गोवा के महावीर वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी में रात के अंधेरे में हल्के नीले-हरे और बैंगनी रंग में चमकने वाला मशरूम मिला है। वन्य जीव विशेषज्ञ मशरूम की इस प्रजाति को माइसेना जीनस कहते हैं। वैज्ञानिकों को अब तक रोशनी वाले मशरूम की 50 प्रजातियों के बारे में पता चल चुका है।
गोवा के म्हाडेई वाइल्डलाइफ सेंक्चुअरी में रोशनी देने वाला यह दुर्लभ प्रजाति का मशरूम मिला है। इस जगह को मोलेम नेशनल पार्क या महावीर वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के तौर पर भी जाना जाता है। रात के अंधेरे में यह मशरूम हल्के नीले-हरे और बैंगनी रंग में चमकता है। इस मशरूम की सबसे खास बात ये है कि दिन में यह आम मशरूम की तरह दिखता है, लेकिन रात होते ही इसमें से रोशनी निकलने लगती है। वन्य जीव विशेषज्ञ मशरूम की इस प्रजाति को माइसेना जीनस कहते हैं।
जंगल में इन मशरूमों को पनपने के लिए पर्याप्त नमी की जरूरत होती है। इसके साथ ही तापमान 21 डिग्री सेल्सियस से 27 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। रोशनी देने वाले इन अनोखे मशरूम को गोवा के अलावा मेघालय के जंगलों में भी देखा गया है। ये मशरूम सिर्फ बारिश के मौसम में ही नजर आए हैं। वैज्ञानिकों को अब तक रोशनी वाले मशरूम की 50 प्रजातियों के बारे में पता चल चुका है।
गोवा में बिचोलिम तालुका के मेनकुरेम इलाके की संस्कृति नायक जंगल में घूमने गई थीं, जहां उन्होंने सबसे पहले इन चमकते हुए मशरूमों को देखा। इस बात की जानकारी उन्होंने वन विभाग को दी। इसके बाद वैज्ञानिकों ने जाकर तस्वीरें लीं और शोध किया। संस्कृति के मुताबिक, उन्हें ऐसे मशरूम के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा कि जब मैंने पहली बार रात में चमकते हुए मशरूम देखे तो दंग रह गई। इनमें से हरे रंग की रोशनी आ रही थी, तो मुझसे रहा नहीं गया और नजदीक जाकर देखा। वहां ये मशरूम थे और उनमें से हल्के नीले-हरे रंग की रोशनी निकल रही थी। जबकि दिन में कोई रोशनी नहीं दिखती थी।
माइसेना जीनस के अलावा हाल ही में वैज्ञानिकों ने भारत में मशरूम प्रजाति के तीन नए कवकों की खोज की है। तमिलनाडु स्थित लेडी डोक कॉलेज, मदुरै के वैज्ञानिकों ने पहली बार फुलविफोम्स फास्टुओसस, गानोडर्मा वाइरोएन्स और फेलिनस बुडियस नामक कवक प्रजातियों की दक्षिण भारत में उपस्थिति पाई है। कवकीय विविधता को समझने के उद्देश्य से वैज्ञानिकों ने मदुरै, डिंडीगुल, तिरुनेलवेली और कोयंबतूर जिलों के कुछ स्थानों से बरसात के दौरान पेड़ों, लकड़ी के लठ्ठों और गिरी हुई पत्तियों के ढेरों पर पनप आए मशरूमनुमा कवकों में से कुल 100 प्रजातियों को एकत्रित किया।
इनमें से 49 कवकों को प्रयोगशाला में कल्चर करके उनके गुणों और आनुवंशिक विविधता का अध्ययन किया गया। शारीरिक बाह्य विशेषताओं में उल्लेखनीय भिन्नताएं देखी गर्इं। इंटरनल ट्रांसक्रिप्टेड स्पेसर (आइटीएस) और 5.8 एस आरआरएनए जीन अनुक्रम द्वारा किए गए आणविक विश्लेषण के आधार पर 32 कवकों को तीन वर्गों पॉलीपोरेल्स, हाइमीनोकैटेल्स और रसेल्स के तहत वगीर्कृत किया गया।
प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. मोवना सुंदरी के मुताबिक, इस अध्ययन से पहली बार दक्षिण भारत में फुलविफोम्स फास्टुओसस और गानोडर्मा वाइरोएन्स नामक कवक प्रजातियों की उपस्थिति साबित हुई है। साथ ही फेलिनस बुडियस नामक एक अन्य कवक प्रजाति के अस्तित्व के आणविक साक्ष्य भी पहली बार सामने आए हैं। वैश्विक कवकीय विविधता का एक-तिहाई हिस्सा भारत में मिलता है, जिसमें से केवल 50 फीसद कवकों की पहचान और खोज हुई है। पूरे भारत में पाए जाने वाले औषधीय मूल्यों के मशरूमों की संख्या अनगिनत है।
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