रोधी होते हैं।
भूमि का चुनाव(Land Selection)
गोभी की खेती के लिये सभी प्रकार की अच्छे जल निकास वाली भूमि उपयुक्त होती है, परंतु हल्की एवं दोमट मिट्टी जिसका जल निकास अच्छा हो तथा पी. एच. 5.5 से 6.8 हो अधिक उपयुक्त होती है अम्लीय भूमि में गोभी की खेती अच्छी नही होती हैं।
भूमि की तैयारी गोभी के लिये खेत तैयार करने के लिये सबसे पहले एक गहरी जुताई कर हैरो से क्रास जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी कर पाटा चलाकर खेत को समतल करें।
जातियों का चुनाव( Varieties of Cabbage and Cauliflower)
फूलगोभी की खेती में उन्नत किस्मों का काफी माहत्व हैं क्योंकि अगेती, मध्य अवधि वाली एवं पिछेती खेती के लिये अलग-अलग जातियों को लगाना चाहिये, क्योंकि मौसम के अनुकूल जातियों को ना लगाने पर उत्पादन पर विपरीत असर पड़ता हैं। मध्यप्रदेश में उपयुक्त पायी गयी गोभी की उन्नत जातियाँ इस प्रकार हैं।
अगेती किस्में
पूसा कार्तिकी, कल्याणपुर अगेती, पूसा दीपाली, पूसा अर्ली सिंथेटिक।
मध्य अवधि वाली किस्में
पूसा सिन्थेटिक, पूसा अगहनी, पूसा एवं इम्प्रूब्ड जापानी, पंत शुभ्रा।
पिछेती किस्में
स्नोवल 16, पूसा स्नोवल एवं पूसा स्नोवाल 2 पूसा शुभ्रा।
इन जातियों का पौध रोपण का समय, पौध अंतराल, फसल तैयार होने का समय तथा उपज, भिन्न-भिन्न हैं। समय एवं मौसम के अनुकूल विकसित जातियों को लगाकर सितम्बर माह के आखरी सप्ताह से अप्रैल माह तक लगातार गोभी बाजार में बेच सकते हैं।
किस्मे |
पौध रोपण का समय |
पौध अन्तराल |
फसल तैयार होने का समय |
उपज क्विं/हे. |
अगेती 1 पूसा कार्तिकी |
सितम्बर-अक्टूबर |
60 x 45 |
नवम्बर |
100-125 |
2 पूसा दीपाली | जुलाई-अगस्त | 50 x 45 | मध्य अक्टूबर | 100-120 |
3 पूसा अर्ली सिंथेटिक | जुलाई-अगस्त | 50 x 45 | अक्टूबर-नवम्बर | 120-150 |
मध्य अवधि वाली किस्में
1 पूसा सिन्थेटिक |
मई-जून | 45 x 30 | 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर | 80-120 |
2 पूसा अगहनी | अक्टूबर-नवम्बर | 60 x 45 | दिसम्बर | 150-170 |
3 इम्प्रूब्ड जापानी | नवम्बर | 60 x 45 | जनवरी-अप्रेल | 150-200 |
4 पंत शुभ्रा | अक्टूबर-नवम्बर | 60 x 45 | जनवरी-फरवरी | 150-200 |
पिछेती किस्में
1 पूसा स्नोवाल -1 |
नवम्बर |
60 x 45 |
जनवरी से अप्रेल |
175-200 |
2 पूसा स्नोवाल -2 | नवम्बर | 60 x 45 | जनवरी से अप्रैल | 175-200 |
3 स्नोवाल 16 | नवम्बर | 60 x 45 | जनवरी से अप्रैल | 175-200 |
4 पूसा शुभ्रा | नवम्बर | 60 x 45 | जनवरी से अप्रेल | 175-200 |
पत्तागोभी की उन्नत किस्में जैसे प्राइड आफ इंडिया, गोल्डन एकड़ तथा पूसा अर्ली, ड्रम हेड, पूसा मुक्ता आदि प्रचलित किस्मों को लगाकर अधिक आय कमा सकते हैं।
फूलगोभी की संकर किस्में
स्ंकर किस्मों की उपज उन्नत किस्मों की अपेक्षा दो गुनी होती हैं। अतः फूलगोभी की संकर किस्मों का उपयोग कर अधिक आर्थिक लाभ कमा सकते हैं। वैसे तो बहुत सी निजी कम्परियों के बीज बाजार में उपलब्ध हैं परंतु अगेती फसल हेतु बी. एस.एस. 57 जिसको कि सितम्बर से अक्टूबर तक लगाकर 50 से 55 दिन बाद फसल ले सकते हैं तथा उपज 250 से 300 क्विंटल/हेक्टेयर प्राप्त होती हैं। इसी प्रकार मध्य अवधि वाली संकर किस्मों में सैरनों, नाथ स्वेता एव ंबी. एस. एल. 18 अधिक उपयुक्त है जिसको अक्टूबर से दिसम्बर तक पौध रोपण कर 70-75 दिन बाद फसल प्राप्त कर सकते हैं। इन संकर किस्मों से 250 से 300 क्विंटल/हे तक उपज मिलती हैं।
फूलगोभी की ही भाँति संकर पत्तागोभी की भी विभिन्न किस्मों का विकास किया जा चुका हैं जो किसानों के बीच में अधिक प्रचलित हो रही हैं। जैसे कि रैपिड मस्केटियर, बजरंग, श्री गणेश गोल किवस्टो आदि।
फसल चक्र
- फूलगोभी (अगेती) – आलू – बरबटी
- फूलगोभी – लौकी – भिण्ड।
- पत्तागोभी – मूली, प्याज – भिण्डी
- भिण्डी – पत्तागोभी – बरबटी
रोपणी तैयार करना
सब्जी उत्पादन में रोपणी का विशेष माहत्व है अतः उन्नत एवं संकर किस्मों के रोग रहित षुद्ध साफ और 90 प्रतिशत अंकुरण क्षमता वाले बीज को रोपणी के लिये लेना चाहिये। स्वस्थ रोपणी तैयार करने के लिये सर्वप्रथम पौध शाला की भूमि का चुनाव मुख्य है इसके लिये ऐसी भूमि का चुनाव करना चाहिये जो खुली जगह हो एवं वहां किसी प्रकार की छाया न पड़ती हो तथा उस भूमि का जल निकास अच्छा हों। खेत के ऊँचे स्थान को रोपणी के लिये चुनना चाहिये। इसके लिये सबसे पहले पौधशाला में गोबर की खाद डालकर आवश्यकतानुसार 10 मीटर ग 1 मीटर ग 15 से.मी. ऊँचाई की क्यारियाँ बना लें। यह ध्यान रखना चाहिये कि गोबर की खाद पूर्णतः सड़ी हुई हो।
प्रत्येक क्यारियों में 30 किलोग्राम खाद डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। पौधशाला में क्यारियां बनाकर इनका निर्जीवीकरण इसके लिये तैयार क्यारियों को सिंचाई कर पालीथिन शीट या चद्दर से अच्छी तरह से ढक कर किनारों को गीली मिट्टी से अच्छी तरह सील कर देते है जिससे बाहर की हवा अंदर न जा सके न ही अंदर ही हवा या वाष्प् बाहर आ सके।
इस प्रकार पौधशाला को पालीथिन सीट से लगभग 15 दिन तक ढककर रखें। दूसरी विधि में तैयार क्यारियों में एक प्रतिशत फार्मेलिन छिड़कर पोलीथिन शीट से अच्छी तरह से ढक कर 10 दिन तक रखे उसके पश्चात क्यायिों को खोलकर छोड़ दें, जिससे फारमेलिन की गंध उड़ जाती हैं। इस प्रकार फारमेलिन या फफूंदनाशक दवा डायथेन एम 45 का 0.3 प्रतिशत घोल बनाकर 6 लीटर/वर्ग मीटर की दर से पौध शाला को तैयार क्यारियों में छिड़काव कर मिट्टी का निर्जीवीकरण करें। तत्पश्चात सर्वागी दानेदार कीटनाषी को 2.5 ग्राम प्रतिवर्ग मीटर के क्षेत्र में डालकर मिट्टी का कीटों से निर्जीवीकरण करें फिर 15ः15ः15 (नत्रजन: स्फुर: पोटाश) का संकुल उर्वरक मिश्रण 500 ग्राम/क्यारियों के हिसाब से डालकर गोडकर मिट्टी को बारीक भुरभुरी बना लें। इस प्रकार पौधशाला की क्यारियों को बुवाई के लिये तैयार करें।
थाईरम या केप्टान या सेरेसान या बेविस्टिन 2 ग्राम दवा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीज में मिलाकर पौधशाला की क्यारियों में 10 से.मी. कतार से कतार की दूरी रखते हुये 10 से 15 से.मी. की गहराई में बोवाई करें। बीज होने के बाद बारीक मिट्टी और सड़ी गोबर की खाद के मिश्रण से बीज को हल्का ढाक देना चाहिये, इसके बाद सूखी पुआल या कांस से क्यारियों को ढँक दें। और फुआर से हल्की सिंचाई करें। जब अंकुरण हो जाये पुआल या कांस को हटा दें। अधिक धनी होने पर कुछ अंकुरित पौधे उखाडकर बिरला कर दें या इससे बचने के लिये नरसरी को ज्यादा घना न बोयें।
कीट एवं व्याधियों से पौधशाला को बचाने हेतु डायथेन एम. 45 या मेलाथियान 50 ई.सी. का 1 – 2 मि. ली. मात्रा का एक लीटर पानी में घोल कर 10-15 दिन के अंतर में छिड़काव करते रहें। उचित नमी बनाये रखने हेतु आवश्यकतानुसार हजारे से सिंचाई करते रहें।
खाद एवं उर्वरक (Fertilizers for Cabbage and Cauliflower)
पौध रोपाई के पूर्व खेत की तैयारी के समय 20-25 टन प्रति हेक्टेयर अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद मिला देना चाहिये। फूल गोभी एवं पत्ता की फसलों में अलग-अलग फसलों पर उर्वरक की मात्रा भिन्न-भिन्न होती हैं जो इस प्रकार हैं।
फसल |
नत्रजन |
स्फुर |
पोटास किलो/हेक्टेयर |
उन्नत किस्में फूलगोभी |
120 |
60 |
40 |
अगेती | 125 | 75 | 40 |
पिछेती | 180 | 80 | 40 |
पत्तागोभी | |||
संकर किस्में
फूलगोभी |
200 |
125 |
150 |
पत्ता गोभी | 200 | 125 | 150 |
पौध रोपाई के पूर्व उपरोक्त स्फुर तथा पोटाश की संपूर्ण मात्रा आधार खाद के रूप् में खेत की तैयारी के समय मिला दें। नत्रजन की मात्रा आधार खाद के रूप में खेत की तैयारी के समय मिला दें। नत्रजन की मात्रा की आधी मात्रा को अमोनियम सल्फेट से स्फुर तथा पोटाश के साथ ही आधार खाद के रूप् में मिलायें तत्पश्चात आधी मात्रा को दो समान भागों में तीसरे एवं पाँचवे सप्ताह में रोपाई के बाद खड़ी फसल में पौधों के पास गोलाई में दे तथा हल्की गुड़ाई करें।
सिंचाई(Irrigation of Culiflower and Cabbage)
फूलगोभी और पत्ता गोभी की रोपाई के बाद हल्का पानी दें फिर उचित नमी बनाये रखने के लिये आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करें। फूल बनते समय और बढते समय उचित नमी बनाये रखना बहुत आवश्यक हैं।
निंदाई एवं गुड़ाई(Weeding)
फसल की अच्छी बढवार के लिये खेत की निंदाई गुड़ाई बहुत आवश्यक है साधारणतः 2-3 अंत कृषि क्रियाओं की आवश्यकता पड़ती हैं पत्तागोभी और फूलगोभी की फसल उथली जड़ वाली फसल है अतः गहरी गुड़ाई नही करना चाहिये तथा सुबह के समय भी गुड़ाई नही करना चाहिये।
मिट्टी चढाना
वर्षा ऋतु के समय पानी की बौछार से मिट्टी कट जाती है और जड़े निकल जाती हैं जिससे पौधा असंतुलित होकर गिर जाता है अतः पौधों को हल्की मिट्टी चढाना चाहिये।
बलेचिंग
फूल गोभी की शीघ्र फलने वाली किस्मों के फूल को उसी की सूखी पत्तियों से ढकना चाहिये इसको बलेचिंग कहते हैं। इससे फूल धूप में जलते नही और पीले नही पड़ते। उनकी सुगंध और आर्कषकता बनी रहती हैं। बलेचिंग की समय अवधि गर्म मौसम में 3-5 दिन ठंडे मौसम में 8-10 दिन से अधिक नही होना चाहिये इससे फूल के ऊपर विपरीत प्रभाव पड़ता है। लेट किस्मों में बलेचिंग की आवश्यकता नही पड़ती हैं।
पौध संरक्षण(Plant Protection)
अ)गोभी के कीट कीट(Pests of Cauliflower and Cabbage)
1.एफिड
ये चूसने वाले कीड़े हैं जो पत्तियों का रस चूसते हैं इनकी रोकथाम के लिये एमोडाक्लोपिरिड 0.006 प्रतिशत का छिड़काव करें।
2.डायमेंड बैंक माथ
इसकी इल्लीयाँ पत्तियों को खाती हैं। इनकी रोकथाम के लिये फिप्रोनिल 5 प्रतिशत का या केलडान का छिड़काव करें।
3.बिहार हेयरी केटर पिलर
ये कीट भी पत्त्यिों को खाकर नुकसान पहुँचाते हैं। इसकी रोकथाम डायमेंड बैंकमाथ के समान करें।
4.कटवर्म
ये कीट बहुत हानि पहुँचाते हैं ये छोटे पौधों को जमीन के पास से काट देते हैं इसके नियंत्रण के लिये क्लोरोपायरीफास का छिड़काव करें।
ब)गोभी के रोग(Diseases of Cauliflower and Cabbage)
आमतौर पर गोभी वर्गीय फसलों को ब्लेट रांट तथा फ्यूजेरियम उकटा रोग का प्रकोप होता है।
1 ब्लेक रांट
इससे ग्रसित पौधों के किनारे -किनारे वी आकार में मटमेले भूरे धब्बे आते हैं। जो बाद में फैलकर संपूर्ण पत्ती को नष्ट करते है बाद में तने का अंत भाग काला पड़कर पूर्णतः सड़ जाता है। गोभी तोडने पर बदबूदार माहक आती हैं। रोकथाम के लिये बीज को बोवाई के पूर्व 50 से.गे. ताप वाले गर्म पानी में 20 से 22 मिनिट तक डुबाकर रखें फिर उपचारित बीज को छाया में सुखाकर बुवाई करें। ध्यान रहे कि उपचार के तापक्रम अथवा समय की अधिकता से अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है या फसल में शुरू की अवस्था में बीमारी आने के पूर्व बेविस्टीन 3 ग्राम $ स्ट्रेपटोसायक्लीन 2 ग्राम/15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से फसल को बचाया जा सकता हैं। इसके अतिरिक्त कुछ संकर किसमें जैसे क्विस्टो एन. वी. एस. एस. 115 इस रोग के लिये प्रतिरोधी पायी गई है इनको लगाना चाहिये।
2. फ्यूजेरियम उकठा
इस बीमारी में खेत में पौधे जगह-जगह सूखना प्रारंभ हो जाते हैं। सर्वप्रथम पत्तियों की नसों में काला-भूरापन दिखाई पड़ता है साथ ही पौधों की जड़ों में भी भूरापन आ जाता हैं और पौधा सड़ कर सूख जाता है इसकी रोकथाम के लिये फसल चक्र अपनाना चाहिये तथा फ्जेरियम उकठा रोधी किस्में जैसे बजरंग, क्विस्टो एव ंबी. एस.एस 115 लगाना चाहिये।
कार्यकीय विकार
फूलगोभी की खेती में फूल में बहुत सारे कार्यकीय विकार आ जाते हैं जैसे फूल का बहुत छोटा होना व्यहि पटेल, फूल का बिखरना, फूल का न बनना। फूल का न बढना एवं छोटा रह जाने का मुख्य कारण जातियों का समयानुसार चयन कर न लगाना और यदि समय पर नत्रजन उर्वरक की उचित मात्रा न दे तो भी यह विकार आ जाता है। इसी प्रकार दूसरा कार्यकीय विकार है व्यहिप टेल, यह विकार मोलीबिडनाम की कमी की वजह से आता है। इस में पत्तियाँ पूर्ण रूप से विकसित नही होती। इस प्रकार का विकार अम्लीय भूमि में जिसका पी. एच. मान 4.5 होता है उसमें अधिक होता है इसके लिये 1-2 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से सोडियम मोलीब्लेडेर या अमोनयम मोलीब्लेडेर खेत की मिट्टी में तैयारी के समय मिला देना चाहिये।
इसी प्रकार फूल का भूरापन भी बोरान की कमी से होता है इसके लिये बोरेक्स 2 ग्राम/लीटर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये। कभी-कभी यह भी देखा जाता हैं कि पौधे तो काफी स्वस्थ एवं मोटी पत्तियों वाले होते है परंतु उनमें फूल का विकास नही होता है इसका मुख्य कारण कीड़ो मकोड़ों के खाने या किसी अन्य कारण से पौधे की अग्र कलिका नष्ट हो जाती है जिससे फूल का विकास नही होता है ऐसी की समस्या पत्ता गोभी में भी आती हैं। अतः समय≤ पर उचित कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिये।
फसल कटाई(Harvesting of Cauliflower and Cabbage)
फूलगोभी के पूर्ण विकसित अच्छे आकर्षक फूलों को तेज धारदार चाकू से काट लेना चाहिये। फूल काटते समय ध्यान रखे कि कुछ पत्तियाँ फूल के साथ लगी रहें। इसी प्रकार पत्ता गोभी को भी पूर्ण विकसित कडे बंधे को काट ले 3-6 कटाई में ही पूर्ण खेत खाली हो पाता हैं।
उपज(Yield per acre)
फूलगोभी और पत्तागोभी की उपज मौसम और किस्मों के उपर निर्भर करती हैं। अगेती किस्मों की उपज मध्य और लेट किस्मों से कम आती हैं। फूलगोभी की औसतन उपज 250 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उन्नत किस्मों से मिलती हैं तथा पत्तागोभी की अगेती उन्नत किस्मों की 250-300 क्विंटल एवं लेट और मध्य कालीन किस्मों की 250 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती हैं। संकर किस्मों की उपज उनकी किस्मों के अनुसार अलग-अलग हैं।
Source-
- Jawaharlal Nehru Krishi VishwaVidyalaya,Jabalpur, Madhya Pradesh.