फसल में खरपतवार नियंत्रण
फसलों की बोनी के साथ ही किसानों के लिए अनावश्यक रूप से खेतों में उगने वाले खरपतवार एक बहुत बड़ी समस्या बन जाती है। खरपतवार फसलों की उपज में 10 से लेकर 85 प्रतिशत तक का उत्पादन कम कर सकते हैं। इनसे न केवल उत्पादन कम होता है बल्कि उपज की गुणवत्ता में भी कम आती है | अच्छे गुणवत्ता के बीज एवं आदान सामग्रियों के उपयोग करने के बाद भी खरपतवारों से निपटना बहुत मुश्किल होता है । अतिरिक्त खरपतवार फसलों को प्रभावित करने वाले कीट एवं रोग व्याधियों के जीवाणु को भी शरण देते है, जिससे कृषकों को विपरीत परिस्थितियों भारी आर्थिक नुकसान की संभावना बढ़ जाती है।
धान की फसल में लगने वाले मुख्य खरपतवार
खरपतवार विभिन्न प्रकार के होते है, परन्तु सकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार बहुतायत में खरीफ में उगते है। जैसे सकरी पत्ती वाले खरपतवार धान के खेतों में जंगली सांवा, सवई घास, जंगली कोदो, दूब घास आदि घास वर्गीय प्रमुख खरपतवार है तथा कनकौवा, कांटेदार चौलाई, पत्थरचट्टा, भंगरैया, महकुआ, मिर्च बूटी, फूल बूटी, पान पत्ती, बोन झलोकिया, बमभोली, घारिला, दादमारी, साथिया, कुसल आदि चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार है। धान की सीधी बुवाई वाले खेतों में 15 व 45 दिन बाद रोपा धान में 20 व 40 दिन बाद खेतों को खरपतवार रहित रखना चाहिए।
खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग करें
धान के फसलों में खरपतवारों के नियंत्रण तथा बुआई या रोपाई के बाद खरपतवारों की समस्या होने पर बिसपायरी बैक सोडियम 250 मिली प्रति हेक्टेयर ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से तथा मेटसल्फु यत्ररान 20 ग्राम प्रति हेक्टेयर मिलाकर धान की फसल पर कट नोजल से छिड़काव करें। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु मेटसल्फ्यूरान मिथाइल 20 प्रतिशत डब्लू.पी. 20 ग्राम या इथाक्सी सल्फ्यूरान 15 प्रतिशत डब्लू.डी.जी. 100 ग्राम रसायनों में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को प्रति हे० लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नॉजिल से बुवाई के 25-30 दिन बाद छिड़काव करना चाहिए |यह भी सलाह दी जाती है कि एक ही खरपतवार नाशक का प्रयोग बार-बार न करें।
दलहनी एवं तिलहनी फसल में लगने वाले खरपतवार
खरीफ के दलहनी एवं तिलहनी फसलों में महकुंआ, हजारदाना,दूधी, सांवा, कनकौवा, सफेद मुर्ग तथा मोथा विशेष रूप से फसलों को प्रभावित करते है। दलहनी फसलों में 15 व 20 दिन तथा तिलही फसलों में बुआई के 30 व 45 दिन में फसलों की महत्वपूर्ण क्रांतिक अवस्था में खेतों को खरपतवार रहित रखना चाहिए। इन खरपतवारों की रोकथाम के लिये बुआई के पूर्व ही यांत्रिक विधियों से नियंत्रण कार्य किया जाना चाहिए, परन्तु खरपतवारों की अधिकता होने पर रासायनिक खरपतवार नाशी का उपयोग विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार किया जा सकता है।
दलहनी एवं तिलहनी फसलों में किसान इन खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग करें
खरपतवारों के 30 से 70 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। खरपतवारों की वृद्धि को नष्ट करने के लिये बुआई के 30 और 45 दिन बाद गुड़ाई करें। अरहर, मूंग, उड़द फसलों में बुआई के 20 से 25 दिन बाद खरपतवारों की समस्या बढऩे पर इमेजाथाइपर-इमेजा माक्स 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर 450 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर की दर से या इमेजाथाइपर 750 मिली 450 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
सोयाबीन के खेत के मेड़ो में पाये जाने वाले सभी प्रकार के खरपतवारों को नष्ट करें। ग्लाफोसेट का भी छिड़काव मेंड़ों के खरपतवार को नष्ट करने के लिये कर सकते है। खरपतवार कीट पतंगों को आश्रय देने का कार्य करता है। जिन किसानों के खेत में सोयाबीन में पुष्पन की क्रिया हो गई है, वे किसान फल अधिकता एवं पुष्पन की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु क्लोरमेट क्लोराइड का 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। किसान एक ही खरपतवार नाशक का प्रयोग बार-बार न करें।
खरपतवार नियंत्रण की यांत्रिक विधि
धान के खेतों में रोपाई के 20 दिन बाद तथा 40 दिन बाद हाथ या खुरपी की सहायता से खरपतवारों को निकाल देने से काफी नियंत्रण होता है। साथ ही शक्ति चलित या हस्त चलित कृषि यंत्रों जैसे-पैडी विडर या कोनो विडर का उपयोग कर भी खरपतवार नियंत्रित किए जा सकते है।
रासायनिक दवाओं का उपयोग करते समय सावधानियां –
खरपतवार नाशी छिड़काव हेतु नैकशैक स्प्रेयर के साथ फ्लैटफेन नोजल का प्रयोग करें, किसी भी फसल में खरपतवार नाशी प्रयोग करते समय खेत में नमी होना चाहिए तथा खरपतवारनाशियों का छिड़काव शाम के समय या हवा अधिक तेज न होने की स्थिति में ही करें। अधिक जानकारी के लिये अपने क्षेत्र के कृषि विस्तार अधिकारियों से सम्पर्क करें।
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