न्यूज डेस्क, अमर उजाला, धर्मशाला
Updated Mon, 14 Oct 2019 11:52 AM IST
डॉ. विनोद शर्मा प्रधान वैज्ञानिक हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर
– फोटो : अमर उजाला
20 नवंबर तक एचपीडब्ल्यू-155 और एचपीडब्ल्यू 236 आदि कई किस्में उपयुक्त हैं। पछेती बिजाई 20 नवंबर के बाद की जा सकती है। इसके लिए किसान वीएल गेहूं 892, एचएस 490 (पूसा बेकर), एचपीडब्ल्यू-373 शामिल हैं। समय पर बिजाई के लिए चार किलोग्राम व पछेती बिजाई के लिए 5-6 किलोग्राम बीज प्रति कनाल बीज डाला जा सकता है। अगर छट्टा विधि से बिजाई करनी हो तो बीज की मात्रा को किसान बढ़ा दें।
इसके अलावा पानी की नियमित सुविधा होने पर फसल में चंदेरी जड़ें निकलते समय, छिड़काव के समय, गांठें बनते समय, फूल आने व दानों की दूध अवस्था पर किसान सिंचाई करने से गेहूं की पैदावार में बढ़ोतरी कर सकते हैं। गेहूूं की अच्छी पैदावार के लिए खेत की तैयारी के समय प्रति कनाल 4-5 क्विंटल गली-सड़ी गोबर की खाद डालें। इसके अलावा गेहूं की फसल में विभिन्न प्रकार के खरपतवार उपज को भारी नुकसान पहुंचाते हैं।
इसके लिए समय-समय पर खरपतवारों का नियंत्रण अति आवश्यक है। इसके लिए बीजाई के लगभग 35-40 दिन के बाद एक बार निराई-गुड़ाई करें। हाथों से निराई-गुड़ाई करना महंगा पड़ता है तथा इससे जड़ों को नुकसान पहुंच सकता है। इसके लिए खरपतवारनाशियों से नियंत्रण लाभदायक रहता है। बिजाई के 35-40 दिनों के बाद खरपतवारों पर 2-3 पत्तियां आने और भूमि में उचित नमी होने पर दवाइयों का छिड़काव किसान कर सकते हैं।
क्षेत्र व बिजाई के समय के अनुकूल सुधरी व रोगरोधी किस्मों का इस्तेमाल करें व 3-4 वर्ष बाद बीज बदल लें। अनुमोदित मात्रा में ही बीज, खाद और विभिन्न दवाइयों का प्रयोग करें। खरपतवार नाशियों का छिड़काव फ्लैट फैन अथवा फ्लड जैट नोजल से ही करें। रतुआ रोगों के लक्षण दिखते ही सही दवाई का सही मात्रा में छिड़काव करें।
गेहूं की फसल पर मंडराने वाली बीमारियां
हिमाचल प्रदेश में पीला और भूरा रतुआ, खुली कंगियारी, चूर्णी फफूंद व करनाल बंट प्रमुख रोग हैं। इनमें से कंगियारी व करनाल बंट बीज से उत्पन्न होते हैं, जबकि रतुआ, चूर्णी और झुलसा रोग हवा में उपस्थित बीजाणुओं से फसल पर आते हैं। इनसे बचाव के लिए किसान विशेषज्ञों की सलाह लेकर समय-समय पर दवाइयों का छिड़काव करें।
डॉ. विनोद शर्मा प्रधान वैज्ञानिक हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में पिछले 30 वर्षों से कृषि अनुसंधान शिक्षा और प्रसार का अनुभव रखते हैं। इसके अलावा गेहूं अनुंसान केंद्र मलां में भी वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। साथ ही पीएचडी के दो प्रशिक्षुओं को भी डॉ. विनोद शर्मा गाइड कर चुके हैं।