परिचय
वैसे तो सभी लोग सब्जियों का उपयोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार करते ही हैं, परंतु इनका उपयोग यदि चिकित्सीय दृष्टि से किया जाए तो अनेक छोटे – बड़े रोगों सेछूटकारा मिल सकता है। विश्व की अधिकांश चिकित्सा पद्धतियों – आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी, तिब्बती आदि में अनेक प्रकार की वनस्पतियों जैसे फलों – सब्जियों एवं उनके अवयवों आदि का उपयोग ही अधिक होता है।
करेला
करेला औषधीय गुणों से युक्त सब्जी हैं जो सम्पूर्ण भारत में उगाई जाती है। करेला 10 से 20 सेमी. तक लंबा, सिरे पर शूंडाकार और खुरदरी रचना से ढका होता है। इसके बीज कच्ची अवस्था में सफेद और पक जाने पर लाल होते हैं। इसकी दो किस्में होती हैं।
औषधीय गुण – करेले में उत्कृष्ट औषधीय गुण होते हैं। यह प्रतिकारक, ज्वारहरी, टॉनिक, क्षुधावर्धक, पाचक और पित्तनाशक होता है। इसमें सभी विटामिन और खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में होत्र हैं, जैसे – विटामिन ए, बी – 1, बी – 2, सी और लौह। इसका सेवन कई रोगों, जैसे उच्च रक्तचाप, आँख का रोग, तंत्रिका शोथ और कार्बोहाइड्रेट की दोषपूर्ण मेटाबौलिज्म को कम करता है। यह संक्रमण के विरूद्ध शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
करेले को मधुमेह की औषधि के रूप में विशेष रूप से प्रयोग में लाया जाता है, जो रक्त और मूत्र शर्करा के स्तर को कम करने में बहुत लाभकारी है। मधुमेह के रोगी के आहार में इसे अवश्य शामिल किया जाना चाहिए। अच्छे परिणाम के लिए मधुमेह के रोगी को प्रत्येक सुबह खाली पेट चार या पांच करेलों का रस लेना चाहिए। करेले के बीज को पीसकर भोजन में भी लिया जा सकता है। करेला रक्त संबंधी अनियमितताओं, जैसे – रक्त का फोड़ा, खुरंड, छाले, दाद और अन्य फंगस जैसी बीमारियों में अति लाभदायक बताया गया है। इन अवस्थाओं में करेले के एक कप रस में नींबू के एक चम्मच रस मिलाकर प्रतिदिन चार से छह माह पीने से काफी लाभ मिलता है।
प्राचीनकाल से ही श्वसन संबंधी अनियमितताओं के लिए देशी औषधियों में करेले की जड़ का उपयोग किया जाता है। यह दमा, ब्रोंकइटीस, सर्दी और राईनिटिस में उत्तम दवा का कार्य करता है। करेले की ताजे पत्तियों का रस बवासीर में उपयोगी होता है। अल्कोह्लिज्मा के उपचार के लिए करेले के पत्तों का रस उपयोगी है। यह अल्कोहल के नशे का अंत करता और नशे का कारण यकृत को होने वाले नुकसान में भी उपयोगी है। गर्मी में करेले के ताजा पत्तों का रस डायरिया में भी प्रभावी होता है। करेले से विभिन्न तरह की सब्जियों बनाई जाती हैं। पके फल के बीजों का प्रयोग भारत में मसाले के रूप में किया जाता है। एशिया और अफ्रीका में देशी दवाओं में करेले का प्रयोग किया जाता है।
भिंडी
भिंडी बहुत ही लोकप्रिय सब्जी हैं जो संपूर्ण भारत में उगाई जाती है। इसकी ऊंचाई 60 से 90 से. मी. होती है। इसका तना हरे रंग का तथा रोएदार होता है। भिंडी की उत्पति उष्ण कटिबंधीय अफ्रीका में हुई। भिंडी में मृदुता, लसीलापन और श्लेष्मता अधिक मात्रा में रहती है, जो की महत्वपूर्ण इप्वाइंट, शामक और मूत्रवर्धक है। भिंडी का रस गले, पेट मलाशय और मूत्रमार्ग में होने वाली जलन के लिए उपयोगी बताया गया है। ताजा बीजरहित दो कोमल भिंडियां प्रतिदिन चबाकर खाने से कई प्रकार के रोग दूर होते हैं। गले की खराश और लगातार सूखी खांसी में भिंडी बहुत उपयोगी है। भिंडी काटकर 250 मिली. पानी में उबालकर काढ़ा बनाना चाहिए। इस काढ़े से निकली भाप के श्वास द्वारा भीतर लेने से गले की खराश और सूखी खांसी में लाभ मिलता है। भिंडी एक उपयोगी टॉनिक है। सोने से पूर्व नित्य भिंडी के गूदा का लेप लगाकर आधे घंटे बाद धोने से त्वचा मुलायम व साफ होता है। इससे मुंहासे ठीक होते हैं
कोमल भिंडी को उबालकर, भाप देकर, काटकर और तलकर प्रयोग में लाया जाता है। इसमें बहुत लेस होता है। सूप तथा ग्रेवी में भी इसका प्रयोग होता है। इन्हें सुखाकर व पीसकर सुगंध के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इनकी छोटी पत्तियां भी खाई जाती हैं। पके बीजों में लगभग 20 प्रतिशत खाद्य तेल रहता है।
मेथी
मेथी महत्वपूर्ण हरी सब्जियों में से एक है। इसका नियमित सेवन शरीर को स्वस्थ रखता है। औषधि और भोजन दोनों तरह से इसका उपयोग किया जाता रहा है। हमारे देश में मेथी का साग लोकप्रिय है। इसमें कैलोरी ऊर्जा पर्याप्त मिलती है। मेथी की सूखी पत्तियों में दालों के बराबर प्रोटीन होता है। मेथी की पत्तियां सुगंधित, ठंडी और नरम मिलती हैं। अपचन, सूजन, यकृत, मुंह के अल्सर इत्यादि बीमारियों में ये बड़ी फायदेमंद होती हैं। यदि पत्तियों के साथ उबले पानी से कुल्ला किया जाये तो अल्सर में तुरंत फायदा पहुँचता है। रक्त के निर्माण में मेथी का साग बहुत ही फायदेमंद है। इससे खून की कमी या युवावस्था के शुरू में होने वाली परेशानियों से छुटकारा पाया जा सकता है। मेथी के बीज का रासायनिक विश्लेषण करने से यह ज्ञात हुआ है कि इसका क्षारीय गुण भूख को बढ़ाता है। बच्चों में व्याप्त सुखंडी रोग में इससे अच्छा लाभ मिलता है संक्रामक बीमारियों में भीं इससे आराम मिलता है। मधुमेह के रोगियों को भी इसके सेवन से लाभ मिलता है। मेथी के बीजों से बालों की रूसी का भी उपचार किया जा सकता है। इसके लिए दो चम्मच मेथी को रात भर पानी में भिगो दीजिए। प्रातः काल उन मुलायम बीजों को मसलकर गाढ़ी पेस्ट बना लीजिये। अब इसको अपने पूरे सिर पर लगाकर लगभग आधे घंटे के लिए छोड़ दीजिए। उसके पश्चात् सिर को शिकाकाई अथवा साबुन से अच्छी तरह साफ कर लीजिए। कुछ ही दिनों में रूसी का नामोनिशान नहीं मिलेगा।
संक्रामक रोगों की विषम परिस्थितियों, जैसे श्वासनाली में सूजन, सर्दी – जुकाम, नासूर – नजला और निमोनिया में मेथी की चाय अत्यंत लाभदायक होती है, क्योंकि इससे पसीना आता है और उसी के साथ ही सारा विकार भी शरीर से बाहर निकल जाता है। मेथी के बीज से बने काढ़े से कुल्ला करना गले के लिए उत्तम है। विश्व प्रसिद्ध पोषक आहार विशेषज्ञ लिर्लोड कॉडेल के अनुसार,मेथी में शरीर को साफ करने की ऐसी शक्ति है जो अचंभित कर देती है। शरीर के अंदर की सारी विषमताओं को इसका तेल दूर कर देता है। कोशिकाएं भी इसको अपने पुनर्निर्माण के लिए आसानी से ग्रहण कर लेती हैं। इनमें से कुछ पसीना की ग्रंथियों में जाकर सारी बेकार चीजों को बाहर कर देती है। मिश्र और इथोपिया में मेथी के बीज ब्रेड ओर बेकरी के उत्पादन में प्रयोग किये जाते हैं। मिस्र तथा स्विटजरलैंड में भोजन को स्वादिष्ट बनाने में तथा अमेरिका में अनेक रूपों में मेथी का प्रयोग किया जाता है। जावा में तो बालों के टॉनिक और सौन्दर्य सामग्री में भी इसका प्रयोग होता है।
इस तरह में देखते हैं कि ये न केवल हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक विटामिन, खनिज और अन्य तत्वों की पूर्ती करती है बल्कि रोगों को दूर करने में औषधि के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
लेखन: मनोज कुमार
स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार
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